न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के मौके पर भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो की पहली आमने-सामने बातचीत हुई। यह मुलाकात ऐसे समय पर हुई है जब दोनों देशों के रिश्ते व्यापार और वीज़ा नीति से जुड़े तनावों के कारण सुर्खियों में हैं।
इस वार्ता को केवल औपचारिक मुलाकात नहीं माना जा सकता। यह उन मुद्दों को सामने लाती है जो भारतीय पेशेवरों, अमेरिकी कंपनियों और दोनों देशों की सरकारों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। व्यापारिक संतुलन, वीज़ा शुल्क में वृद्धि और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा जैसे विषय इस बातचीत के केंद्र में रहे।
External Affairs Minister S Jaishankar met US Secretary of State Marco Rubio on the sidelines of the 80th United Nations General Assembly session, with discussions expected to centre on H-1B visa concerns and trade issues.
The meeting comes as an effort to rebuild ties after… pic.twitter.com/RZUFGqQ4h4
— India Today Global (@ITGGlobal) September 22, 2025
रिश्तों की वर्तमान तस्वीर
पिछले कुछ महीनों में भारत और अमेरिका के बीच कई मुद्दों पर मतभेद बढ़े हैं।
- वीज़ा नीति: अमेरिकी प्रशासन द्वारा वीज़ा शुल्क बढ़ाने से भारतीय IT पेशेवर और स्टार्टअप सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।
- टैरिफ़ विवाद: हाल में अमेरिका ने कुछ भारतीय निर्यातों पर ऊँचे टैरिफ़ लगाए हैं।
- बाज़ार तक पहुंच का सवाल: अमेरिका चाहता है कि भारत अपने कृषि और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों को खोले, जबकि भारत घरेलू उद्योगों की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है।
- रणनीतिक दबाव: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र और वैश्विक सहयोग के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच तालमेल आवश्यक है।
यही कारण है कि इस मुलाकात को रिश्तों में आई खटास को दूर करने का प्रयास भी माना जा रहा है। इसी संदर्भ में हाल ही में पियूष गोयल की अमेरिका यात्रा और व्यापार वार्ता को भी भारत-अमेरिका संबंधों के लिए अहम कदम समझा गया था।
बैठक में मुख्य चर्चाएँ
बैठक का एजेंडा विस्तृत था।
- व्यापार और निवेश: भारत ने स्पष्ट किया कि एकतरफ़ा दबाव रिश्तों को कमजोर करेगा, जबकि अमेरिका ने भारतीय बाज़ारों को और खुला करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- वीज़ा और प्रतिभा का प्रवाह: भारतीय पेशेवरों के लिए वीज़ा शुल्क में बढ़ोतरी एक गंभीर चिंता का विषय रहा। भारत ने इस पर कड़ा रुख़ दिखाते हुए कहा कि इससे तकनीकी सहयोग और अमेरिका की ही प्रतिस्पर्धा प्रभावित होगी।
- रणनीतिक साझेदारी: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा को लेकर भी चर्चा हुई। दोनों देशों ने इस बात पर सहमति जताई कि क्षेत्रीय शांति बनाए रखने के लिए आपसी सहयोग ज़रूरी है।
- सतत संवाद: बैठक के दौरान इस बात पर भी सहमति बनी कि नियमित स्तर पर बातचीत जारी रहनी चाहिए ताकि छोटे-छोटे मतभेद बड़े संकट का रूप न लें।
अमेरिकी विदेश मंत्री का रुख़
बैठक के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि भारत अमेरिका के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साझेदार है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि वीज़ा और टैरिफ़ जैसे कठिन मुद्दों के बावजूद संबंध मज़बूत बने रहेंगे।
अमेरिका ने संकेत दिया कि वह केवल व्यापार तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि रक्षा, ऊर्जा, दवाइयों और खनिज जैसे क्षेत्रों में भी गहरा सहयोग चाहता है। उन्होंने यह भी माना कि वीज़ा और व्यापार से जुड़े मसले हल करना आसान नहीं होगा, लेकिन निरंतर संवाद से प्रगति संभव है।
भारत का दृष्टिकोण: जयशंकर की प्राथमिकताएँ
भारत ने बैठक में अपने रुख़ को स्पष्ट किया।
- भारतीय पेशेवरों और कंपनियों के हितों की सुरक्षा प्राथमिकता में है।
- भारत व्यापार में संतुलन चाहता है और चाहता है कि दोनों देश समान अवसर प्रदान करें।
- रणनीतिक स्तर पर भारत ने दोहराया कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता और सहयोग केवल द्विपक्षीय नहीं बल्कि वैश्विक महत्व का मुद्दा है।
- भारत ने ज़ोर दिया कि मतभेदों को हल करने के लिए समयबद्ध रोडमैप और संरचित बातचीत ज़रूरी है।
Good to meet @SecRubio this morning in New York.
Our conversation covered a range of bilateral and international issues of current concern. Agreed on the importance of sustained engagement to progress on priority areas.
We will remain in touch.
🇮🇳 🇺🇸 pic.twitter.com/q31vCxaWel
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) September 22, 2025
विशेषज्ञों की राय और विश्लेषण
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बैठक तनाव घटाने का संकेत है।
- यदि वीज़ा शुल्क में सुधार होता है तो भारतीय IT और टेक कंपनियों को राहत मिलेगी।
- टैरिफ़ कम करने से भारत के निर्यात में बढ़ोतरी होगी और अमेरिकी कंपनियों को भी भारतीय बाज़ार तक पहुँच मिलेगी।
- रणनीतिक दृष्टिकोण से यह साझेदारी क्षेत्रीय शांति और वैश्विक सप्लाई चेन दोनों के लिए फायदेमंद हो सकती है।
- हालाँकि, अगर नीतिगत अस्थिरता बनी रही तो व्यापारिक समुदाय में अनिश्चितता और बढ़ेगी।
भविष्य की राह
आने वाले समय में कई संभावनाएँ सामने आ सकती हैं।
- टैरिफ़ में राहत: अमेरिका कुछ उत्पादों पर लगे अतिरिक्त शुल्क की समीक्षा कर सकता है।
- वीज़ा नीति में सुधार: भारत लगातार दबाव बनाए हुए है कि वीज़ा शुल्क कम किया जाए या कम से कम स्थिर रखा जाए।
- व्यापार समझौते: दोनों देश चरणबद्ध समझौते की ओर बढ़ सकते हैं जिससे व्यापारिक माहौल सुधरेगा।
- रणनीतिक सहयोग: रक्षा, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में नई परियोजनाओं की घोषणा की जा सकती है।
- जनता पर असर: इन बदलावों से भारतीय छात्रों, पेशेवरों और उद्योग जगत पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।
निष्कर्ष
जयशंकर और रुबियो की मुलाकात से यह स्पष्ट हुआ कि भारत और अमेरिका अपने मतभेदों को दरकिनार कर भविष्य की साझेदारी को मज़बूत बनाना चाहते हैं। व्यापार और वीज़ा जैसे मुद्दे गंभीर हैं, लेकिन संवाद और सहयोग से समाधान ढूँढा जा सकता है।
यह बैठक केवल वर्तमान विवादों तक सीमित नहीं है, बल्कि आने वाले वर्षों की कूटनीतिक दिशा तय करने वाली है। यदि दोनों देश मिलकर ठोस कदम उठाते हैं, तो इसका लाभ सरकारों के साथ-साथ आम नागरिकों और वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी होगा।