बिहार की सियासत फिर से गर्म है। विधानसभा चुनाव से पहले सभी दल अपने-अपने पत्ते खोलने में जुट गए हैं।
नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव, और प्रशांत किशोर (PK)—तीनों अपने-अपने तरीके से जनता तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन इस बार मुकाबला सिर्फ नेताओं का नहीं, बल्कि “M Factor” यानी मुस्लिम वोट बैंक के इर्द-गिर्द घूमता नजर आ रहा है।
बिहार जैसे राज्य में, जहां राजनीति जाति और समुदाय पर टिकी रही है, वहां M Factor हर चुनाव में एक अहम भूमिका निभाता है।
2025 के चुनावों में भी यही फैक्टर तय करेगा कि सत्ता की कुर्सी पर कौन बैठेगा और कौन किनारे रह जाएगा।
“M Factor” क्या है और क्यों है ये इतना अहम?
“M Factor” को लेकर चर्चाएं तेज हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसका सीधा संबंध मुस्लिम मतदाताओं से है — जो बिहार की कुल आबादी का लगभग 17 प्रतिशत हैं।
इतिहास गवाह है कि बिहार के चुनावों में मुस्लिम वोटर एकजुट होकर जिस ओर झुकते हैं, सत्ता का संतुलन उसी दिशा में चला जाता है।
पिछले कुछ वर्षों में, महागठबंधन को इसका लाभ मिलता रहा है। लेकिन इस बार हालात अलग हैं।
नीतीश कुमार ने बार-बार अपनी राजनीतिक स्थिति बदली है, जिससे अल्पसंख्यक मतदाताओं का भरोसा कमजोर पड़ा है।
दूसरी ओर, तेजस्वी यादव खुद को “नई पीढ़ी का चेहरा” बनाकर इस वोट बैंक को अपनी ओर खींचने की कोशिश में हैं।
BREAKING 🚨
Prashant kishor has refused to contest the Assembly Elections in Bihar in 2025.
He has seen a massive defeat of the NDA and other regional parties written on the wall.pic.twitter.com/nm0GC4Gjwt
— Ravinder Kapur. (@RavinderKapur2) October 15, 2025
मुख्य खिलाड़ी कौन हैं: SIR, प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव
SIR (Samajik Insaf Rashtra)
SIR नामक संगठन बिहार में सामाजिक न्याय के नए मॉडल के रूप में उभरने की कोशिश कर रहा है।
इसका फोकस हाशिए पर पड़े तबकों और अल्पसंख्यकों पर है। हालांकि इसका जनाधार अभी सीमित है, लेकिन यह गठजोड़ के समीकरण को प्रभावित कर सकता है।
प्रशांत किशोर (PK)
चुनावी रणनीति के माहिर माने जाने वाले प्रशांत किशोर इस बार खुद को “नेता” के रूप में पेश करने की कोशिश में हैं।
उन्होंने साफ कहा है कि वह किसी पार्टी से समझौता नहीं करेंगे, बल्कि जनसंपर्क और जनसंग्रह के जरिए जनता तक पहुंचेंगे।
हालांकि PK की रणनीति ने उन्हें चर्चा में तो रखा है, लेकिन वे खुद चुनाव लड़ेंगे या नहीं, इस पर अब भी संशय बना हुआ है।
तेजस्वी यादव
महागठबंधन का चेहरा बने तेजस्वी यादव लगातार रैलियां कर रहे हैं और युवाओं को रोजगार का वादा दोहरा रहे हैं।
उनकी कोशिश है कि मुस्लिम और यादव वोटरों का परंपरागत गठजोड़ (MY Factor) एक बार फिर सक्रिय हो जाए।
तेजस्वी का मानना है कि “M Factor” उनके पक्ष में जाएगा क्योंकि वे खुद को BJP के खिलाफ एक मज़बूत विकल्प के रूप में पेश कर रहे हैं।
मुस्लिम वोट बैंक का बिहार में ऐतिहासिक असर
बिहार की राजनीति में मुस्लिम समुदाय हमेशा से निर्णायक रहा है।
चाहे 1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव की लहर रही हो या 2015 का महागठबंधन — हर बार मुस्लिम मतदाताओं की एकजुटता ने परिणामों को बदलकर रख दिया।
