पंजाब में पराली जलाने के मामलों में तेज़ी देखने को मिल रही है। 16 अक्टूबर 2025 तक राज्य में 165 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से 75 किसानों को कुल ₹3.7 लाख का जुर्माना लगाया गया। यह स्थिति न केवल स्थानीय कृषि क्षेत्रों बल्कि पूरे उत्तर भारत की हवा की गुणवत्ता पर भी असर डाल रही है। सरकार की सख्त कार्रवाई और जागरूकता अभियानों के बावजूद, किसानों द्वारा पराली जलाना अभी भी एक बड़ा चुनौती बना हुआ है।
पराली जलाने की इस प्रवृत्ति का मुख्य कारण है किसानों के पास खेतों में बची फसल अवशेष को जल्दी नष्ट करने का आसान तरीका होना। यह न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है बल्कि स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डालता है, खासकर बच्चों और वृद्धों में।
𝐏𝐮𝐧𝐣𝐚𝐛 𝐬𝐞𝐞𝐬 𝐬𝐮𝐫𝐠𝐞 𝐢𝐧 𝐬𝐭𝐮𝐛𝐛𝐥𝐞 𝐛𝐮𝐫𝐧𝐢𝐧𝐠; 𝟏𝟔𝟓 𝐜𝐚𝐬𝐞𝐬 𝐬𝐨 𝐟𝐚𝐫, 𝟕𝟓 𝐟𝐢𝐧𝐞𝐝 𝐑𝐬 𝟑.𝟕 𝐥𝐚𝐤𝐡
The Punjab Pollution Control Board (#PPCB) has been taking strict action against violators. So far this season, fines of Rs 3.70 lakh have been… pic.twitter.com/aNCAVx4ijv
— IndiaToday (@IndiaToday) October 16, 2025
मामले और जुर्माने का विवरण
राज्य भर में अब तक 165 मामलों की पुष्टि की गई है। इनमें से 75 किसानों को जुर्माना लगाया गया, जिसकी कुल राशि ₹3.7 लाख है। सरकार ने इन मामलों में सख्त प्रवर्तन उपाय अपनाए हैं ताकि आगे से पराली जलाने पर रोक लगाई जा सके।
स्थानीय अधिकारियों द्वारा खेतों की निरंतर निगरानी और निरीक्षण किया जा रहा है। सख्ती से कार्रवाई के बावजूद कुछ किसान अब भी पराली जलाने के रास्ते अपना रहे हैं।
यहाँ यह उल्लेख करना जरूरी है कि सरकार ने किसानों की मदद के लिए विभिन्न सहायता योजनाओं और वित्तीय समर्थन की व्यवस्था की है। इसी संदर्भ में, पहले हुए पंजाब बाढ़ मुआवजा वितरण को देखा जा सकता है, जहाँ सरकार ने 36,000 से अधिक घरों को वित्तीय राहत दी थी। इससे किसानों और आम जनता को राहत मिलती है, साथ ही यह दिखाता है कि सरकार के पास किसानों के समर्थन और नियम-कानून दोनों के लिए संतुलित दृष्टिकोण है।
पर्यावरणीय प्रभाव
पराली जलाने का सबसे बड़ा असर हवा की गुणवत्ता पर पड़ता है। पंजाब और पड़ोसी राज्यों में PM2.5 और PM10 कणों की संख्या बढ़ जाती है, जिससे सांस की बीमारियाँ और एलर्जी जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि पराली जलाने से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी बढ़ता है, जिससे पर्यावरणीय संतुलन प्रभावित होता है। सैटेलाइट मॉनिटरिंग के जरिए भी यह देखा गया है कि हर साल सितंबर-अक्टूबर में पराली जलाने के मामले बढ़ते हैं, जो स्थानीय हवा की गुणवत्ता को खराब करते हैं।
राज्य सरकार ने इस समस्या को रोकने के लिए निगरानी तंत्र और चेतावनी सिस्टम लागू किए हैं, ताकि पराली जलाने वाले किसानों को समय पर चेतावनी दी जा सके।
सरकारी और नीति प्रतिक्रिया
सरकार ने पराली जलाने पर सख्त जुर्माने और कानूनी कार्रवाई शुरू की है। किसानों को चेतावनी दी जा रही है कि अगर वे नियमों का पालन नहीं करेंगे तो कड़ी सज़ा भुगतनी पड़ेगी।
साथ ही, सरकार ने जागरूकता अभियान और प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिसमें किसानों को पराली न जलाने के फायदे और विकल्प बताए जाते हैं।
