भारत-यूके वार्ता का नया अध्याय
नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की मुलाकात ने भारत-यूके संबंधों में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। यह मुलाकात न केवल दो लोकतांत्रिक देशों के बीच संवाद का प्रतीक बनी, बल्कि वैश्विक शांति के लिए भी एक बड़ा संदेश लेकर आई।
दोनों नेताओं ने अपने साझा बयान में इस्रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के स्थायी समाधान के लिए “टू-स्टेट सॉल्यूशन” यानी “दो राष्ट्र समाधान” का समर्थन किया। इस घोषणा ने दुनिया भर में चल रही बहस को एक नई दिशा दी है, जहां भारत और ब्रिटेन जैसे लोकतांत्रिक देश मिलकर शांति की पैरवी कर रहे हैं।
मुख्य बिंदु: भारत और ब्रिटेन ने मिलकर कहा कि इस्रायल और फिलिस्तीन के बीच स्थायी शांति के लिए संवाद और समझौते का रास्ता ही आगे बढ़ने का मार्ग है।
‘टू-स्टेट सॉल्यूशन’ पर भारत-यूके का साझा रुख
दोनों प्रधानमंत्रियों ने कहा कि मध्य-पूर्व में स्थायित्व और शांति तभी संभव है जब इस्रायल और फिलिस्तीन दो स्वतंत्र राष्ट्रों के रूप में अस्तित्व में रह सकें। भारत ने हमेशा से ही इस विषय पर संयमित और संतुलित नीति अपनाई है, जिसमें दोनों पक्षों के अधिकारों का सम्मान किया गया है।
ब्रिटेन की नई लेबर सरकार के लिए यह बयान अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक महत्वपूर्ण संकेत माना जा रहा है। स्टार्मर सरकार ने पहली बार भारत के साथ मिलकर इस मसले पर सार्वजनिक रूप से एक साझा दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि “भारत विश्व शांति और स्थिरता के लिए हमेशा रचनात्मक भूमिका निभाता रहेगा।”
“दो राष्ट्र समाधान ही क्षेत्र में स्थायी शांति और सुरक्षा की दिशा में सही कदम है।” — मोदी और स्टार्मर का संयुक्त बयान
भारत-यूके रक्षा सहयोग: 4136 करोड़ रुपये की मिसाइल डील
बैठक के दौरान दोनों देशों ने रक्षा और सुरक्षा साझेदारी को भी नए स्तर पर ले जाने का फैसला किया। भारत ने ब्रिटेन के साथ ₹4136 करोड़ रुपये की मिसाइल डील पर हस्ताक्षर किए हैं। ये वही मिसाइलें हैं जिन्हें पहले यूक्रेन को रूस के हमलों से बचाव के लिए सप्लाई किया गया था।
इस समझौते का उद्देश्य भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता को मजबूत करना और दोनों देशों के बीच रक्षा उत्पादन और प्रौद्योगिकी साझेदारी को और गहरा करना है। ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय के अनुसार, यह सौदा न केवल आर्थिक दृष्टि से लाभकारी है, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी भारत-यूके संबंधों को नई मजबूती देता है।
यह डील भारत की रक्षा नीति को नई दिशा देती है, जिससे दोनों देशों की सुरक्षा साझेदारी और गहरी होगी।
भारत-यूके संबंधों की नई दिशा
भारत और ब्रिटेन के बीच यह वार्ता केवल शांति या रक्षा तक सीमित नहीं रही। दोनों देशों ने व्यापार, तकनीकी नवाचार, शिक्षा, जलवायु परिवर्तन और डिजिटल सहयोग पर भी चर्चा की।
ब्रेक्जिट के बाद ब्रिटेन की आर्थिक रणनीति में भारत एक प्रमुख साझेदार बनता जा रहा है। वहीं, मोदी सरकार ने भी इस वार्ता के माध्यम से संकेत दिया कि भारत वैश्विक मंच पर न केवल एक बाजार है, बल्कि एक रणनीतिक सहयोगी भी है।
इस बैठक से पहले यूके के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर मुंबई पहुंचे थे अपनी पहली भारत यात्रा पर, जहां उन्होंने भारतीय उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी और निवेश, टेक्नोलॉजी तथा शिक्षा क्षेत्र में साझेदारी बढ़ाने की बात कही थी।
हाइलाइट: भारत और ब्रिटेन के बीच नई साझेदारी केवल सरकारी स्तर पर नहीं, बल्कि उद्योग और शिक्षा के क्षेत्र में भी तेजी से आगे बढ़ रही है।
