हमारे समाज में कुछ चीज़ें धीरे-धीरे घर कर जाती हैं। पहले लोग उन्हें हल्के में लेते हैं, फिर आदत बन जाती है और अंत में वो बीमारी बनकर जिंदगी को निगलने लगती हैं। नशे की लत भी कुछ इसी तरह फैलती है। चाहे वो शराब हो, तंबाकू हो, या फिर नशीले ड्रग्स — ये सब धीरे-धीरे शरीर ही नहीं, सोच को भी खोखला कर देते हैं।
क्यों मनाते हैं 26 जून को ये दिन?
हर साल 26 जून को यह दिन हमें याद दिलाता है कि नशे से लड़ना सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, पूरे समाज की जिम्मेदारी है। कोई बच्चा गलती से फंस जाए, कोई युवा राह भटक जाए, या कोई परिवार टूटने की कगार पर हो — यह हम सबके लिए एक इशारा होता है कि अब और चुप रहना ठीक नहीं।
It’s International Day Against Drug Abuse & Illicit Trafficking!
🌏🌍🌎, about 0⃣.5⃣ million deaths are attributable to drug use. WHO is working closely with countries to reduce drug use and related harm. pic.twitter.com/NDugX2QAyU
— World Health Organization (WHO) (@WHO) June 26, 2020
2025 में क्या है खास?
इस साल जो बातें सबसे ज़्यादा सामने आ रही हैं, वो हैं – युवाओं की भागीदारी और सही जानकारी तक पहुंच। कई बार देखा गया है कि कम उम्र में सिर्फ जिज्ञासा या दबाव के चलते युवा नशे का पहला कदम उठा लेते हैं। अगर उन्हें समय पर सही जानकारी, मदद और विकल्प मिलें, तो वे खुद ही इससे बचना चुनते हैं।
गांव से लेकर शहर तक — नशा अब हर जगह
पहले सोचा जाता था कि ये सिर्फ बड़े शहरों की समस्या है, लेकिन अब गांवों में भी ये चुपचाप पैर पसार रहा है। स्कूल-कॉलेज के आस-पास ऐसे तत्व मिल जाते हैं जो सस्ती और खतरनाक चीज़ें बच्चों तक पहुंचाते हैं। समस्या की गंभीरता अब इतनी है कि कुछ राज्यों में तो ये सामाजिक संकट का रूप ले चुकी है।
असर सिर्फ व्यक्ति पर नहीं, पूरे घर पर
एक व्यक्ति की लत से सिर्फ वही नहीं टूटता। पूरा परिवार परेशान हो जाता है। मां-बाप की नींद उड़ जाती है, भाई-बहन शर्मिंदगी महसूस करते हैं, और कभी-कभी तो हालात इतने बिगड़ते हैं कि घर उजड़ जाता है। कई बार नशे की वजह से नौकरी जाती है, पढ़ाई छूटती है, और अपराध की राह खुल जाती है।
🌎June 26 is International Day Against Drug Abuse and Illicit Trafficking — when communities around the world unite for drug prevention and education.
Let’s raise awareness and spread the truth about drugs.#InternationalDayAgainstDrugs #DrugFreeWorld #TruthAboutDrugs pic.twitter.com/YAdqeJzBCN
— Drug Free World (@drugfreeworld) June 4, 2025
बदलाव की शुरुआत कहां से हो?
अगर कोई पूछे कि ये लड़ाई कहां से शुरू करें — तो जवाब है, घर से।
बच्चे किसके साथ घूमते हैं, क्या देख रहे हैं, सोशल मीडिया पर किससे जुड़ रहे हैं — इन सब पर नज़र रखना जरूरी है। साथ ही, डराने या डांटने से ज़्यादा ज़रूरी है खुले मन से बात करना। कोई बच्चा अगर उलझन में है, तो उसे डांटकर नहीं, समझाकर ही रास्ता दिखाया जा सकता है।
स्कूल और कॉलेज की भूमिका
शिक्षण संस्थान सिर्फ पढ़ाई के लिए नहीं होते — वहां से सोच बनती है।
इसलिए अब कई जगहों पर नशा विरोधी शपथ, पोस्टर प्रतियोगिता, नुक्कड़ नाटक, और जन-जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। बच्चों को जब मंच मिलता है अपनी बात कहने का, तो वो खुद भी समझते हैं और दूसरों को भी समझाते हैं।
इंटरनेट का सही इस्तेमाल
आज हर युवा के हाथ में मोबाइल है। यही मोबाइल अगर गलत चीज़ें दिखा दे, तो नुकसान करता है। लेकिन यही मोबाइल सही जानकारी और हौसला भी दे सकता है। अब सोशल मीडिया पर कई जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं — छोटे वीडियो, रील्स, स्टोरीज़ के जरिए युवाओं को नशे से दूर रहने का संदेश दिया जा रहा है।
जब मदद की ज़रूरत हो, तो शर्म नहीं मदद मांगें
कई बार लोग मदद लेना तो चाहते हैं, लेकिन शर्म या डर की वजह से चुप रह जाते हैं। लेकिन चुप्पी और समय — दोनों नुकसान पहुंचाते हैं। अब ऐसे कई केंद्र हैं जहां गुप्त रूप से इलाज और परामर्श दिया जाता है। वहां कोई जज नहीं करता, बस समझता है और मदद करता है।
ये सिर्फ एक दिन नहीं, एक याद दिलाने वाला मौका है
26 जून को सिर्फ एक पोस्टर या रैली ही काफी नहीं। यह दिन हमें हर साल याद दिलाता है कि समाज को नशे से बचाने का काम सिर्फ पुलिस या सरकार का नहीं है — यह काम हर मां-बाप, हर शिक्षक, हर पड़ोसी और हर दोस्त का है।
एक छोटी सी शुरुआत, एक बड़ी उम्मीद
अगर हर घर में ये बात तय हो जाए कि बच्चों से खुलकर बात करनी है,
अगर हर स्कूल एक हफ्ते में एक क्लास नशा विरोधी शिक्षा पर ले ले,
अगर सोशल मीडिया पर गलत चीज़ों से ज़्यादा सही बातें ट्रेंड करें —
तो शायद अगली पीढ़ी को ये दिन एक इतिहास की तरह ही जानना पड़ेगा।
आजकल स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन को लेकर लोगों में जो जागरूकता आई है, उसका असर नशा विरोधी अभियानों में भी दिख रहा है। लोग अब सिर्फ शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी खुद को मज़बूत करने के तरीके ढूंढ रहे हैं।
योग जैसी भारतीय परंपराएं, जो तन-मन को जोड़ने का काम करती हैं, इस दिशा में अहम साबित हो रही हैं। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 2025 के दौरान भी यही देखा गया कि किस तरह योग न केवल एक व्यायाम है, बल्कि जीवनशैली को संतुलित करने का माध्यम बन चुका है।
अब और इंतज़ार नहीं
समस्या बड़ी है, लेकिन हल नामुमकिन नहीं।
हर छोटे कदम का असर होता है।
आज नहीं तो कल — लेकिन अगर हम सब मिलकर चलें,
तो नशा हमारे समाज का हिस्सा नहीं, बीते कल की एक गलती बन सकता है।