न्यायालय में जूता फेंकने से उत्पन्न विवाद
हालिया घटनाक्रम में जब देश के सबसे बड़े न्यायाधीश के ऊपर कोर्ट में जूता फेंका गया, उसने पूरे समाज को झकझोर दिया। यह हमला सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं, न्यायपालिका की गरिमा और भारतीय संविधान की मूल भावना पर था। घटना ने पूरे देश में चर्चा छेड़ दी और लोगों की संवेदनाओं को गहराई तक छू लिया।
इस घटना के विस्तृत संदर्भ और इसका समाज पर असर समझने के लिए यह इंटरनल लिंक देखें India’s top judge पर कोर्ट में जूता फेंका, धर्म विवाद के बीच
सोशल मीडिया पर जातिवादी पोस्ट्स – क्यों भड़का विवाद
घटना के बाद सोशल मीडिया जैसे प्लेटफार्म्स पर कुछ लोगों ने मुख्य न्यायाधीश को जाति और समाज के संदर्भ में निशाना बनाते हुए घृणित टिप्पणियाँ पोस्ट कीं। ऐसी पोस्ट्स ने संवैधानिक पदों के प्रति सम्मान को कम किया और एक वर्ग के सम्मान, बराबरी और सुरक्षा के हकों को चुनौती दी। इन पोस्ट्स की सामग्री न सिर्फ व्यक्ति-विशेष बल्कि सामाजिक समरसता, न्याय और राज्य व्यवस्था पर भी सीधा प्रहार करती रही।
पंजाब पुलिस की पहल – FIRs और कानूनी चक्र
पंजाब में प्रशासन ने इस पर तुरंत गंभीर रुख अपनाया। राज्य के अलग-अलग शहरों में साइबर सेल से जुड़े पुलिस अधिकारियों ने ऐसे 100 से अधिक सोशल मीडिया अकाउंट्स को चिह्नित कर FIRS दर्ज की। इन मामलों में गैर-जमानती धाराएँ लगाईं गईं; इनमें मुख्य अपराध सार्वजनिक सौहार्द बिगाड़ना, जातिवाद फैलाना और न्याय व्यवस्था को भयभीत करना शामिल रहा।
सभी डिजिटल सबूत सहेजने के बाद, पुलिस ने ऐसे पोस्ट्स को सिर्फ डिजिटल जगत तक सीमित नहीं छोड़ा—मुनासिब कानूनी कदम उठाकर अपराधियों को सख्त चेतावनी दी गई कि संविधान का अपमान बर्दाश्त नहीं होगा। आपत्तिजनक टिप्पणियों को तुरंत हटाने के लिए भी प्लेटफॉर्म्स को नोटिस गया।
जस्टिस गवई पर जूता फेंकने और सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणी, विडियो शेयर करने के मामले में पंजाब पुलिस ने ताबड़तोड़ कार्रवाई की है।
50+ handles के खिलाफ FIR दर्ज
कई शहरों में पब्लिक शिकायत के आधार पर एफआईआर
दलित समाज का अपमान बर्दाश्त नहीं करेगी आम आदमी पार्टी की सरकार
पूरे… pic.twitter.com/sblARp0buV
— Nagrik 🇮🇳 (@indian_nagrik) October 8, 2025
कानूनी पहलू – अपराध क्या और कैसे
इन घटनाओं में पुलिस ने IPC की धाराएँ व अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार अधिनियम, IT एक्ट को आधार बनाया। आरोपितों पर सार्वजनिक शांति भंग करने, जाति के आधार पर दुश्मनी बढ़ाने और संविधान के सम्मान को चोट पहुँचाने के आरोप लगे। पुलिस ने स्पष्ट किया कि कोई भी व्यक्ति या संगठन अगर ऐसी सामग्री फैलाता है, तो उसके खिलाफ पूरी तत्परता से कार्यवाही होगी।
इन धाराओं के तहत सख्त सजा का प्रावधान है– ताकि संविधान, समाज और न्याय के आदर्शों की रक्षा हो सके।
राजनीतिक, सामाजिक प्रतिक्रिया – जनता का रुख
समाज के विभिन्न वर्गों, नेताओं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं ने घटनाक्रम पर चिंता जताई। एक वर्ग ने न्यायाधीश के साथ एकजुटता व समर्थन दिखाया तो दूसरा वर्ग बहस-मुबाहिसे, सोशल मीडिया पर विचार-विमर्श में जुट गया। आम चर्चा में यही स्वर रहा कि सोशल मीडिया का सही उपयोग सम्मान व संवेदना बढ़ाने के लिए हो—not नफरत या विवाद फैलाने के लिए।
राजनीतिक नेतृत्व ने स्पष्ट संदेश दिया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सम्मान में कोई समझौता नहीं होगा।
डिजिटल जिम्मेदारी – अफवाहों की सचाई और रोकथाम
सोशल मीडिया की शक्ति विषय-विशेष को तेजी से फैलाती है, मगर वही ताकत अफवाहों, झूठ, और भड़काऊ संदेशों से नुकसान भी पहुँचाती है। न्याय, समाज व कानून की ताकत तभी सार्थक है जब डिजिटल नागरिक जिम्मेदारी दिखाएँ। अफवाहों और नफरत फैलाने वाली पोस्ट्स पर स्वयं रोक लगाने व रिपोर्ट करने की सामाजिक जिम्मेदारी सबकी है।
समाज और संविधान का सबक
इस विवाद ने स्पष्ट किया कि हमारे संविधान ने सभी नागरिकों को समानता, सम्मान और न्याय के अधिकार दिए हैं—इसलिए समाज, मीडिया और डिजिटल प्लैटफॉर्म्स को भी उन्हीं आदर्शों का पालन करना चाहिए। जातिवादी या विभाजनकारी पोस्ट्स समाज को कमजोर करने के साथ-साथ देश के भविष्य के लिए भी खतरा हैं।
जनता, संविधान और डिजिटल शक्ति
घटना, उसके बाद भड़काऊ पोस्ट्स और पुलिस की कार्यवाही से यही स्पष्ट हुआ कि न्यायपालिका, समाज और डिजिटल नागरिक– हर कोई बुनियादी अधिकारों, जिम्मेदारी और संवेदनशीलता को बनाए रखकर समाज को सुरक्षित, विकसित और समृद्ध बनाए रख सकता है।
अंतिम सवाल – क्या सोशल मीडिया यूजर्स को और अधिक जागरूक, जिम्मेदार बनना चाहिए? क्या पुलिस-प्रशासन का रुख उचित है? इस विषय पर अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर दें।