अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बयान में दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया है कि भारत अब रूस से तेल की खरीद धीरे-धीरे बंद करेगा। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इस फैसले की कोई स्पष्ट समयसीमा तय नहीं की गई है।
ट्रम्प के इस बयान के बाद भारत की विदेश नीति और ऊर्जा रणनीति को लेकर वैश्विक स्तर पर चर्चा तेज हो गई है।
ट्रम्प का दावा और उसके राजनीतिक मायने
ट्रम्प ने कहा कि हाल ही में हुई बातचीत के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें भरोसा दिलाया कि भारत भविष्य में रूस से तेल खरीदना बंद करने की दिशा में काम करेगा।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत की ऊर्जा आवश्यकताएं बहुत बड़ी हैं, इसलिए यह बदलाव अचानक नहीं हो सकता।
यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका और यूरोप रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हुए हैं और यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक तेल बाजार में अस्थिरता बनी हुई है।
ट्रम्प के बयान ने अमेरिकी राजनीति में भी हलचल मचा दी है। कई विश्लेषक इसे ट्रम्प की ओर से एक कूटनीतिक संकेत मान रहे हैं, जिससे वे भारतीय समुदाय और वैश्विक राजनीति दोनों पर प्रभाव डालना चाहते हैं।
🚨 BREAKING 🚨
Donald Trump claims PM Modi assured him that India will stop buying Russian oil. 😳
So Modi has now surrendered India’s energy independence — just to please Trump & Adani’s US interests?From “Vishwa Guru” to Washington’s puppet, the fall is complete.
National… pic.twitter.com/NSR1AlOKRG— Amar Singh Chouhan (@amar_4inc) October 16, 2025
मोदी का आश्वासन और अस्पष्ट समयसीमा
ट्रम्प के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने यह भरोसा जरूर दिया कि भारत रूस से तेल खरीद कम करेगा, लेकिन कब से और किस चरण में, इस पर कोई स्पष्टता नहीं दी गई।
भारत ने अब तक रूस से सस्ते दरों पर तेल खरीदना जारी रखा है, जिससे घरेलू बाजार में पेट्रोलियम कीमतें नियंत्रित रही हैं।
हालांकि, अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद भारत ने हमेशा यह कहा है कि उसका निर्णय पूरी तरह राष्ट्रीय हितों के अनुरूप होगा।
यह अस्पष्टता बताती है कि भारत फिलहाल व्यावहारिक नीति पर चल रहा है — यानी एक तरफ रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना, तो दूसरी ओर अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ रिश्ते भी मजबूत रखना।
भारत की ऊर्जा नीति और रूस पर निर्भरता
भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का बड़ा हिस्सा आयात के ज़रिए पूरा करता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूस ने कई देशों को छूट दरों पर कच्चा तेल बेचना शुरू किया, और भारत ने इस अवसर का लाभ उठाया।
2022 के बाद से भारत के रूस से तेल आयात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इस कदम से भारतीय उपभोक्ताओं को कुछ राहत मिली, लेकिन पश्चिमी देशों ने इस नीति पर आपत्ति भी जताई।
भारत की स्थिति जटिल है — एक तरफ आर्थिक व्यावहारिकता है, दूसरी ओर वैश्विक दबाव।
अगर भारत रूस से खरीद बंद करता है, तो उसे वैकल्पिक स्रोतों जैसे सऊदी अरब, अमेरिका और अफ्रीका पर निर्भर होना पड़ेगा, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं।
अमेरिकी राजनीति में ट्रम्प का उद्देश्य
ट्रम्प वर्तमान में अमेरिकी राष्ट्रपति पद की दौड़ में फिर से शामिल हैं। उनका यह बयान भारत के साथ अपने पुराने समीकरणों को ताज़ा करने और एशिया में अपनी कूटनीतिक छवि को मजबूत करने का संकेत माना जा रहा है।
ट्रम्प ने हमेशा भारत और पीएम मोदी की सार्वजनिक रूप से प्रशंसा की है। वे कई बार यह कह चुके हैं कि “मोदी एक मजबूत नेता हैं, जो भारत को नई दिशा दे रहे हैं।”
हालांकि, यह बयान ऐसे समय पर आया है जब अमेरिका खुद भी ऊर्जा कीमतों और रूस पर प्रतिबंधों की वजह से आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है। ऐसे में ट्रम्प का यह दावा अमेरिकी मतदाताओं को यह दिखाने की कोशिश भी हो सकता है कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत रिश्ते रख सकते हैं।