मुस्लिम मतदाता आम तौर पर उस पक्ष में जाते हैं जिसे वे “सुरक्षित विकल्प” मानते हैं — यानी जो उन्हें राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी देता हो।
2020 के विधानसभा चुनावों में यह झुकाव RJD के पक्ष में रहा, लेकिन 2025 में तस्वीर पूरी तरह बदल सकती है।
कई नए खिलाड़ी मैदान में हैं और नीतीश कुमार की लगातार बदलती नीतियों ने अल्पसंख्यक समुदाय को असमंजस में डाल दिया है।
इस बीच, प्रशांत किशोर और SIR जैसे विकल्प इस मतदाता वर्ग को बांटने का काम कर सकते हैं।
गठबंधन और रणनीति: चुनावी समीकरण की असली परीक्षा
2025 का चुनाव गठबंधन राजनीति की सबसे कठिन परीक्षा होने वाला है।
NDA, महागठबंधन, और जनसुराज आंदोलन तीनों ही अलग-अलग दिशा में सक्रिय हैं।
नीतीश कुमार की पार्टी JDU ने हाल में कुछ नए चेहरों को मौका दिया है, जबकि BJP ने संगठन मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया है।
दूसरी ओर, तेजस्वी यादव के नेतृत्व में RJD ने युवा कार्यकर्ताओं को अग्रिम मोर्चे पर उतार दिया है।
तेजस्वी ने हाल ही में कहा कि “राजनीति अब डर की नहीं, बदलाव की होनी चाहिए।”
वहीं, प्रशांत किशोर लोगों के बीच जाकर “जनसंवाद यात्रा” के जरिए अपनी बात रख रहे हैं।
यहां यह भी गौर करने वाली बात है कि Bihar Assembly Elections: RLM Meeting Postponed, Kushwaha to Delhi, NDA Rift जैसी राजनीतिक हलचलों से भी राज्य की स्थिति लगातार बदल रही है, जो NDA की अंदरूनी स्थिति पर सवाल खड़े करती है।
चुनावी सर्वेक्षण और ताजे रुझान
हालिया जनमत सर्वेक्षणों से साफ होता है कि जनता का मूड इस बार अस्थिर है।
कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है — RJD, NDA और प्रशांत किशोर की टीम के बीच।
तेजस्वी यादव युवाओं और बेरोजगारी को मुख्य मुद्दा बना रहे हैं, जबकि NDA “विकास” और “स्थिरता” पर फोकस कर रहा है।
मुस्लिम वोटरों में यह चर्चा आम है कि “किसी स्थिर और मजबूत विकल्प” को चुना जाए ताकि उनके हित सुरक्षित रहें।
यही कारण है कि M Factor एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गया है।
जोखिम और चुनौतियाँ
इस बार के चुनाव की सबसे बड़ी चुनौती है “विश्वसनीयता”।
नीतीश कुमार पर भरोसा अब पहले जैसा नहीं रहा, तेजस्वी यादव के अनुभव पर सवाल उठाए जा रहे हैं, और प्रशांत किशोर अभी अपनी पकड़ मजबूत नहीं बना पाए हैं।
ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता किसे अपना भविष्य सौंपती है।
सत्ता की कुंजी M Factor के पास
बिहार की राजनीति का हर समीकरण “M Factor” पर टिकता नजर आ रहा है।
मुस्लिम वोट बैंक इस बार तय करेगा कि सत्ता की चाबी किसे मिलेगी —
नीतीश के अनुभव को, तेजस्वी के युवा जोश को, या प्रशांत किशोर की नई सोच को।
चुनाव का मैदान तैयार है, बस जनता के फैसले का इंतज़ार है।
अगर इस बार M Factor निर्णायक साबित हुआ, तो यह बिहार की सियासत की नई परिभाषा लिखेगा।
आपकी राय क्या है?
क्या “M Factor” सच में बिहार की राजनीति की दिशा बदल सकता है?
आपका क्या मानना है — तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार या प्रशांत किशोर, कौन बनेगा बिहार की अगली सियासी ताकत?
नीचे कमेंट में बताएं 👇