- Happy Seeder मशीन और bio-decomposer जैसी तकनीकें किसानों को अवशेष नष्ट करने में मदद करती हैं।
- सरकार ने स्थानीय अधिकारियों को निर्देश दिया है कि गहरी निगरानी और समय पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
इन उपायों से किसानों को आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि से लाभ मिलेगा और पराली जलाने की प्रवृत्ति में कमी आएगी।
किसानों का दृष्टिकोण
किसानों के लिए पराली जलाना अक्सर समय और श्रम की कमी के कारण एक आसान विकल्प बन जाता है।
- खेती में नई तकनीक अपनाने की लागत कुछ किसानों के लिए चुनौतीपूर्ण है।
- कुछ किसान कहते हैं कि फसल अवशेष तुरंत हटाना जरूरी होता है ताकि अगली फसल समय पर बोई जा सके।
हालांकि सरकार और स्थानीय समूह विकल्प और तकनीकी सहायता उपलब्ध करा रहे हैं, फिर भी किसानों के लिए आर्थिक और तकनीकी बाधाएँ बनी हुई हैं।
इसलिए यह आवश्यक है कि किसानों को सकारात्मक प्रोत्साहन और सहायता दी जाए, ताकि वे पराली जलाने से बचें और पर्यावरण की सुरक्षा करें।
ऐतिहासिक संदर्भ और रुझान
पंजाब में पराली जलाने की समस्या नई नहीं है। पिछले वर्षों के डेटा से पता चलता है कि सितंबर और अक्टूबर में मामलों में वृद्धि होती रही है।
हालांकि, इस साल की तुलना में पिछले साल कम मामले दर्ज हुए थे, जिसका मुख्य कारण सरकारी सख्ती और जागरूकता अभियान था।
इस साल फिर से 165 मामलों का उछाल दर्शाता है कि समस्या अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है और नियमन और तकनीकी उपायों को और सुदृढ़ करने की जरूरत है।
स्वास्थ्य संबंधी सलाह और जन जागरूकता
पराली जलाने से सांस संबंधी रोग, एलर्जी और आंखों में जलन जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ती हैं।
- आम नागरिकों को सलाह दी जाती है कि PM2.5 और PM10 स्तर अधिक होने पर घर में रहें।
- मास्क पहनना और घर के अंदर हवा को शुद्ध रखना प्रभावी उपाय हैं।
- राज्य सरकार द्वारा जनता को चेतावनी और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी समय-समय पर दी जाती है।
जागरूकता और सावधानी से लोग अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं और पर्यावरण की रक्षा में योगदान कर सकते हैं।
विस्तृत प्रभाव और क्षेत्रीय सहयोग
पंजाब में पराली जलाने का असर दिल्ली-एनसीआर और हरियाणा के शहरों तक पहुंचता है।
- हवा की गुणवत्ता प्रभावित होने से स्वास्थ्य और आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- राज्य सरकारें एक-दूसरे के साथ समन्वय कर रही हैं ताकि पराली जलाने को रोकने के लिए संयुक्त रणनीति बनाई जा सके।
भविष्य में यह आवश्यक होगा कि सख्त नियम, तकनीकी समाधान और किसान समर्थन तीनों का संतुलन बनाए रखा जाए, ताकि पर्यावरणीय नुकसान कम हो और किसान सुरक्षित रहें।
निष्कर्ष और मुख्य बातें
पंजाब में पराली जलाने के 165 मामले और 75 किसानों पर ₹3.7 लाख का जुर्माना दिखाते हैं कि समस्या गंभीर है।
- सरकार ने सख्त कार्रवाई और जागरूकता अभियान शुरू किए हैं।
- किसानों को तकनीकी और वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जा रही है।
- आम जनता को सावधानी और स्वास्थ्य सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिए।
यदि सभी पक्ष मिलकर प्रयास करें, तो पराली जलाने के मामलों में कमी लाई जा सकती है और पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।