पंजाब के Khadoor Sahib से आम आदमी पार्टी के विधायक Manjinder Singh Lalpura और सात अन्य लोगों को 12 साल पुराने छेड़छाड़ व हमले के मामले में दोषी करार दिया गया है। Tarn Taran की अदालत ने यह फैसला सुनाते हुए सजा सुनाने की तारीख 12 सितंबर तय की है। यह फैसला न केवल पीड़िता के लिए बल्कि पूरे राज्य के लिए एक संदेश है कि न्याय देर से भले मिले, पर मिलता जरूर है।
घटना की पृष्ठभूमि
- मामला मार्च 2013 का है, जब एक विवाह समारोह के दौरान पीड़िता के साथ बदसलूकी और मारपीट की गई थी।
- आरोपियों में उस समय के टैक्सी चालक रहे Lalpura और कुछ पुलिसकर्मी शामिल थे।
- शिकायत दर्ज होने के बाद भी मामला वर्षों तक अदालतों में लंबित रहा।
- पीड़िता दलित समुदाय से हैं और इस कारण मामला और भी संवेदनशील माना गया।
अदालत का फैसला
- अदालत ने IPC की धारा 354 (महिला की गरिमा का हनन), धारा 148 और 149 (हथियारबंद दंगा व गैरकानूनी जमावड़ा) और SC/ST अधिनियम की प्रासंगिक धाराओं में दोष सिद्ध किया।
- सात अन्य दोषियों के साथ विधायक को भी तुरंत न्यायिक हिरासत में लिया गया।
- अब अदालत 12 सितंबर को सजा की अवधि तय करेगी।
AAP MLA in Punjab – Manjinder Singh Lalpura has been convicted in a 2013 molestation case of a Dalit girl. He was taken into custody, verdict will come one Sept 12.
Kejriwal promised Badlaav in Punjab but delivered Rubber stamp CM, criminal MLAs, infighting and chaos.
Full… pic.twitter.com/jh0d0fJDeA
— Shantanu (@shaandelhite) September 10, 2025
राजनीतिक असर
- आम आदमी पार्टी पर दबाव बढ़ गया है कि वह इस मामले में स्पष्ट रुख अपनाए।
- विपक्षी दलों ने विधायक के इस्तीफे की मांग करते हुए पार्टी की जिम्मेदारी पर सवाल उठाए हैं।
- विशेषज्ञ मानते हैं कि यह फैसला पंजाब की राजनीति में दलित और महिला मतदाताओं पर प्रभाव डाल सकता है।
- हाल के दिनों में पार्टी नेताओं पर लगे अन्य गंभीर आरोपों ने भी राजनीतिक माहौल को और संवेदनशील बना दिया है। इसी संदर्भ में देखें Pathanmajra विधायक से जुड़ा मामला, जिसमें एक और AAP नेता पर गंभीर आपराधिक आरोप लगे थे।
जनता और सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया
- कई लोगों ने अदालत के फैसले को महिला सुरक्षा और न्याय व्यवस्था में विश्वास बढ़ाने वाला बताया।
- सोशल मीडिया पर न्याय में हुई देरी को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
- लोग उम्मीद जता रहे हैं कि सजा कड़ी हो, ताकि भविष्य में ऐसे अपराधों को रोका जा सके।
पीड़िता और समाज के लिए संदेश
- पीड़िता का 12 साल लंबा संघर्ष दिखाता है कि साहस और कानूनी लड़ाई अंततः न्याय दिला सकती है।
- यह मामला समाज को महिला सुरक्षा और दलित अधिकारों के प्रति सजग रहने की सीख देता है।
- कानून की जानकारी और समय पर शिकायत दर्ज करने की अहमियत भी सामने आई है।
आगे की कानूनी प्रक्रिया
- 12 सितंबर को सजा का ऐलान होगा, जिसमें दोषियों को जेल की अवधि तय की जाएगी।
- दोषी पक्ष उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।
- इस प्रक्रिया पर राज्य के लोग और सामाजिक संगठनों की नज़र बनी रहेगी।
न्याय में देरी पर सवाल
इस फैसले ने न्याय प्रणाली की गति पर एक नई बहस छेड़ दी है। 12 साल तक चले इस मामले ने दिखाया कि गवाहों की सुरक्षा, जांच की गति और सुनवाई की प्राथमिकता में कई कमियाँ हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि शुरुआती स्तर पर साक्ष्य को मज़बूती से पेश किया जाए और पीड़ितों को पर्याप्त संरक्षण मिले, तो ऐसे मामलों का निपटारा जल्दी हो सकता है।
समाज में जागरूकता की ज़रूरत
महिला सुरक्षा के लिए केवल क़ानून होना पर्याप्त नहीं है; समाज में मानसिकता बदलने की भी ज़रूरत है। परिवार, स्कूल और स्थानीय प्रशासन को मिलकर जागरूकता अभियान चलाने चाहिए। विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को यह जानकारी होनी चाहिए कि कानूनी मदद कैसे और कहाँ से मिलेगी। यह मामला इस दिशा में एक सीख है कि पीड़ित की आवाज़ दबाई नहीं जा सकती।
निष्कर्ष
यह फैसला बताता है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है, चाहे वह जनप्रतिनिधि ही क्यों न हो। पीड़िता को न्याय मिलने में समय जरूर लगा, पर सच्चाई और धैर्य ने अंततः जीत दर्ज की। पाठक अपनी राय और अनुभव साझा करके समाज में बदलाव की इस प्रक्रिया का हिस्सा बन सकते हैं।