मोदी-स्टार्मर की केमिस्ट्री: कूटनीति से आगे विश्वास का रिश्ता
राजनीतिक सीमाओं से परे दोनों नेताओं के बीच आपसी सम्मान और सहज संवाद देखने को मिला। मोदी ने ब्रिटेन में बसे भारतीय समुदाय की प्रशंसा की और कहा कि वे भारत-यूके संबंधों के “जीवंत सेतु” हैं। स्टार्मर ने भी भारतीय समुदाय को ब्रिटिश समाज की ताकत बताया।
दोनों नेताओं ने इस बात पर सहमति जताई कि 21वीं सदी में लोकतांत्रिक देश केवल आर्थिक साझेदारी से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और मानवीय आदान-प्रदान से भी मजबूत बनते हैं।
दोनों नेताओं की बातचीत में व्यक्तिगत गर्मजोशी और पारस्परिक सम्मान झलकता है।
भारत की स्थायी नीति: शांति और संवाद का मार्ग
इस्रायल-फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत की नीति हमेशा से स्पष्ट रही है —
भारत इस्रायल के साथ रक्षा और तकनीकी संबंध रखता है, वहीं फिलिस्तीन के लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का भी समर्थन करता है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत ने बार-बार इस बात को दोहराया है कि शांति केवल बातचीत और आपसी समझ से ही संभव है।
मोदी सरकार के तहत भारत ने मानवीय सहायता, मेडिकल सपोर्ट और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर संवाद के लिए निरंतर प्रयास किए हैं। इससे भारत की छवि एक ‘विश्वसनीय मध्यस्थ’ के रूप में और मजबूत हुई है।
हाइलाइट: भारत ने कभी भी किसी पक्ष का अंध समर्थन नहीं किया, बल्कि शांति को ही सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।
वैश्विक नजरिया: क्यों बढ़ रही है भारत की भूमिका
जी20 सम्मेलन से लेकर ग्लोबल साउथ की आवाज़ तक, भारत आज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक ‘शांतिदूत राष्ट्र’ के रूप में उभर रहा है। ब्रिटेन के साथ यह संवाद इस छवि को और गहराई देता है।
पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव के बीच भारत की संतुलित कूटनीति दुनिया के लिए एक उदाहरण बन रही है। ब्रिटेन भी अब भारत के साथ मिलकर वैश्विक संकटों पर साझा दृष्टिकोण विकसित करना चाहता है।
मुख्य बिंदु: भारत की बढ़ती कूटनीतिक भूमिका ने उसे विश्व शांति के लिए ‘सेतु राष्ट्र’ बना दिया है।
The path-breaking India-UK CETA will create new job opportunities for youth, expand trade and benefit both our industries as well as consumers. In this context, PM Starmer and I discussed trade linkages and economic ties between our nations in the times to come. @Keir_Starmer pic.twitter.com/zs5obf7Hh7
— Narendra Modi (@narendramodi) October 9, 2025
भविष्य की दिशा: संवाद से समाधान तक
दोनों देशों ने इस वार्ता के अंत में कहा कि वे आने वाले वर्षों में “शांति, विकास और प्रगति” के साझा एजेंडे पर काम करेंगे। रक्षा, शिक्षा, व्यापार और ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग को और गहरा किया जाएगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत हमेशा ऐसी नीतियों का समर्थन करता है जो स्थायी शांति और मानवता की रक्षा करें। स्टार्मर ने भी भारत की “संतुलित विदेश नीति” की सराहना की और कहा कि ब्रिटेन भारत के साथ मिलकर वैश्विक संकटों का समाधान खोजेगा।
हाइलाइट: संवाद ही स्थायी समाधान का मार्ग है — यही संदेश मोदी-स्टार्मर मुलाकात की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
आपकी राय क्या है?
क्या भारत की यह संतुलित शांति नीति विश्व के लिए एक नया मॉडल बन सकती है?
क्या “टू-स्टेट सॉल्यूशन” वाकई इस्रायल-फिलिस्तीन संघर्ष का स्थायी हल साबित होगा?
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