भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने जब 13 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट से रिटायरमेंट लिया, तब किसी को अंदाजा नहीं था कि वे कोई बड़ी घोषणा करने जा रहे हैं। लेकिन जब उन्होंने कहा कि वे रिटायरमेंट के बाद कोई भी सरकारी या अर्ध-सरकारी पद नहीं लेंगे, तो यह खबर कानून जगत में चर्चा का विषय बन गई।
“मैं अब अपनी तीसरी पारी की ओर अग्रसर हूं।”
इस एक पंक्ति में उनके संकल्प, स्पष्टता और निजी दृष्टिकोण की झलक साफ नजर आई।
Delhi: CJI Sanjiv Khanna says, “I begin with a saying, often a person’s true character is revealed in not what they say about themselves, but in what they choose to leave unsaid… This is certainly an emotional moment for me having served on the bench for twenty years…” pic.twitter.com/e0uPSP8wwg
— IANS (@ians_india) May 13, 2025
🔹 कौन हैं CJI संजीव खन्ना?
जस्टिस संजीव खन्ना का नाम भारत की न्यायपालिका में अनुशासन, नैतिकता और निष्पक्षता के प्रतीक के रूप में लिया जाता है। वे 14 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त किए गए थे और 24 अप्रैल 2024 को देश के मुख्य न्यायाधीश बने।
उनका कार्यकाल इंसाफ की पहुंच को सरल बनाने, डिजिटल कोर्ट्स को बढ़ावा देने और संविधान की मूल भावना की रक्षा के लिए याद किया जाएगा। उनका जन्म 14 मई 1960 को हुआ था, और न्यायिक सेवा में चार दशक से अधिक का अनुभव उनके पास है।
दिल्ली हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसलों में भागीदारी की— जिनमें संवैधानिक बेंच के कुछ ऐतिहासिक निर्णय भी शामिल हैं।
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🔹 रिटायरमेंट के बाद की घोषणाएं: क्यों कहा “ना”
अक्सर यह देखा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के जज रिटायरमेंट के बाद किसी न किसी आयोग या पब्लिक बॉडी में नियुक्त किए जाते हैं। लेकिन जस्टिस संजीव खन्ना ने इस परंपरा को तोड़ते हुए स्पष्ट किया कि वे किसी भी सरकारी या संवैधानिक पद को स्वीकार नहीं करेंगे।
Your limited time as Chief Justice of India is memorable and true certificates as a judge for equality and non biased judgements, unlikely to former CJI. Thank you sir 👍 @realsiffnews #SupremeCourt #Judiciary #CJISanjivKhanna #CJIKhanna pic.twitter.com/Tk5jU1MLKq
— Prof. Rahul (@RahulPuneSIFF) May 14, 2025
“मैंने न्यायपालिका की सेवा की है, अब स्वतंत्र रूप से कानून के क्षेत्र में काम करूंगा।” — उन्होंने अपने फेयरवेल स्पीच में ये बात कही।
यह एक साहसिक और प्रेरणादायक कदम है, खासकर तब जब भारत में कई पूर्व न्यायाधीश रिटायरमेंट के बाद भी पदों पर बने रहते हैं।
CJI Sanjiv Khanna to members of the Press: I feel good to hang up my robes after this tenure. I will surely keep in touch with you all #SupremeCourtofIndia pic.twitter.com/NtHu7lSyTF
— Bar and Bench (@barandbench) May 13, 2025
🔹 ‘तीसरी पारी’ का क्या मतलब है?
जब उनसे पूछा गया कि अब वे आगे क्या करेंगे, तो उन्होंने कहा —
“मैं अब अपने पेशेवर जीवन की तीसरी पारी शुरू करूंगा, लेकिन किसी पद पर नहीं, बल्कि स्वतंत्र रूप से।”
इस “तीसरी पारी” का अर्थ यह निकाला जा रहा है कि वे अब या तो वकालत में लौट सकते हैं, किसी लॉ कॉलेज में पढ़ा सकते हैं या फिर कानूनी शोध, परामर्श या लेखन जैसे क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं।
यह संकेत है कि अब उनका उद्देश्य न्याय प्रणाली को बाहरी दृष्टिकोण से बेहतर बनाना हो सकता है, न कि पावर या पद से जुड़ना।
Our statement welcoming the recent decisions of the SC led by the outgoing CJI Sanjiv Khanna to bring in greater transparency by putting out asset declarations of judges, details of appointments of judges & how they dealt with the case of Justice Yashwant Verma. Kudos to the SC. pic.twitter.com/R2DqDC36s5
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) May 14, 2025
🔹 भारत में जजों के रिटायरमेंट के बाद की भूमिका पर बहस
भारत में यह अक्सर देखा गया है कि कई पूर्व CJI और सुप्रीम कोर्ट जज रिटायरमेंट के तुरंत बाद राज्यपाल, आयोग अध्यक्ष या अन्य संवैधानिक पदों पर नियुक्त हो जाते हैं। इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।
जस्टिस खन्ना का फैसला इस पूरे सिस्टम को एक नया आदर्श देता है।
कुछ उल्लेखनीय उदाहरण:
- CJI रंगनाथ मिश्रा— रिटायरमेंट के बाद राज्यसभा में कांग्रेस के सदस्य बने।
- CJI पी. सथशिवम— रिटायरमेंट के बाद केरल के राज्यपाल नियुक्त हुए।
इन उदाहरणों से उलट, जस्टिस खन्ना का यह निर्णय न्यायिक नैतिकता को ऊंचे स्तर पर ले जाता है।
🔹 क्या यह उदाहरण बन सकता है?
निस्संदेह, जस्टिस संजीव खन्ना का निर्णय नए जजों और न्यायिक अधिकारियों के लिए एक प्रेरणा बन सकता है। यह दिखाता है कि सेवा का अर्थ सिर्फ पद या अधिकार नहीं होता, बल्कि विचारधारा और निष्ठा भी होती है।
उनका यह दृष्टिकोण भारत की संविधानिक आत्मा के अनुरूप है, जिसमें निष्पक्षता, पारदर्शिता और सेवा का भाव सर्वोपरि है।
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🔹 सोशल मीडिया और कानूनी विशेषज्ञों की प्रतिक्रियाएं
जैसे ही उनकी घोषणा सामने आई, सोशल मीडिया पर कानूनी विशेषज्ञों, वकीलों और आम जनता ने इसे सराहा।
वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने ट्वीट किया—
“जस्टिस खन्ना का यह फैसला उन्हें एक सच्चा संविधानवादी बनाता है।”
बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी इसे एक “आदर्श उदाहरण” बताया और कहा कि इससे न्यायपालिका की गरिमा और बढ़ेगी।
🔹 निष्कर्ष
जस्टिस संजीव खन्ना का रिटायरमेंट केवल एक औपचारिक विदाई नहीं था, बल्कि यह एक नए सोच की शुरुआत थी। उनका यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका में एक मिसाल कायम करता है।
वे बता गए कि पद, पुरस्कार या सत्ता से बड़ी होती है सेवा की निष्ठा। उनकी यह ‘तीसरी पारी’ चाहे वकालत में हो या शिक्षा में— न्याय की मशाल को जलाए रखने की दिशा में एक अहम कदम होगी।