🕉️ निर्जला एकादशी क्यों मानी जाती है सबसे कठिन और फलदायी?
निर्जला एकादशी हिन्दू धर्म में एक अत्यंत पुण्यदायक और कठिन व्रत माना जाता है। यह व्रत न केवल जल का त्याग करने के कारण विशेष बनता है, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी इसका महत्व अत्यधिक है। वर्षभर में आने वाली सभी 24 एकादशियों में से यह एकादशी सबसे प्रभावशाली मानी जाती है क्योंकि इसमें एक ही दिन में सभी एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है।
श्रद्धालु इस दिन उपवास कर, भगवान विष्णु की उपासना करते हैं और स्वयं के लिए मोक्ष, स्वास्थ्य और शांति की कामना करते हैं।
📅 निर्जला एकादशी 2025 की तिथि व पारण समय
इस वर्ष निर्जला एकादशी 6 जून 2025, शुक्रवार को मनाई जाएगी। यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है।
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 5 जून 2025 को शाम 06:45 बजे
- एकादशी तिथि समाप्त: 6 जून 2025 को शाम 04:22 बजे
- पारण का समय: 7 जून 2025 को सुबह 05:28 बजे से 08:15 बजे तक
श्रद्धालुओं को पारण समय का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि निर्धारित समय में ही व्रत तोड़ना शास्त्रों के अनुसार उचित माना जाता है।
🙏 पूजन विधि और निर्जला व्रत के नियम
इस पावन दिन को विधिपूर्वक मनाने के लिए नीचे दिए गए चरणों का पालन करें:
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- व्रत का संकल्प लें — बिना जल के पूरे दिन उपवास करने का।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र की स्थापना करें।
- गंगाजल, तुलसी पत्र, पीले पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजा करें।
- विष्णु सहस्रनाम, भगवद्गीता के श्लोक या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप करें।
- दिनभर जल और अन्न का पूर्ण त्याग करें (पूर्ण निर्जला)।
- रात्रि में कीर्तन, भजन करें या धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें।
- अगले दिन प्रातः पारण करें और जरूरतमंदों को दान दें।
विशेष ध्यान दें: यदि स्वास्थ्य कारणों से निर्जल उपवास संभव न हो, तो फलाहार या जल के साथ व्रत करने की छूट भी शास्त्रों में दी गई है।
📖 धार्मिक महत्व और भीम की पौराणिक कथा
निर्जला एकादशी का उल्लेख महाभारत काल से मिलता है। पांडवों में से भीमसेन को भूख बहुत लगती थी, इसलिए वह एकादशी का व्रत नहीं रख पाते थे।
जब उन्होंने महर्षि व्यास से इस बारे में मार्गदर्शन माँगा, तब व्यासजी ने उन्हें यह सुझाव दिया कि यदि वे सालभर की सभी एकादशियों का फल एक साथ पाना चाहते हैं, तो केवल निर्जला एकादशी का उपवास रखें — वह भी जल त्यागकर।
भीम ने इस कठिन व्रत को रखा और उन्हें सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त हुआ। तभी से इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
यह व्रत मोक्ष, पाप से मुक्ति, मानसिक शांति और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति का सशक्त माध्यम माना जाता है।
✔️ क्या करें और क्या न करें
✅ करें ये कार्य:
- प्रातःकाल स्नान करके व्रत का संकल्प लें
- भगवान विष्णु की पूजा और मंत्रजाप करें
- तुलसी दल का प्रयोग करें पूजा में
- ब्राह्मणों, गरीबों और ज़रूरतमंदों को दान दें
- दिनभर सात्विकता और संयम बनाए रखें
❌ इनसे बचें:
- जल और अन्न का सेवन (पूर्ण निर्जला उपवास करें)
- क्रोध, झूठ, विवाद और तामसिक भोजन
- दिन में सोना या निष्क्रिय रहना
- अनावश्यक सोशल मीडिया, टीवी आदि
- धार्मिक अपमानजनक बातों से दूरी रखें
इन्हीं शुद्ध नियमों के साथ जैसे सुहागिन महिलाएं वट सावित्री व्रत के दिन पति की दीर्घायु के लिए कठिन उपवास रखती हैं, वैसे ही निर्जला एकादशी का पालन करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
इस संबंध में आप Vat Savitri Vrat 2025 का लेख भी पढ़ सकते हैं, जो सुहाग और आस्था से जुड़ी विशेष जानकारी देता है।
🎁 व्रत के दिन दान का महत्व
इस दिन जल दान को विशेष फलदायक माना जाता है। खासकर, तपते हुए मौसम में किसी प्यासे को जल पिलाना सबसे बड़ा पुण्य है।
दान के लिए उपयुक्त वस्तुएं:
- तांबे के बर्तन में जल
- छाता, चप्पल, वस्त्र
- शीतल पेय या शर्बत
- फल, अनाज, मिश्री
- गऊ सेवा या ब्राह्मण भोजन
ऐसा माना जाता है कि इन चीजों का दान करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति और सुख-शांति की प्राप्ति होती है।
🧘 निष्कर्ष
निर्जला एकादशी केवल एक उपवास नहीं, बल्कि आत्म-संयम और भक्ति की पराकाष्ठा है। यह दिन शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करने का माध्यम है।
जो श्रद्धा और नियमपूर्वक इस दिन व्रत करता है, उसे पुण्य, शांति और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
आप सभी को निर्जला एकादशी 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं!