पाकिस्तान के सेना प्रमुख को अमेरिका के प्रतिष्ठित सैन्य दिवस कार्यक्रम में आमंत्रण भेजे जाने की खबर ने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी है। खासतौर पर तब, जब यह सूचना सामने आई कि इसे लेकर भारत सरकार को कोई पूर्व जानकारी नहीं थी। इस खबर पर सबसे तीखा बयान आया एक वरिष्ठ राजनीतिक नेता की ओर से, जिन्होंने कहा—“अमेरिका आखिर कर क्या रहा है?” इस एक सवाल ने कई कूटनीतिक और राजनीतिक चिंताओं को जन्म दे दिया है।
🪖 अमेरिका का आमंत्रण – क्या है पूरा मामला?
बताया जा रहा है कि पाकिस्तान की सेना के प्रमुख को अमेरिकी सेना दिवस कार्यक्रम में शामिल होने का निमंत्रण भेजा गया है। यह कार्यक्रम अमेरिकी सेना की प्रतिष्ठा और सैन्य साझेदारी को दर्शाने वाला सालाना आयोजन होता है। भारत के लिए यह मुद्दा इसलिए संवेदनशील बन गया क्योंकि पाकिस्तान की सेना के साथ भारत के रिश्ते न केवल ऐतिहासिक रूप से तनावपूर्ण रहे हैं, बल्कि हाल के वर्षों में आतंकवाद और सीमा पार गतिविधियों को लेकर भी खटास बनी हुई है।
इस न्योते के बारे में भारत को कोई आधिकारिक सूचना नहीं थी। हालांकि, यह जानकारी जब सामने आई तो भारतीय राजनीति में सवालों की बाढ़ आ गई।
🗣️ कांग्रेस का विरोध – जयराम रमेश ने क्यों जताई नाराज़गी?
एक प्रमुख विपक्षी नेता ने इस मामले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि अगर अमेरिका वास्तव में पाकिस्तान की सेना को ऐसे सम्मानजनक मंचों पर जगह दे रहा है, तो यह भारत के साथ उसके रणनीतिक रिश्तों पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।
उन्होंने कहा—“क्या अमेरिका फिर से वही नीति अपना रहा है जिसमें भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू पर तोलने की कोशिश होती है?” यह बयान देश में एक नई बहस को जन्म देता है—क्या भारत की वैश्विक स्थिति को लेकर कोई गंभीर राजनयिक चुनौती खड़ी हो रही है?
#WATCH | Delhi | “Yesterday, Indian diplomacy, India itself received three huge setbacks at the hands of the United States. It raises serious questions on the US policy. It’s a warning, it’s a challenge. First setback – US Central Command’s head, General Michael Kurilla, uses the… pic.twitter.com/pJT44l8WQ0
— ANI (@ANI) June 12, 2025
⚖️ क्या ये भारत के लिए कूटनीतिक झटका है?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह कदम निश्चित रूप से भारत के लिए एक कूटनीतिक संकेत है। भारत लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्वतंत्र पहचान और वैश्विक नेतृत्व भूमिका को मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में पाकिस्तान के सैन्य नेतृत्व को दिए गए सम्मानजनक मंच भारत की उस छवि को प्रभावित कर सकते हैं।
यह केवल आमंत्रण नहीं है, बल्कि इसके पीछे की ‘टोन’ और ‘टाइमिंग’ भी अहम हैं। ऐसे समय में जब भारत और अमेरिका कई रणनीतिक मुद्दों पर एकमत दिखते हैं, यह घटनाक्रम असहजता बढ़ाने वाला है।
भारत-अमेरिका संबंधों पर असर पड़ेगा क्या?
