जम्मू-कश्मीर में बीते कुछ दिनों में पानी को लेकर एक बड़ा राजनीतिक मोड़ आया है। राज्य के मुख्यमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि वे अपने राज्य की नदियों का पानी किसी और राज्य की ओर मोड़ने को तैयार नहीं हैं। यह फैसला ऐसे समय पर लिया गया जब अन्य राज्य जल संकट का सामना कर रहे हैं और इस मुद्दे पर सहयोग की उम्मीद कर रहे थे।
मुख्यमंत्री का यह कहना कि “राज्य के संसाधन पहले राज्यवासियों के लिए हैं,” एक सख्त लेकिन संवेदनशील निर्णय की ओर इशारा करता है।
इस बयान के साथ ही राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है।
राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज
मुख्यमंत्री की इस दो-टूक नीति से विपक्षी दलों और विभिन्न संगठनों की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। किसी ने इसे राष्ट्रीय एकता के खिलाफ बताया, तो किसी ने मुख्यमंत्री की भूमिका की सराहना की। मामला धीरे-धीरे सिर्फ जल विवाद तक सीमित नहीं रहा, बल्कि बयानबाज़ी का दौर भी शुरू हो गया। ऐसे समय में जब देश के कई राज्यों में उपचुनाव की सरगर्मी तेज है और राजनैतिक बयान और फैसले आम जनता को सीधे प्रभावित कर रहे हैं, इस तरह के मुद्दों का उठना सत्ता समीकरणों पर भी असर डाल सकता है।
यह जानना भी रोचक है कि किन 5 राज्यों में उपचुनाव चल रहे हैं और नतीजे कब आएंगे।
जल पर अधिकार या नैतिक दायित्व?
यह सवाल अब उठ खड़ा हुआ है कि क्या कोई राज्य अपने पास मौजूद प्राकृतिक संसाधनों को साझा करने से इनकार कर सकता है? क्या यह पूरी तरह उसका अधिकार है? या फिर नैतिक रूप से सभी राज्यों को जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए?
मुख्यमंत्री का यह रुख दर्शाता है कि वे अपने राज्य की भौगोलिक और पर्यावरणीय सीमाओं को समझते हुए निर्णय ले रहे हैं। उनका मानना है कि जब खुद राज्य को जल की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पा रही, तब अन्य राज्य को देना व्यवहारिक नहीं।
No leader from Jammu will speak for the people of Jammu the way Hon’ble CM @OmarAbdullah did.
⚡ Straightforward: No water to Punjab. First priority is Jammu’s people – only then we’ll think of others. That’s leadership. 🔥✊ pic.twitter.com/ds5M7d30kI
— Rohit Choudhary (@iRohitChoudhary) June 20, 2025
जनता की प्रतिक्रिया: समर्थन भी, सवाल भी
सोशल मीडिया और डिजिटल मंचों पर इस फैसले को लेकर जनता के बीच मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग इस निर्णय को राज्य की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक साहसिक कदम बता रहे हैं, वहीं कुछ इसे सहयोग की भावना के विपरीत मानते हैं।
एक यूजर ने लिखा, “अपने संसाधनों की रक्षा करना गलत नहीं, लेकिन संवाद जरूरी है।”
राज्य की जल स्थिति: क्या सच में जरूरत है बचाव की?
इस पूरे प्रकरण के केंद्र में है राज्य की जल स्थिति। मौसम में लगातार बदलाव, बर्फबारी में गिरावट और जलस्रोतों पर बढ़ता दबाव राज्य के लिए पहले से ही चुनौती बना हुआ है। कृषि, पेयजल और घरेलू उपयोग के लिए पहले ही सीमित संसाधन हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले वर्षों में राज्य को जल संकट से बचने के लिए जल-संरक्षण और सतत उपयोग की दिशा में सख्त कदम उठाने होंगे।
दूसरे राज्य की अपेक्षाएं: क्या वाजिब हैं मांगें?
अन्य राज्यों, विशेषकर पड़ोसी क्षेत्रों में, पानी की मांग तेजी से बढ़ रही है। कृषि में अत्यधिक भूजल उपयोग और मानसून पर निर्भरता ने उनकी स्थिति को नाजुक बना दिया है। ऐसे में वे जम्मू-कश्मीर जैसे जल-समृद्ध क्षेत्रों की ओर उम्मीद से देख रहे हैं।
लेकिन यह सवाल बना हुआ है कि क्या सिर्फ आवश्यकता होना ही संसाधन के बंटवारे की गारंटी देता है?
“जरूरतें सबकी हैं, लेकिन सीमाएं भी सबकी होती हैं,” यह एक विशेषज्ञ की सोच को दर्शाता है।
सांस्कृतिक बयानबाज़ी से बढ़ा विवाद
मुख्यमंत्री के इनकार के बाद एक वरिष्ठ नेता ने टिप्पणी की कि “यह सिर्फ पानी नहीं, संस्कृति की बात है।” इस कथन ने विवाद को नया मोड़ दे दिया। अब बात सिर्फ जल की नहीं रही, बल्कि भावनाओं और राज्यों की ‘संस्कृति’ की भी हो गई।
मुख्यमंत्री ने बिना नाम लिए इस बयान पर भी प्रतिक्रिया दी और कहा कि “हम केवल भावनाओं से नहीं, ज़मीनी सच्चाई से फैसले लेते हैं।”
क्या समाधान संभव है?
जल जैसे संवेदनशील मुद्दों पर त्वरित निर्णय के बजाय समन्वय और संवाद की ज़रूरत होती है। एक राज्य की जरूरतें दूसरे राज्य से अलग हो सकती हैं, लेकिन राष्ट्रीय हित में सहयोग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
इस विवाद से स्पष्ट है कि अब समय आ गया है जब जल नीति पर राष्ट्रीय स्तर पर दोबारा विमर्श हो। केंद्र और राज्य मिलकर जल-साझेदारी, जल-संरक्षण और भविष्य की जरूरतों के मद्देनजर एक पारदर्शी नीति बनाएँ।
समाधान संवाद में ही है
हर राज्य को अपनी ज़रूरतों की पूर्ति करनी होती है, लेकिन देश के रूप में एकजुटता भी उतनी ही ज़रूरी है। यदि एक राज्य संसाधन साझा नहीं कर सकता तो वह अपनी स्थिति स्पष्ट रूप से संवाद के माध्यम से रखे। इससे अन्य राज्यों को भी ज़मीनी सच्चाई समझने का अवसर मिलेगा।
“राज्य हित बनाम राष्ट्रीय सहयोग – संतुलन ही आगे की राह है।”