H-1B वीज़
आज के समय में अमेरिका में पढ़ाई करना हर भारतीय छात्र का सपना माना जाता है। उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्टार्टअप और रिसर्च के अवसर तथा विश्वस्तरीय नेटवर्क सभी चीजें वहां के आकर्षण की वजह रही हैं। लेकिन हाल के वर्षों में इमिग्रेशन नियमों और रोजगार की चुनौतियों ने इस सपने को खतरे में डाल दिया है।
बीते कुछ महीनों में अमेरिकी सरकार की नीतियों में बड़े बदलाव आए हैं, जिससे भारत समेत दुनियाभर के छात्रों के लिए माहौल जटिल हो गया है। शीर्ष STEM (विज्ञान, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथ्स) फ़ील्ड में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए ग्रेजुएशन के बाद नौकरी मिलना अब उतना आसान नहीं रहा।
ट्रम्प सरकार की नई H-1B वीज़ा नीतियां
2025 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने H-1B वीज़ा की फीस को अप्रत्याशित रूप से $100,000 (लगभग 88 लाख रुपये) प्रति वर्ष निर्धारित किया है। अब हर बार वीज़ा रिन्यू कराने पर भी बड़ी रकम चुकानी होगी, जिससे कंपनियों के लिए विदेशी स्टाफ रखना मुश्किल हो जाएगा। भारतीय IT सेक्टर इस बदलाव से सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है।
महत्वपूर्ण यह है कि अमेरिका में H-1B वीज़ा के 71% धारक भारतीय हैं, जिसका मतलब है कि नई फीस नीति भारतीय छात्रों और प्रोफेशनल्स पर सीधा असर डालेगी। अब प्रोफेशनल्स के लिए सैलरी, स्किल, और अनुभव के आधार पर प्राथमिकता दी जा रही है। इस मुद्दे पर विस्तार से जानने के लिए यहाँ क्लिक करें।
The U.S. Visa System is Becoming a Risky Bet
For years the H-1B and other work visa programs were a sure thing for foreign workers and the employers who brought them in. Apply, get approved, and plan for years ahead. But 2025 is a different game.
Delays are stacking up. Rules… pic.twitter.com/zao1LEz33R
— Chief_Engineer (@EngineerChiefCE) August 14, 2025
OPT प्रोग्राम पर बढ़ती तलवार
OPT यानी Optional Practical Training प्रोग्राम भारतीय छात्रों के लिए अमेरिका में पढ़ाई के बाद नौकरी का बड़ा जरिया रहा है। दरअसल, STEM OPT के तहत विद्यार्थी तीन साल तक अमेरिका में नौकरी कर सकते हैं, पर नये नियमों के चलते OPT पर काम करने वाले छात्रों को नौकरियों का कोई निश्चित आश्वासन नहीं रहा। कई कंपनियाँ भारी फीज की वजह से विदेशी टैलेंट लेने से बच सकती हैं।
अमेरिकी सरकार अब OPT को भी सीमित या महंगा करने की तरफ बढ़ रही है। इसका असर यह होगा कि तीन साल की OPT खत्म होते ही छात्र या तो देश लौटने के लिए मजबूर होंगे या विकल्प तलाशना पड़ेगा। विशेषज्ञों के अनुसार, अब टेक, साइंस, और इंजीनियरिंग क्षेत्र का आकर्षण कम होने की संभावना है।
डिपोर्टेशन का डर: नये खतरे
अमेरिका में पढ़ाई के बाद नौकरी पाने के रास्ते कठिन हुए हैं, इसलिए डिपोर्टेशन के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। SEVIS रिकॉर्ड में गड़बड़ी, असंगत डॉक्युमेंटेशन, या स्टेटस एक्सपायर होते ही छात्र कभी-कभी तत्काल भारत लौटने को मजबूर हो जाते हैं।
