रेलवे में नौकरी के बदले जमीन देने का मामला, जिसे अब ‘लैंड फॉर जॉब्स घोटाले’ के नाम से जाना जाता है, एक बार फिर चर्चा में है। इस मामले में CBI ने हाल ही में जो नई जानकारी पेश की है, उसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। रिपोर्ट के अनुसार, रेलवे मंत्रालय पर कुछ उम्मीदवारों की फाइलों को पास करने के लिए सीधा दबाव बनाया गया था — और यह दबाव किसी और ने नहीं, बल्कि तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के प्रभाव में बनाया गया था।
🔹 सीबीआई का दावा: नियुक्तियों में दबाव और पक्षपात
सीबीआई की जांच में यह सामने आया है कि रेलवे मंत्रालय में वर्ष 2004 से 2009 के बीच बिहार राज्य के चुनिंदा उम्मीदवारों की फाइलों को बिना प्रक्रियागत जांच के पास किया गया। इन उम्मीदवारों ने रेलवे में नौकरी पाने के एवज में लालू परिवार को जमीन दी थी, जिसे बाद में बेहद कम कीमत पर लालू यादव के परिजनों के नाम ट्रांसफर किया गया।
सीबीआई ने यह भी कहा कि मंत्रालय के अधिकारियों पर दबाव डाला गया था कि वे आवेदन जल्दी पास करें, और किसी प्रकार की आपत्ति दर्ज न करें। अधिकारियों ने जांच एजेंसी को बताया कि राजनीतिक दबाव इतना अधिक था कि वे इंकार नहीं कर पाए।
Land-for-jobs case: All applicants from one state, CBI questions recruitment patternhttps://t.co/cb6WYfeXdN
— ThePrintIndia (@ThePrintIndia) June 3, 2025
🔹 दस्तावेज़ और गवाही: कैसे सामने आई सच्चाई?
सीबीआई को मिली दस्तावेज़ी साक्ष्य जैसे कि:
- भर्ती से जुड़ी फाइलें
- जमीन ट्रांसफर के कागजात
- रेलवे मंत्रालय के आंतरिक ईमेल्स
- मंत्रालय अधिकारियों के बयान
इनसे यह स्पष्ट हुआ कि प्रक्रिया का उल्लंघन जानबूझकर किया गया। अफसरों ने माना कि उम्मीदवारों की योग्यता जांचना तक जरूरी नहीं समझा गया, क्योंकि उन्हें पहले ही बता दिया गया था कि ‘ऊपर’ से आदेश है।
CBI का बड़ा खुलासा: ‘जमीन के बदले नौकरी’ में रेलवे मंत्रालय ने डाला दबाव!
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🔹 भर्ती प्रक्रिया में क्या गड़बड़ी हुई?
रेलवे में नियुक्ति की प्रक्रिया में निर्धारित नियमों के तहत:
- नोटिफिकेशन के जरिए रिक्त पद घोषित होते हैं
- लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के बाद ही चयन होता है
- दस्तावेज़ सत्यापन आवश्यक होता है
लेकिन इस केस में इन नियमों को या तो नजरअंदाज किया गया या फिर उनके लिए अलग से छूट दी गई। जिन 12 उम्मीदवारों का ज़िक्र CBI ने अपनी रिपोर्ट में किया है, उनमें से अधिकतर को सीधे नियुक्ति पत्र दे दिए गए, और उनकी योग्यता जांचना तक ज़रूरी नहीं समझा गया।
Wow didn’t know of this jobs for land scheme from Bihar.
Railway ministry exerted excess pressure to clear appointments of candidates who ‘gifted land to Lalu Prasad’: CBI in ‘land-for-jobs’ case https://t.co/AmTmPAIZ25
— Rupak Chattopadhyay (@RupakChatto) June 3, 2025
🔹 जमीन कैसे ट्रांसफर हुई?
सीबीआई की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि रेलवे में नौकरी पाने वाले कई उम्मीदवारों ने पटना, सहरसा, मधुबनी जैसे जिलों में अपनी पुश्तैनी जमीन को रवींद्र प्रसाद यादव, हेमा यादव और मीसा भारती जैसे लालू परिवार के सदस्यों के नाम रजिस्टर्ड करवाया।
उदाहरण के तौर पर एक उम्मीदवार ने महज ₹3 लाख में करीब 10 डिसमिल जमीन दी, जिसकी असल बाजार कीमत लगभग ₹25 लाख थी। यह सभी ट्रांजैक्शन 2004–2009 के बीच हुए, जब लालू यादव रेल मंत्री थे।
🔹 लालू परिवार का पक्ष और प्रतिक्रिया
RJD पार्टी और लालू परिवार ने इस मामले को लेकर CBI पर सवाल उठाए हैं। पार्टी प्रवक्ता ने बयान में कहा कि:
“यह पूरी तरह से राजनीतिक प्रतिशोध है। चुनाव से पहले विपक्ष की छवि खराब करने की साज़िश रची जा रही है।”
लालू यादव और उनके वकील का भी यही कहना है कि उन्होंने किसी से कोई ज़मीन नहीं ली, न ही किसी को नौकरी दिलाने का वादा किया। हालांकि कोर्ट में मामले की सुनवाई अभी चल रही है।
राजनीतिक बयानबाज़ी के बीच हाल ही में एक और विवाद तब खड़ा हुआ जब JDU ने लालू यादव से सवाल किया – ‘जब बहू को घर से निकाला गया तब नैतिकता कहां थी?’ इस तरह के आरोपों से यह साफ है कि विरोधी पार्टियां अब निजी घटनाओं को भी सियासी मुद्दा बना रही हैं।
🔹 मामला कोर्ट में: क्या है वर्तमान स्थिति?
CBI ने दिल्ली की विशेष अदालत में चार्जशीट दाखिल कर दी है। कोर्ट ने सभी आरोपियों को समन भेजा है, और अगली सुनवाई की तारीख जल्द घोषित की जाएगी। ED ने भी इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग का एंगल जोड़ते हुए जांच शुरू कर दी है।
🔹 राजनीतिक असर और आने वाले चुनाव
चूंकि यह केस लोकसभा चुनाव 2024 के ठीक बाद सामने आया, इसलिए इसके राजनीतिक प्रभाव पर बहस तेज हो गई है। BJP ने इसे ‘घोटाले की घड़ी’ कहा है, वहीं RJD इसे जनता को गुमराह करने की चाल बता रही है।
इस केस के चलते विपक्षी गठबंधन ‘INDIA’ की एकता पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि कई नेता अब इससे दूरी बना रहे हैं।
🔹 सरकारी प्रक्रिया में पारदर्शिता होनी चाहिए
इस केस से साफ जाहिर होता है कि अगर सरकारी भर्तियों में पारदर्शिता नहीं होगी, तो जनता का विश्वास टूटेगा। लालू प्रसाद यादव जैसे अनुभवी नेता पर ऐसे आरोप न सिर्फ उनकी साख को प्रभावित करते हैं, बल्कि देश की संस्था जैसे रेलवे की गरिमा को भी नुकसान पहुंचाते हैं।
अब देखना यह है कि अदालत इस केस में क्या फैसला सुनाती है, और क्या राजनीतिक जवाबदेही भी तय होती है या नहीं।