भारत और अमेरिका के बीच बीते एक दशक में गहरा सामरिक सहयोग हुआ है। रक्षा, तकनीक, व्यापार और रणनीतिक मुद्दों पर दोनों देशों की साझेदारी दुनिया के लिए मिसाल बन चुकी है। लेकिन ऐसी घटनाएं उस भरोसे में दरार ला सकती हैं।
भारत ने अमेरिकी नेतृत्व के साथ QUAD, इंडो-पैसिफिक रणनीति, और डिफेंस ट्रेड जैसे क्षेत्रों में मजबूत साझेदारी बनाई है। ऐसे में पाकिस्तान की सेना को दिए गए मंच से यह संदेश जा सकता है कि अमेरिका अपनी नीति में संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है, भले ही इससे भारत असहज हो।
Imagine a US army General praising Pakistan over counter terrorism, Now stop Imagining it is as real as Osama bin Laden Hiding 800 meters away from the Pakistan Military base watch 👇
And the word is that Pakistan’s Chief of Army Staff, Asim Munir, has been invited to the US… pic.twitter.com/NmomMYgFbe
— Aman Agarwal (@amanultimate96) June 11, 2025
भारत में विपक्ष के नेता का यह बयान ऐसे समय में आया है जब विश्व राजनीति में अस्थिरता और सैन्य गठजोड़ों को लेकर लगातार चर्चाएं हो रही हैं। एक ओर अमेरिका अपने रणनीतिक हितों को लेकर पश्चिम एशिया में कदम पीछे खींच रहा है, तो दूसरी ओर घरेलू असंतोष से निपटने के लिए भारी संख्या में सैनिकों को तैनात कर रहा है। हाल ही में अमेरिका ने लॉस एंजेलिस में इराक और सीरिया से भी ज़्यादा सैनिक तैनात किए—जिससे अमेरिका की मौजूदा प्राथमिकताओं और नीतिगत दिशा को समझा जा सकता है।
🏛️ विपक्षी राजनीति और संसद की विशेष सत्र की मांग
इस घटनाक्रम ने विपक्ष को एक बड़ा मुद्दा दे दिया है। कई नेताओं का कहना है कि इस मामले पर संसद में विशेष चर्चा होनी चाहिए। मांग की गई है कि इस न्योते के पीछे अमेरिका की मंशा और भारत सरकार की प्रतिक्रिया को लेकर एक विशेष सत्र बुलाया जाए।
इस मांग के पीछे तर्क है कि भारत की विदेश नीति को लेकर यदि कोई गंभीर संकेत मिलते हैं, तो उस पर देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था में चर्चा होना जरूरी है।
📜 अमेरिका की ‘हाइफ़नेशन’ नीति – पुराना जख्म फिर हरा?
भारत ने वर्षों तक यह प्रयास किया कि उसे वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान से अलग एक स्वतंत्र, सशक्त राष्ट्र के रूप में देखा जाए। इसके लिए “India-Pakistan hyphenation” जैसी अमेरिकी नीतियों का कड़ा विरोध भी किया गया। भारत की विदेश नीति का मूल यही रहा है कि उसे पाकिस्तान के साथ जोड़कर न देखा जाए।
लेकिन इस न्योते से एक बार फिर यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या अमेरिका फिर से ‘हाइफ़नेशन’ की ओर लौट रहा है? भारत के कूटनीतिक हलकों में यह चिंता अब ज़ाहिर हो रही है।
🔍आगे का रास्ता क्या हो सकता है?
भारत के सामने अब दो रास्ते हैं—या तो इस घटना को नजरअंदाज कर सामान्य राजनयिक प्रक्रिया के तहत निपटाया जाए, या फिर अमेरिका से औपचारिक बातचीत कर अपनी स्थिति स्पष्ट की जाए। यह स्थिति इस लिहाज से संवेदनशील है क्योंकि इसमें भारत की प्रतिष्ठा और साझेदारी की दिशा दोनों शामिल हैं।
साथ ही, भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी विदेश नीति की संप्रभुता और रणनीतिक स्वतंत्रता बनी रहे, चाहे अंतरराष्ट्रीय मंच पर कोई भी फैसला हो। यह सिर्फ अमेरिका या पाकिस्तान का मामला नहीं है, बल्कि भारत की वैश्विक स्थिति से जुड़ा सवाल बन गया है।
📢 अब आपके विचार?
आपको क्या लगता है — क्या अमेरिका का यह कदम सही था?
क्या भारत को इसे नजरअंदाज करना चाहिए या कड़ी प्रतिक्रिया देनी चाहिए?
नीचे कमेंट करके अपनी राय जरूर साझा करें।