रूस और चीन पर ट्रम्प की टिप्पणी
ट्रम्प ने अपने बयान में यह भी कहा कि अगर भारत वास्तव में रूस से तेल खरीद बंद करता है, तो यह कदम न सिर्फ ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव लाएगा बल्कि अमेरिका-भारत के रिश्तों को नई दिशा देगा। यह कहना जितना महत्व रखता है, उतना ही सवाल भी खड़ा करता है — क्या यह घोषणा केवल बयानबाजी है या जल्द ही नीति में भी परिलक्षित होगी? इस दिशा की संभावनाओं पर अधिक जानने के लिए आप पढ़ सकते हैं इज़राइल-हमास संघर्षविराम से जुड़े ट्रम्प के दावों पर हमारी लाइव अपडेट रिपोर्ट।
उनका यह बयान यह संकेत देता है कि वे भारत को पश्चिमी दुनिया के साथ और अधिक जोड़ना चाहते हैं, ताकि रूस और चीन के गठजोड़ को कमजोर किया जा सके।
फिर भी, भारत का रुख हमेशा से स्पष्ट रहा है — वह किसी भी ब्लॉक का हिस्सा नहीं बनना चाहता, बल्कि संतुलन और स्वतंत्र नीति पर विश्वास रखता है।
भारत की आधिकारिक प्रतिक्रिया और विशेषज्ञों की राय
भारत सरकार की ओर से इस बयान पर अभी तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
विदेश मंत्रालय आमतौर पर ऐसे अंतरराष्ट्रीय दावों पर टिप्पणी करने से बचता है।
हालांकि, नीति विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की स्थिति “संतुलित कूटनीति” की है — जो न तो रूस का पक्ष लेता है और न ही पश्चिम का सीधा अनुसरण करता है।
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि भारत की प्राथमिकता अपने आर्थिक हितों की रक्षा करना है। अगर रूस से सस्ता तेल मिल रहा है और इससे घरेलू कीमतों पर नियंत्रण रहता है, तो भारत के लिए यह एक व्यावहारिक कदम है।
लेकिन अगर अंतरराष्ट्रीय दबाव बहुत बढ़ता है, तो भारत धीरे-धीरे आयात में विविधता ला सकता है।
वैश्विक बाजार पर संभावित असर
अगर भारत वास्तव में रूस से तेल खरीद कम करता है, तो यह कदम वैश्विक बाजार को सीधे प्रभावित करेगा।
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है, इसलिए इसकी नीतियां वैश्विक कीमतों पर असर डालती हैं।
इससे अमेरिका और यूरोप को अल्पकालिक राहत मिल सकती है, लेकिन एशियाई देशों के लिए ऊर्जा की लागत बढ़ सकती है।
तेल उत्पादक देशों के समूह ओपेक (OPEC) के लिए भी यह स्थिति नई चुनौती होगी, क्योंकि बाजार संतुलन बनाए रखना कठिन हो सकता है।
राजनीतिक विश्लेषण: मोदी-ट्रम्प समीकरण और भविष्य की दिशा
डोनाल्ड ट्रम्प और नरेंद्र मोदी के रिश्ते हमेशा सौहार्दपूर्ण रहे हैं।
ट्रम्प ने अपने कार्यकाल के दौरान भारत को “विश्व का भरोसेमंद साझेदार” कहा था।
मोदी ने भी ट्रम्प की मौजूदगी में “Howdy Modi” जैसे कार्यक्रमों के जरिए दोनों देशों की साझेदारी को मजबूत संदेश दिया था।
यह बयान शायद उसी व्यक्तिगत समीकरण का विस्तार है।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत किसी भी देश के साथ अपने संबंधों को राष्ट्रीय हितों के आधार पर तय करता है।
भविष्य में अगर ट्रम्प फिर से सत्ता में आते हैं, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भारत पर रूस से दूरी बनाने का वास्तविक दबाव डाला जाएगा या नहीं।
बयान से उठे सवाल और आगे की दिशा
ट्रम्प के इस बयान ने भारत की विदेश नीति और ऊर्जा रणनीति को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं।
क्या भारत वाकई रूस से तेल खरीद बंद करेगा, या यह केवल राजनीतिक संवाद का हिस्सा है?
फिलहाल, भारत के लिए सबसे बड़ा लक्ष्य अपनी ऊर्जा सुरक्षा को बनाए रखना है, और मोदी सरकार इस दिशा में सावधानीपूर्वक कदम उठा रही है।
यह बयान निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय मंच पर नई बहस की शुरुआत करेगा —
जहां एक ओर अमेरिका भारत के सहयोग की उम्मीद कर रहा है, वहीं भारत अपने आर्थिक हितों को प्राथमिकता देने के लिए तैयार है।
आपका इस पूरे घटनाक्रम पर क्या विचार है?
क्या भारत को रूस से तेल खरीद रोकनी चाहिए या अपनी स्वतंत्र नीति पर कायम रहना चाहिए?
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