भारत और पाकिस्तान के बीच इंडस जल संधि सन् 1960 में हुई थी। इसे वर्ल्ड बैंक की मदद से तैयार किया गया था। इस समझौते के तहत, छह नदियों को दो हिस्सों में बांटा गया — तीन नदियाँ भारत को (रावी, सतलुज, ब्यास) और तीन पाकिस्तान को (सिंधु, झेलम, चेनाब)।
इस संधि की खास बात ये है कि इतने सालों से युद्ध और तनाव के बावजूद भी दोनों देश इसे मानते आए हैं। पानी जैसी अहम चीज़ पर इतना लंबा समय शांति बनी रहना अपने आप में बड़ा उदाहरण है।
मोदी का मास्टरस्ट्रोक: सिर्फ रोकने की बात, लेकिन पाकिस्तान की धड़कनें तेज
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में दिए एक इंटरव्यू में जब ये कहा कि हमने सिर्फ इंडस जल संधि को “होल्ड पर रखा है”, तो पाकिस्तान की तरफ़ से हलचल शुरू हो गई।
“हमने तो बस होल्ड पर रखा है, पाकिस्तान पहले ही पसीना-पसीना हो गया।” – पीएम मोदी
पाकिस्तान की मीडिया में ये बयान आग की तरह फैला। राजनीतिक गलियारों में मीटिंग्स शुरू हो गईं। पाकिस्तान की सरकार ने इसे लेकर गहरी चिंता जताई।
पाकिस्तान की हर आतंकी गतिविधि प्रॉक्सी वॉर नहीं, बल्कि युद्ध की सोची-समझी रणनीति है। हमने तय कर लिया है कि इसका जवाब हमेशा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की भाषा में ही दिया जाएगा। pic.twitter.com/veogfSlRmK
— Narendra Modi (@narendramodi) May 27, 2025
आखिर ऐसा क्या है इस संधि में जो भारत के सिर्फ एक इशारे से पाकिस्तान घबरा गया?
असल में पाकिस्तान की सिंचाई, पीने का पानी और बिजली उत्पादन का बड़ा हिस्सा इन नदियों पर निर्भर है। अगर पानी की सप्लाई में थोड़ी सी भी रुकावट आती है, तो उसका असर सीधा आम जनता पर पड़ता है।
इससे पहले भी अहमदाबाद में पीएम मोदी के रोड शो के दौरान देखा गया था कि एक छोटे से फैसले से किस तरह शहर की व्यवस्था पर असर पड़ सकता है। ठीक उसी तरह इस बयान का असर एक पूरे देश की रणनीतिक सोच पर पड़ा है।
🧠 PM मोदी का बयान भावनात्मक नहीं, पूरी प्लानिंग के साथ
मोदी सरकार ने इस बयान को किसी भी तरह की भावुकता या जल्दबाजी का फैसला नहीं बताया है। खुद पीएम मोदी ने कहा कि ये कदम सोची-समझी नीति के तहत उठाया गया है।
“हम इमोशनल नहीं, पॉलिसी से चलते हैं।” – पीएम मोदी
इसका साफ मतलब ये है कि भारत अब अपने संसाधनों का इस्तेमाल सिर्फ खुद के लिए नहीं, बल्कि रणनीतिक दबाव बनाने के लिए भी करेगा। जब भी सीमा पार से कोई उकसावे वाली कार्रवाई होती है, तो भारत अब सिर्फ बयानबाज़ी नहीं करेगा — बल्कि असरदार कदम उठाएगा।
😓 पाकिस्तान की बेचैनी बढ़ी, अंदरूनी हलचल तेज
जैसे ही पीएम मोदी का बयान सामने आया, पाकिस्तान में सियासी भूचाल आ गया। वहां की सरकार ने तुरंत इमरजेंसी मीटिंग बुलाई। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि पाकिस्तानी सेना भी इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है।
मीडिया में “पानी की जंग” जैसे शब्द चल रहे हैं। आम जनता में भी डर है कि अगर पानी की सप्लाई कम हो गई तो क्या होगा।
- फसलें सूख सकती हैं
- बिजली उत्पादन रुक सकता है
- पानी की कीमतें बढ़ सकती हैं
पाकिस्तान इस समय यूएन और बाकी देशों से समर्थन जुटाने में लगा है, लेकिन इस बार दुनिया भारत की स्थिति को समझ रही है।
⚖️ भारत का पक्ष: पूरी तरह वैध और तर्कसंगत
यहाँ सबसे ज़रूरी बात ये है कि भारत ने अभी तक संधि को तोड़ा नहीं है। भारत ने सिर्फ इशारा किया है कि समझौते की समीक्षा की जा सकती है या उसका लाभ खुद के हक़ में लिया जा सकता है।
भारत का कहना है कि जब पड़ोसी देश आतंकवाद फैलाने से बाज नहीं आ रहा, तो हम अपने अधिकारों का उपयोग क्यों न करें?
इसमें न तो कोई गैर-कानूनी बात है और न ही कोई अंतरराष्ट्रीय नियम का उल्लंघन। भारत अभी भी संधि के दायरे में ही सोच रहा है।
🔮 अब आगे क्या हो सकता है?
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि भारत का अगला कदम क्या होगा?
संभावनाएं:
- भारत जल परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाएगा।
- पश्चिमी नदियों के पानी का अधिक उपयोग करेगा।
- भारत अपनी ही ज़मीन पर डैम बनाकर पानी का दिशा-निर्देशन कर सकता है।
इससे पाकिस्तान को दोहरा नुकसान होगा — एक तो पानी की कमी और दूसरा भारत की नीति से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलगाव।
🧩 बिना लड़े, सीधा वार
भारत अब वो भारत नहीं रहा जो चुपचाप सहता रहे। अब देश अपने हर संसाधन का इस्तेमाल कूटनीतिक हथियार की तरह करना सीख चुका है।
बिना गोली चलाए, जब असर होता है — उसे ही रणनीति कहते हैं।
पाकिस्तान के लिए ये एक चेतावनी है कि अब भारत सिर्फ शब्दों में नहीं, पानी जैसी जरूरत की चीज़ों से भी जवाब दे सकता है।
🗣️ आपकी क्या राय है?
क्या आपको लगता है कि भारत को इस संधि से पूरी तरह हट जाना चाहिए? या फिर इसे केवल दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए?
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