बिहार चुनावी संग्राम से पहले सुप्रीम कोर्ट में SIR पर आज LIVE सुनवाई
बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखें घोषित होने के बाद राजनीतिक माहौल तेजी से गरमाता जा रहा है। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट में आज SIR (Special Intensive Revision) प्रक्रिया को लेकर अहम सुनवाई होने जा रही है। यह सुनवाई पहली बार उस समय हो रही है जब अंतिम मतदाता सूची जारी की जा चुकी है, जिससे पूरे राजनीतिक परिदृश्य पर इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की यह सुनवाई केवल चुनावी प्रक्रिया तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोकतांत्रिक पारदर्शिता और मतदाता अधिकारों की दिशा में भी एक बड़ा कदम माना जा रहा है। अदालत यह तय करेगी कि क्या SIR प्रक्रिया के दौरान उठाए गए सवाल चुनाव की निष्पक्षता को प्रभावित करते हैं या नहीं।
इससे पहले बिहार से जुड़ी राजनीतिक चर्चा पर विस्तृत रिपोर्ट यहां पढ़ें Bihar Elections 2025: NDA vs INDIA Bloc poll dates announcement
क्या है SIR और क्यों है यह मामला सुप्रीम कोर्ट में?
SIR यानी Special Intensive Revision दरअसल एक प्रक्रिया है जिसके तहत मतदाता सूची को अपडेट किया जाता है। इसमें नए वोटरों का नाम जोड़ा जाता है और मृत या दोहरी प्रविष्टियों को हटाया जाता है। बिहार में यह प्रक्रिया इस साल फरवरी से शुरू हुई थी और सितंबर के आखिरी हफ्ते में अंतिम सूची जारी कर दी गई।
लेकिन कई राजनीतिक दलों ने आरोप लगाया कि इस दौरान हजारों वोटर नाम गलत तरीके से हटाए गए हैं और कई जगह राजनीतिक प्रभाव के चलते बदलाव किए गए। इन्हीं आरोपों के बाद कुछ याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
U read @ECISVEEP to announce Bihar Assembly election dates at 4 pm today. You read it wrong.
ECI to announce FINAL DE@TH WARRANT of Anti-SIR campaign run to save Secular Vote Bank of ILLEGAL ALIENS at 4 pm today!
EVEN SC CAN’T INTEREFERE NOW ONCE ELECTION SCHEDULE IS ANNOUNCED.… pic.twitter.com/bM3BpkEH7l
— BhikuMhatre (@MumbaichaDon) October 6, 2025
सुप्रीम कोर्ट में क्या मांग रखी गई है?
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अंतिम सूची में कई अनियमितताएं हैं और आयोग ने शिकायतों पर समुचित सुनवाई नहीं की। उन्होंने अदालत से मांग की है कि चुनाव आयोग को पारदर्शी ऑडिट के निर्देश दिए जाएं और आवश्यकता पड़ने पर मतदाता सूची की पुनः समीक्षा करवाई जाए।
साथ ही उन्होंने यह भी आग्रह किया कि जब तक इस पर अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक चुनाव की अधिसूचना पर रोक लगाई जाए। हालांकि चुनाव आयोग का तर्क है कि सारी प्रक्रिया नियमानुसार और समयसीमा के भीतर पूरी की गई है।
चुनाव आयोग का पक्ष – पारदर्शिता और प्रक्रिया पर भरोसा
भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बिहार में SIR प्रक्रिया के दौरान 2 करोड़ से अधिक मतदाताओं के रिकॉर्ड की जांच की गई।
आयोग ने कहा कि हर जिले में ब्लॉक लेवल ऑफिसर (BLO) को स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि किसी भी नाम को हटाने या जोड़ने से पहले सत्यापन जरूरी है।
आयोग का यह भी कहना है कि राजनीतिक दलों को पर्याप्त अवसर दिए गए थे ताकि वे अपने सुझाव या आपत्तियाँ दर्ज करा सकें। अब जबकि अंतिम मतदाता सूची जारी हो चुकी है, तो प्रक्रिया में दखल से चुनावी कैलेंडर पर असर पड़ सकता है।
राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं
बिहार की राजनीति में यह मुद्दा अब सबसे बड़ा सियासी बहस का विषय बन गया है।
NDA के नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का स्वागत करते हुए कहा कि इससे विपक्ष के “झूठे आरोपों” का पर्दाफाश होगा। वहीं INDIA ब्लॉक ने कहा कि मतदाता सूची में अनियमितताएं लोकतंत्र के मूल सिद्धांत पर सवाल उठाती हैं।
जनता दल (यूनाइटेड) और बीजेपी का कहना है कि आयोग ने निष्पक्ष तरीके से काम किया है और विपक्ष केवल माहौल बनाना चाहता है। दूसरी ओर राजद और कांग्रेस का दावा है कि कई सीटों पर वोटर लिस्ट में जानबूझकर गड़बड़ी की गई है जिससे चुनावी नतीजों को प्रभावित किया जा सके।
बिहार की जनता की उम्मीदें – पारदर्शिता सबसे ऊपर
सुनवाई से पहले बिहार के आम मतदाताओं के बीच भी इस मामले को लेकर काफी उत्सुकता है।
लोगों का मानना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है तो यह लोकतंत्र के लिए एक मिसाल होगी।
कई सामाजिक संगठनों और नागरिक मंचों ने भी यह मांग उठाई है कि मतदाता सूची को पूरी तरह सार्वजनिक और सत्यापन योग्य बनाया जाए, ताकि भविष्य में किसी भी स्तर पर गड़बड़ी न हो।
क्या असर पड़ेगा सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बिहार चुनावों पर?
