सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को आवारा कुत्तों से जुड़े बढ़ते हमलों और रैबीज़ के खतरे पर सुनवाई हुई। केंद्र सरकार ने अदालत के समक्ष बताया कि रैबीज़ और डॉग-बाइट से होने वाली ज्यादातर मौतों में बच्चे शामिल होते हैं। कोर्ट ने इस पर गंभीर चिंता जताते हुए दिल्ली-NCR सहित पूरे देश के राज्यों को कड़े निर्देश देने का संकेत दिया।
पिछले कुछ वर्षों में देशभर में आवारा कुत्तों के हमलों के मामले लगातार बढ़े हैं। कई जगहों पर बच्चों और बुजुर्गों पर हमलों की घटनाएं सुर्खियों में रही हैं। हाल के समय में हुए हादसों ने इस मुद्दे को और भी गंभीर बना दिया है।
जैसे दौसा सड़क हादसा: 7 बच्चे सहित 10 की मौत ने समाज को झकझोर दिया था, वैसे ही डॉग-बाइट और रैबीज़ के मामलों ने भी लोगों की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं।
केंद्र का बयान: बच्चों पर सबसे ज्यादा खतरा
केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि देश में होने वाली रैबीज़ और डॉग-बाइट से जुड़ी मौतों में सबसे अधिक 10 साल से कम उम्र के बच्चे प्रभावित होते हैं। कई मामलों में समय पर इलाज न मिल पाने से हालात बिगड़ते हैं। अदालत ने इस आंकड़े को बेहद चिंताजनक बताते हुए तत्काल ठोस कदम उठाने की जरूरत बताई।
दिल्ली-NCR में हालात और कोर्ट के निर्देश
अदालत ने दिल्ली, नोएडा और गुरुग्राम में आवारा कुत्तों के मामलों को लेकर विशेष चिंता जताई। कोर्ट ने स्थानीय निकायों को आदेश दिया कि 8 हफ्तों के भीतर सभी खतरनाक कुत्तों को शेल्टर में रखा जाए और तब तक उन्हें रिहा न किया जाए। इसके साथ ही, डॉग-बाइट के मामलों में पीड़ित को 4 घंटे के भीतर मेडिकल मदद सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिया गया।
#straydogs | Supreme Court also made this decision because of compulsion as there were many complaints especially street dogs targeted children : @VijayGoelBJP, Ex Union Minister@ShivaniGupta_5 | #PlainSpeak #SupremeCourtofIndia #Dogs pic.twitter.com/A4H3VO5UqE
— News18 (@CNNnews18) August 12, 2025
बच्चों पर हमले: आंकड़े और खतरे
विशेषज्ञों के अनुसार, रैबीज़ एक ऐसी बीमारी है जिसका संक्रमण होने के बाद बचाव लगभग असंभव है। देश में दर्ज होने वाले डॉग-बाइट के मामलों में बच्चों की संख्या सबसे अधिक है क्योंकि वे अक्सर बाहर खेलते हैं और खुद की रक्षा करने में असमर्थ होते हैं।
स्थानीय प्रशासन और सरकार की पहल
कोर्ट के निर्देशों के बाद कई राज्यों ने वैक्सीनेशन अभियान तेज करने और नए शेल्टर होम बनाने की योजना बनाई है। दिल्ली-NCR में RWA और नगर निगम मिलकर ऐसे इलाकों की पहचान कर रहे हैं जहाँ कुत्तों के हमले ज्यादा हो रहे हैं। कुछ राज्यों ने हेल्पलाइन नंबर भी जारी किए हैं ताकि शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई हो सके।
विरोध और चुनौतियां
पशु अधिकार संगठनों ने इस आदेश पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि बिना उचित वैक्सीनेशन और नसबंदी योजना के, केवल कुत्तों को हटाना दीर्घकालिक समाधान नहीं है। इसके अलावा, शेल्टर की कमी और प्रशासनिक संसाधनों की दिक्कतें भी बड़ी बाधा हैं।
समाधान की दिशा में कदम
विशेषज्ञों का मानना है कि वैक्सीनेशन और नसबंदी अभियान, स्कूलों में बच्चों को जागरूक करने वाले कार्यक्रम, और समुदाय स्तर पर सहयोग ही इस समस्या का स्थायी हल हैं। इसके साथ ही, जिम्मेदार पेट-ओनरशिप और समय पर चिकित्सा सेवाएं भी जरूरी हैं।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से यह स्पष्ट है कि अब इस समस्या को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। बच्चों की सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए प्रशासन, समाज और न्यायपालिका को मिलकर काम करना होगा। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कोर्ट के निर्देशों को जमीनी स्तर पर कितनी गंभीरता से लागू किया जाता है।