ICE (Immigration and Customs Enforcement) की नई पॉलिसी के तहत सोशल मीडिया, प्रोटेस्ट एक्टिविटी और डॉक्युमेंट वेरिफिकेशन को अतिरिक्त गंभीरता से जांचा जा रहा है। इससे ज़रा सी चूक पर डिपोर्टेशन का खतरा रहता है, जो युवा करियर तथा भविष्य को असुरक्षित कर देता है।
ROI (Return on Investment) और भारतीय परिवारों पर असर
भारतीय परिवार अमेरिकी शिक्षा पर लाखों रुपये खर्च करते हैं। लेकिन यदि पढ़ाई/OPT के बाद नौकरी न मिले, या वीज़ा पाइपलाइन बहुत महंगी हो, तो इस निवेश की वापसी नामुमकिन हो जाती है। कॉलेज ट्यूशन, रहन-सहन, परीक्षा शुल्क सहित कुल लागत इतना बढ़ जाता है कि कई अभिभावक बच्चों की पढ़ाई रोकने की सोचने लगे हैं।
इसी बीच, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के कॉलेज अधिक आकर्षक बन रहे हैं, जहाँ वीज़ा नियम लचीले और अवसर विविध हैं। भारत में भी उच्च शिक्षा की सुविधाएं लगातार बढ़ रही हैं।
छात्रों की राय: जमीनी स्थिति
अमेरिका में पढ़ाई कर रहे भारतीय छात्रों की बातें जानें तो सामने आता है कि OPT, H-1B और डिपोर्टेशन के मुद्दे ने उनके मन में असमंजस का माहौल बना दिया है। “नौकरी की संभावना, वीज़ा अप्रूवल, और लॉन्ग टर्म कैरियर – इन सब पर अब उतना भरोसा नहीं रहा।”
छात्र बताते हैं कि अब करियर प्लान करने से पहले देश वापसी का विकल्प भी ध्यान में रखना पड़ता है। क्या ऐसे हालात में अमेरिका में पढ़ाई का सपना सही है? अपनी राय नीचे कॉमेंट बॉक्स में अवश्य दें।
एक्सपर्ट इनसाइट: विशेषज्ञों की राय
इमिग्रेशन कानून, यूनिवर्सिटी प्रबंधन, और मानव संसाधन के विशेषज्ञों के अनुसार, मौजूदा नीतियाँ न केवल छात्रों बल्कि अमेरिकी बाजार के लिए भी घातक साबित हो सकती हैं। अगर वीज़ा महंगा हो, नौकरियाँ सीमित हों, तो अमेरिका का शिक्षा सेक्टर वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकता है।
वर्तमान में भारतीय आईटी कंपनियाँ और छात्र मेलजोल बढ़ाकर अन्य देशों में अवसर खोजना शुरू कर चुके हैं। क्या यह प्रवृत्ति अगले कुछ सालों में और तेज़ हो जाएगी? विशेषज्ञों की चर्चा सामने रखें।
विकल्प: अन्य देशों की ओर रुख
अब कनाडा, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, यूके जैसे देश विदेशी छात्रों को आकर्षित कर रहे हैं। वहाँ वीज़ा और रोजगार अवसर अधिक पारदर्शी और सुरक्षित हैं। भारत सरकार ने भी हायर एजुकेशन में बदलाव लाने के लिए कदम बढ़ा दिए हैं ताकि युवाओं को बेहतर विकल्प अपने देश में मिल सके।
विद्यार्थियों के लिए यह सोचना जरूरी है कि वैश्विक चुनौतियों के बावजूद किस दिशा में आगे बढ़ना सबसे तर्कसंगत और सुरक्षित है।
सलाह और तैयारी के उपाय
ऐसे छात्रों के लिए टिप्स:
- स्टडी प्लानिंग के दौरान वीज़ा नीतियों का विस्तार से अध्ययन करें।
- हर ऑप्शन पर सही दस्तावेज और अनुभवी सलाहकार की सलाह लें।
- किसी भी कॉलेज या कोर्स का चुनाव करते समय रोजगार संभावनाएँ और इमिग्रेशन प्रक्रिया की जानकारी रखें।
अपनी तैयारी में वैकल्पिक मार्ग और देश का चुनाव करना सही हो सकता है। ध्यान रखें, हर चुनौती के साथ नया अवसर भी आता है।
आगे क्या?
अमेरिका में H-1B वीज़ा, OPT संकट और डिपोर्टेशन का डर अब छात्रों और परिवारों के बीच बड़ा सवाल बन गया है। क्या भारत, कनाडा या अन्य देश सही विकल्प हैं या फिर अमेरिका में बदलाव की उम्मीद रखनी चाहिए? अपना अनुभव और राय नीचे शेयर करें — आपके विचार युवाओं के लिए दिशा तय कर सकते हैं।