बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक नया विवाद खड़ा हो गया है। विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. bloc ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि बिहार की मतदाता सूची में 5,000 से ज्यादा उत्तर प्रदेश के निवासियों के नाम शामिल कर दिए गए हैं। उनका कहना है कि यह चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है।
वहीं, चुनाव आयोग ने इन आरोपों को तुरंत खारिज करते हुए कहा कि मतदाता सूची पूरी तरह से पारदर्शी है और इसमें किसी भी तरह की गड़बड़ी की संभावना नहीं है। आयोग का कहना है कि ये आरोप केवल अफवाह और चुनावी बयानबाजी हैं।
I.N.D.I.A. bloc का दावा
गठबंधन का आरोप है कि मतदाता सूची में बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को शामिल कर लिया गया है जो बिहार के निवासी ही नहीं हैं। बताया गया है कि यह मामला विशेष रूप से कुछ सीमावर्ती जिलों में सामने आया है, जहां बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश के नागरिकों के नाम वोटर लिस्ट में दर्ज पाए गए हैं।
गठबंधन नेताओं का कहना है कि चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाए रखने के लिए आयोग को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए और ऐसे नामों की जांच कर उन्हें हटाना चाहिए। विपक्ष ने इसे “चुनावी धांधली की साज़िश” बताया है और कहा कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो इसका सीधा असर चुनाव परिणामों पर पड़ेगा।
चुनाव आयोग का जवाब
चुनाव आयोग ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि मतदाता सूची तैयार करने और उसे अपडेट करने की प्रक्रिया बेहद कड़ी और पारदर्शी होती है। आयोग के मुताबिक, हर जिले में ब्लॉक स्तर पर सत्यापन और घर-घर जांच की जाती है।
आयोग ने स्पष्ट कहा है कि I.N.D.I.A. bloc का दावा निराधार है और इसकी कोई ठोस पुष्टि अब तक सामने नहीं आई है। उनका कहना है कि यह केवल राजनीतिक आरोप हैं जिनका कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है।
The reporters’ collective has done a brilliant investigation which revealed that the names of more than 5000 double and dubious voters are present in the Uttar Pradesh voter list as well as in the Bihar SIR Draft 2025, having different EPIC numbers.
Examples in this thread… pic.twitter.com/8hiOlNtIj9
— Abhishek (@AbhishekSay) August 11, 2025
राजनीतिक पृष्ठभूमि और टकराव
बिहार और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों की राजनीति हमेशा से एक-दूसरे से जुड़ी रही है। सीमावर्ती जिलों में निवास करने वाले लोग अक्सर दोनों राज्यों में आवाजाही करते रहते हैं। ऐसे में चुनावी दौर में इस तरह के आरोप राजनीति को और भी गरमा देते हैं।
सत्तारूढ़ दल ने भी विपक्षी गठबंधन पर पलटवार करते हुए कहा है कि ऐसे बयान केवल चुनावी माहौल को प्रभावित करने के लिए दिए जा रहे हैं। वहीं, विपक्ष इसे चुनाव आयोग पर दबाव बनाने का तरीका बता रहा है।
यह विवाद उस समय और भी संवेदनशील हो जाता है जब जनता पहले से ही चुनावी पारदर्शिता को लेकर सतर्क है। लोकतंत्र में भरोसा तभी मजबूत रहता है जब मतदाता सूची जैसी मूलभूत चीजों में पारदर्शिता बनी रहे।
पहले भी उठे ऐसे आरोप
यह पहली बार नहीं है जब वोटर लिस्ट को लेकर विवाद खड़ा हुआ हो। पहले भी कई राज्यों में चुनावों के दौरान फर्जी वोटिंग और डुप्लीकेट नामों के आरोप सामने आ चुके हैं। कई बार चुनाव आयोग ने विशेष अभियान चलाकर फर्जी नाम हटाए और नई तकनीक से लिस्ट को अपडेट किया।
ऐसे मामलों में आयोग का रुख हमेशा सख्त रहा है। अगर कहीं शिकायत मिलती है तो जांच होती है और गलत पाए गए नामों को सूची से हटाया जाता है।
मतदाता सूचियों की प्रक्रिया
मतदाता सूची तैयार करने की प्रक्रिया लंबी और सख्त होती है। सबसे पहले मतदाता पंजीकरण के समय नागरिकों से पहचान और पते के दस्तावेज लिए जाते हैं। इसके बाद स्थानीय स्तर पर अधिकारी उनकी जांच करते हैं।
हर साल संपूरक सूची जारी होती है जिसमें नए नाम जोड़े जाते हैं और पुराने या मृतक मतदाताओं के नाम हटाए जाते हैं। चुनाव आयोग लगातार यह प्रयास करता है कि एक ही व्यक्ति का नाम दो राज्यों की वोटर लिस्ट में न रहे। इसके लिए अब डिजिटल डाटाबेस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित सिस्टम भी अपनाए जा रहे हैं।
जनता और राजनीतिक विश्लेषकों की राय
आम जनता का मानना है कि अगर ऐसे आरोप सच हैं तो चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर असर पड़ेगा। कुछ लोग इसे केवल चुनावी रणनीति और बयानबाजी मानते हैं, जबकि कुछ इसे गंभीर मामला बता रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों की राय है कि चुनाव से ठीक पहले ऐसे आरोप लगाना एक आम रणनीति होती है ताकि जनता का ध्यान खींचा जा सके। लेकिन अगर इन दावों में सच्चाई होती तो आयोग निश्चित रूप से इसकी जांच करता।
आगे की राह: क्या होगा अगला कदम?
अब सवाल यह है कि आगे क्या होगा। आयोग ने साफ कर दिया है कि आरोप निराधार हैं, लेकिन अगर विपक्ष ठोस सबूत पेश करता है तो उस पर कार्रवाई की जाएगी। वहीं, I.N.D.I.A. bloc ने कहा है कि वे इस मामले को और गहराई से उठाएंगे।
इस पूरे विवाद का असर बिहार के चुनावी माहौल पर जरूर पड़ेगा। जनता को भी यह जानने की उत्सुकता है कि आयोग पारदर्शिता बनाए रखने के लिए आगे क्या कदम उठाता है।
निष्कर्ष
चुनावी पारदर्शिता लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है। चाहे आरोप सही हों या गलत, ऐसे विवाद जनता के विश्वास को प्रभावित करते हैं। I.N.D.I.A. bloc के आरोपों और चुनाव आयोग के जवाब ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या हमारे देश की वोटर लिस्ट पूरी तरह पारदर्शी है?
जनता की नज़र अब चुनाव आयोग पर है कि वह आने वाले समय में किस तरह से भरोसा कायम रखता है। लोकतंत्र की सफलता तभी संभव है जब मतदाता को यह विश्वास हो कि उसका वोट सुरक्षित है और सही तरीके से गिना जाएगा।
👉 पारदर्शिता से जुड़े मामलों पर पहले भी अदालतों और आयोग की भूमिका पर चर्चाएं हो चुकी हैं। हाल ही में आए एक मामले में सुप्रीम कोर्ट से जुड़ी खबर पर भी काफ़ी बहस हुई थी, जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
आपको क्या लगता है – क्या यह केवल राजनीतिक बयानबाजी है या इसमें सचाई की संभावना भी है?
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