विशेषज्ञों का मानना है कि अदालत का फैसला चाहे जो भी हो, उसका चुनावी माहौल पर असर तय है।
अगर कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में निर्णय दिया तो आयोग को सूची की समीक्षा करनी पड़ सकती है, जिससे चुनाव कार्यक्रम में देरी हो सकती है।
वहीं अगर अदालत ने आयोग के पक्ष में फैसला सुनाया, तो विपक्ष को रणनीति में बड़ा बदलाव करना पड़ेगा।
यह मामला अब सिर्फ कानूनी नहीं रहा, बल्कि लोकतांत्रिक आस्था और पारदर्शिता का प्रतीक बन गया है।
राजनीतिक समीकरण – NDA बनाम INDIA ब्लॉक का संग्राम
बिहार में सत्तारूढ़ NDA गठबंधन (जिसमें बीजेपी, जेडीयू और सहयोगी दल शामिल हैं) को एकजुटता दिखाने की चुनौती है, जबकि विपक्षी INDIA गठबंधन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आक्रामक रुख अपनाए हुए है।
SIR पर विवाद ने दोनों गुटों को राजनीतिक नैरेटिव गढ़ने का मौका दिया है।
NDA इसे “विपक्ष की हताशा” बता रहा है, वहीं विपक्ष इसे “लोकतंत्र की परीक्षा” कह रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान दोनों गुटों के प्रतिनिधि दिल्ली में मौजूद रहेंगे।
नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर की भूमिका
इस पूरे परिदृश्य में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भूमिका भी दिलचस्प है।
वह लगातार यह दावा करते रहे हैं कि सरकार और आयोग दोनों निष्पक्ष हैं।
दूसरी ओर, प्रशांत किशोर (PK) ने कहा है कि बिहार के मतदाता अब सिर्फ विकास और स्थिरता चाहते हैं, न कि झूठे वादे।
PK का मानना है कि SIR विवाद से जनता के मन में पारदर्शिता की मांग और मजबूत होगी, जिससे आने वाले चुनावों में “युवाओं और नए मतदाताओं” की भूमिका अहम होगी।
VIDEO | Patna: CPI (ML) General Secretary Dipankar Bhattacharya, reacting to announcement of Bihar Assembly Election 2025, said, “The way the election dates have been announced is quite surprising. Tomorrow, the Supreme Court is scheduled to hold the final hearing on the entire… pic.twitter.com/EBzkRTPIoQ
— Press Trust of India (@PTI_News) October 6, 2025
सुप्रीम कोर्ट की अगली कार्यवाही और संभावनाएं
अदालत ने आज की सुनवाई में सभी पक्षों से जवाब मांगा है और यह संकेत दिया है कि अगली तारीख पर विस्तृत बहस की जाएगी।
संभावना है कि कोर्ट चुनाव आयोग से एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहे ताकि यह स्पष्ट हो सके कि मतदाता सूची में कौन से परिवर्तन हुए हैं और क्यों।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह सुनवाई आने वाले हफ्तों में बिहार की सियासत की दिशा तय कर सकती है।
लोकतंत्र की परीक्षा में बिहार
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब सिर्फ सत्ता परिवर्तन का प्रश्न नहीं रह गया है, बल्कि यह तय करेगा कि भारत का लोकतंत्र कितना पारदर्शी और मजबूत है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई से जहां एक ओर मतदाता जागरूकता बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दलों पर भी जवाबदेही का दबाव है।
आने वाले कुछ दिन इस सवाल का जवाब देंगे कि क्या बिहार एक नए लोकतांत्रिक अध्याय की ओर बढ़ेगा या पुरानी राजनीतिक चालें ही दोहराई जाएंगी।
आपका क्या मानना है? क्या सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बिहार चुनावों की दिशा बदल देगा? अपनी राय नीचे कमेंट में ज़रूर बताएं।