भारत में जब बात आस्था के सबसे बड़े उत्सवों की होती है, तो पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा एक प्रमुख नाम बनकर सामने आती है। हर साल लाखों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से ओडिशा के पुरी शहर में इस दिव्य यात्रा के साक्षी बनने पहुंचते हैं। 2025 में यह यात्रा और भी विशेष होने जा रही है, क्योंकि इस बार इसकी शुरुआत 27 जून, शुक्रवार को हो रही है।
2025 में रथ यात्रा की तारीख और प्रमुख तिथियाँ
- रथ यात्रा की शुरुआत: शुक्रवार, 27 जून 2025
- एकांतवास या अनासर काल: बुधवार, 11 जून 2025 से
- स्नान पूर्णिमा: मंगलवार, 10 जून 2025
- बहुदा यात्रा (वापसी यात्रा): शनिवार, 5 जुलाई 2025
🟩 मुख्य बातें:
- यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को होती है
- यह एकमात्र समय होता है जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा रथों पर नगर दर्शन के लिए आते हैं
एकांतवास की परंपरा और आध्यात्मिक मान्यता
हर वर्ष भगवान जगन्नाथ जी स्नान पूर्णिमा के दिन 108 कलशों से पवित्र जल से स्नान करते हैं। इसके बाद वे 15 दिनों के लिए ‘बीमार’ हो जाते हैं जिसे अनासर काल कहा जाता है। इस अवधि में भक्तों को मंदिर में भगवान के दर्शन नहीं होते।
🟩 विशेष मान्यता:
माना जाता है कि इस दौरान भगवान विश्राम करते हैं और औषधीय उपचार प्राप्त करते हैं। यह परंपरा हमें आस्था और भावनात्मक जुड़ाव की गहराई से जोड़ती है।
गुंडिचा यात्रा: रथ यात्रा की भव्य शुरुआत
रथ यात्रा की शुरुआत को गुंडिचा यात्रा कहा जाता है। इसमें भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा तीन विशाल रथों पर सवार होकर श्री गुंडिचा मंदिर जाते हैं। यह मंदिर उनकी मौसी का घर माना जाता है।
- भगवान जगन्नाथ का रथ: नंदीघोष (चक्रध्वज), 16 चक्कों वाला
- बलभद्र का रथ: तालध्वज, 14 चक्कों वाला
- सुभद्रा का रथ: दर्पदलन, 12 चक्कों वाला
रथों को खींचने के लिए हजारों श्रद्धालु एक साथ जुटते हैं, जिनमें दिल्ली, लखनऊ, पटना, मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों से आए भक्त भी शामिल होते हैं।
बहुदा यात्रा: वापसी का उत्सव
गुंडिचा मंदिर में नौ दिनों तक रहने के बाद भगवान 10वें दिन बहुदा यात्रा (वापसी यात्रा) पर निकलते हैं। इसे ‘उल्टी रथ यात्रा’ भी कहा जाता है। इस दौरान भगवान को फिर से भव्य रथों में वापस मुख्य मंदिर लाया जाता है।
🟩 लोक मान्यता:
कहा जाता है कि वापसी यात्रा में भगवान की पत्नी लक्ष्मीजी रुष्ट हो जाती हैं और मंदिर के द्वार पर उन्हें रोकती हैं।
पौराणिक और ऐतिहासिक प्रसंगों से जुड़ी यात्रा
जगन्नाथ रथ यात्रा न केवल धार्मिक उत्सव है बल्कि इसके पीछे कई पौराणिक कथाएँ भी जुड़ी हैं। एक मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र युद्ध के समय रथ यात्रा के दर्शन कराए थे।
🟩 सुभद्रा की कथा:
सुभद्रा अपने भाइयों के साथ पुरी दर्शन करने के लिए उत्सुक थीं। तभी उन्हें रथों पर ले जाने की परंपरा शुरू हुई।
पुरी से विश्व तक: सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
पुरी की रथ यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक संपूर्ण अनुभव है, जिसमें आस्था के साथ-साथ यात्रा का रोमांच भी शामिल होता है। देश के कोने-कोने से लोग ओडिशा की ओर रुख करते हैं, और इसी बहाने भारत के प्राकृतिक सौंदर्य का भी आनंद लेते हैं।
अगर आप रथ यात्रा के साथ-साथ गर्मियों में कुछ ठंडी और सुकून भरी जगहों की तलाश कर रहे हैं, तो भारत के टॉप 10 हिल स्टेशन आपकी यात्रा सूची में जरूर होने चाहिए। यहां की शांत वादियां और ठंडी हवाएं रथ यात्रा जैसी आध्यात्मिक यात्रा के बाद सुकून देने का काम करती हैं।
🟩 लाइव टेलिकास्ट:
दूरदर्शन और विभिन्न डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर यात्रा का सीधा प्रसारण होता है, जिससे देश-विदेश में बैठे श्रद्धालु भी जुड़े रहते हैं।
श्रद्धालुओं के लिए दिशा-निर्देश और सरकारी तैयारी
हर साल प्रशासन इस उत्सव के लिए विशेष व्यवस्थाएं करता है। रथ यात्रा में भारी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस बल, मेडिकल सहायता, जल आपूर्ति और मोबाइल शौचालय जैसी सुविधाएं सुनिश्चित की जाती हैं।
🟩 महत्वपूर्ण सूचना:
दिल्ली, बनारस, पुणे और अहमदाबाद जैसे शहरों से आने वाले यात्रियों के लिए विशेष ट्रेन और बसें चलाई जाती हैं।
श्रद्धा, संस्कृति और सहयोग का संगम
जगन्नाथ रथ यात्रा न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारत की विविधता, एकता और आस्था का भी प्रतीक है। यह यात्रा हमें परंपरा, भक्ति और सेवा के मूल्यों से जोड़ती है। चाहे आप ओडिशा जाएं या अपने शहर में आयोजन देखें, यह अनुभव आत्मा को गहराई से छूता है।
💬 आपका अनुभव कैसा रहा? क्या आपने कभी रथ यात्रा में भाग लिया है? नीचे कमेंट में हमें जरूर बताएं!