टेस्ट क्रिकेट की गरिमा को लेकर एक और विवाद खड़ा हो गया है। भारत और इंग्लैंड के बीच खेले जा रहे लॉर्ड्स टेस्ट मैच में भारतीय टीम को 10वें ओवर में गेंद बदले जाने पर आपत्ति जतानी पड़ी — कारण ये कि उन्हें एक ऐसी बॉल दी गई जो कम से कम 30 ओवर पुरानी दिख रही थी। इस गंभीर मामले ने खेल प्रेमियों और विशेषज्ञों दोनों के बीच हलचल मचा दी है।
क्या हुआ लॉर्ड्स टेस्ट में 10वें ओवर में?
मैच के शुरुआती 10 ओवरों के भीतर ही गेंद के सीम (seam) में दरारें आने लगीं। अम्पायर्स ने गेंद बदलने का निर्णय लिया, लेकिन भारतीय खिलाड़ियों और सपोर्ट स्टाफ को जो नई गेंद दी गई, वह नई नहीं दिख रही थी।
- गेंद का रंग पुराना था
- सीम घिसी हुई दिख रही थी
- गेंद का बाउंस और स्विंग काफी कम हो गया
भारतीय कप्तान और गेंदबाज़ों ने तुरंत इस मुद्दे को उठाया और मैच रेफरी रिची रिचर्डसन को इस बारे में शिकायत सौंपी।
भारतीय टीम की आपत्ति: क्यों भड़के खिलाड़ी?
भारतीय गेंदबाज़ों का कहना है कि पुरानी गेंद के कारण न केवल स्विंग और सीम मूवमेंट पर असर पड़ा, बल्कि विपक्षी बल्लेबाज़ों को भी अतिरिक्त फायदा मिला।
टीम सूत्रों के अनुसार:
“गेंद पर लगे घिसाव और रंग से साफ था कि यह 30 ओवर से भी अधिक पुरानी थी। यह खेल की निष्पक्षता के खिलाफ है।”
BCCI ने इस मुद्दे पर लिखित शिकायत भी दर्ज कराई है, और ICC से तत्काल स्पष्टीकरण मांगा गया है।
The issue with the ball continues at Lord’s, this time, it’s Jofra Archer.
📸: Jio Hotstar pic.twitter.com/DOavD5YtLL
— CricTracker (@Cricketracker) July 12, 2025
गेंद की स्थिति: 30 ओवर पुरानी गेंद – कैसे पता चला?
गेंद को देखने से ही गेंदबाजों को संदेह हुआ। स्पिनर ने बताया कि सीम डेड हो चुकी थी, वहीं तेज़ गेंदबाजों ने कहा कि रिवर्स स्विंग समय से पहले शुरू हो रही थी — जो 10 ओवर की नई गेंद से संभव नहीं।
पूर्व तेज़ गेंदबाज़ ईशांत शर्मा ने ट्वीट किया:
“ऐसी गेंद से टेस्ट मैच में फर्क आ सकता है। ये कोई गलती नहीं, लापरवाही है।”
ICC की भूमिका: रेफरी से शिकायत और नियम क्या कहते हैं?
ICC के बॉल रिप्लेसमेंट नियम के अनुसार, अम्पायर नई गेंद की स्थिति से मेल खाती बॉल ही दे सकते हैं। लॉर्ड्स टेस्ट में यह मानक स्पष्ट रूप से टूटता दिखा।
BCCI ने रेफरी को यह भी बताया कि इस बॉल की वजह से गेंदबाज़ी रणनीति बुरी तरह प्रभावित हुई और इंग्लैंड को रन बनाने में आसानी हुई।
पूर्व उदाहरण: क्या पहले भी हुए हैं ऐसे विवाद?
टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में बॉल से जुड़े विवाद नए नहीं हैं। उदाहरण:
- 2006: पाकिस्तान बनाम इंग्लैंड टेस्ट में बॉल टैंपरिंग विवाद
- 2018: ऑस्ट्रेलिया का “सैंडपेपर स्कैंडल”
- 2022: बॉल रिप्लेसमेंट के दौरान वेस्ट इंडीज़ बनाम बांग्लादेश टेस्ट में जांच हुई
इन सब मामलों में भी मैच की निष्पक्षता पर सवाल उठे थे और कड़ी आलोचना हुई थी।
प्रदर्शन पर असर: क्या इस गेंद ने मैच का रुख बदला?
बॉल चेंज के बाद भारत की गेंदबाज़ी पर प्रभाव दिखा। गेंदबाज़ों की लाइन और लेंथ बिगड़ी, रन रेट बढ़ा और दो विकेट मिस हुए।
विराट कोहली ने स्लिप से स्पष्ट कहा था:
“ये गेंद वैसी नहीं है जैसी हमें चाहिए थी।”
विशेषज्ञों की राय: पूर्व क्रिकेटर्स की प्रतिक्रिया
पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने NDTV से कहा:
“अगर ICC इस पर कार्रवाई नहीं करता, तो क्रिकेट की साख को गहरा धक्का लगेगा।”
हरभजन सिंह ने भी कहा कि भारत को “प्रेसिडेंट्स काउंसिल” में इस मुद्दे को उठाना चाहिए।
बॉल विवाद में जहाँ ICC को जवाब देना है, वहीं BCCI पर भी हाल ही में सवाल उठे हैं, जब पूर्व खिलाड़ी मनोज तिवारी ने एशिया कप चयन को लेकर बोर्ड पर गंभीर आरोप लगाए थे। यह घटनाएं बताती हैं कि भारतीय क्रिकेट प्रशासकों को अब पारदर्शिता और तकनीकी सटीकता पर अधिक ध्यान देना होगा।
जिस तरह पंजाब सरकार ने युवा नशामुक्ति के लिए शिक्षा प्रणाली में एविडेंस-बेस्ड करिकुलम लागू किया है, वैसी ही पारदर्शी और व्यवहारिक सुधार क्रिकेट प्रशासन में भी समय की मांग बन चुके हैं।
निष्कर्ष
बॉल रिप्लेसमेंट जैसे छोटे-से लगने वाले फैसले भी टेस्ट क्रिकेट के बड़े नतीजों पर असर डाल सकते हैं। यह विवाद दिखाता है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब तकनीकी निगरानी और जवाबदेही को प्राथमिकता देनी होगी।
क्या ICC को इस बॉल विवाद की जांच करनी चाहिए?
क्या टीम इंडिया को असमान शर्तों में खेलने पर मजबूर किया गया?
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