पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने हाल ही में इस्लामाबाद में आयोजित ग्लोबल पीस समिट में भारत के साथ शांति वार्ता का प्रस्ताव रखा। यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत-पाकिस्तान के रिश्ते तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं।
शहबाज़ शरीफ ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध चाहता है और भारत से भी सहयोग की उम्मीद करता है। उन्होंने कहा, “पाकिस्तान भारत से सम्मान और बराबरी के आधार पर संधि चाहता है।“
इस प्रस्ताव के बाद क्षेत्रीय राजनीति में हलचल बढ़ी है। दोनों देशों के बीच आखिरी व्यापक बातचीत 2015 में हुई थी, जिसके बाद पुलवामा, उरी और बालाकोट जैसी घटनाओं ने संबंधों को जटिल बना दिया। इसके अलावा, हाल ही में पाकिस्तान ने भारत को औपचारिक पत्र भेजा, जो द्विपक्षीय संवाद की संभावनाओं के लिए अहम माना जा रहा है। यहाँ रिपोर्ट पढ़ें।
शहबाज़ शरीफ ने कहा कि आर्थिक विकास के लिए क्षेत्रीय शांति जरूरी है और जब तक भारत-पाक तनाव रहेगा, दक्षिण एशिया का विकास बाधित होगा।
शहबाज़ शरीफ की प्रमुख बातें
ग्लोबल पीस समिट में उन्होंने कहा कि युद्ध की पुरानी सोच को छोड़कर सहयोग और संवाद को बढ़ावा देना चाहिए।
“हम भारत के साथ दुश्मनी नहीं चाहते, बल्कि शांति और सहयोग चाहते हैं।“
उन्होंने आतंकवाद के मुद्दे पर वैश्विक सहयोग की जरूरत पर जोर दिया और कहा कि सीमाओं पर शांति दोनों देशों के नागरिकों के लिए जरूरी है। साथ ही, बातचीत के दौरान पाकिस्तान की कुछ राष्ट्रीय प्राथमिकताओं का सम्मान होना भी आवश्यक है।
विशेषज्ञों ने इसे पाकिस्तान की रणनीति में बदलाव के संकेत के तौर पर देखा है।
#Pakistan PM #ShehbazSharif says he is ready for peace talks with #India
Pakistan PM Shehbaz Sharif:
“आज मैं यहाँ ये कहना चाहता हूँ इस दुश्मन को की तुम्हारे जंगी जूनून का बुखार उतर चूका , अब अमन की बात करो तो हम तैयार है”. pic.twitter.com/uHEbiv42u3— Smriti Sharma (@SmritiSharma_) May 16, 2025
भारत की आधिकारिक प्रतिक्रिया
भारत सरकार ने अभी तक इस प्रस्ताव पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। विदेश मंत्रालय ने चुप्पी साधी हुई है। भारत का रुख हमेशा से यह रहा है कि बातचीत तभी संभव है जब सीमा पार आतंकवाद पूरी तरह बंद हो।
भारत-पाक के बीच पिछली बातचीत विफलताओं की वजह से भारत सतर्क है। पुलवामा हमले के बाद दोनों देशों के रिश्ते काफी खराब हुए हैं। इसी दौरान पाकिस्तान ने एक भारतीय राजनयिक को ‘persona non grata’ घोषित कर देश छोड़ने का आदेश दिया था, जिससे तनाव और बढ़ा। इस घटना का पूरा विवरण आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
कश्मीर मुद्दा और उसकी भूमिका
शहबाज़ शरीफ ने कहा कि शांति वार्ता तभी सार्थक होगी जब कश्मीर मुद्दे पर भी बातचीत हो। “कश्मीर का समाधान दक्षिण एशिया की स्थिरता के लिए आवश्यक है।“
हालांकि भारत इसे अपना आंतरिक मामला मानता है और किसी तीसरे पक्ष की दखलअंदाजी स्वीकार नहीं करता। इस वजह से वार्ता की संभावनाएं अक्सर बाधित होती रही हैं।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भी इस मुद्दे को लेकर मतभेद हैं, और भारत ने इसे द्विपक्षीय मामला बनाए रखने की कोशिश की है।
विशेषज्ञों के अनुसार, बिना शर्त वार्ता के बिना कोई ठोस परिणाम संभव नहीं।
वैश्विक प्रतिक्रियाएं और विश्लेषण
अमेरिका, चीन और संयुक्त राष्ट्र ने शांति पहल का समर्थन किया है, साथ ही कहा है कि भारत-पाक को अपने मतभेद आपस में सुलझाने चाहिए।
यूएन महासचिव ने भी कहा कि वार्ता में शर्तें नहीं होनी चाहिए। एक अमेरिकी थिंक टैंक ने कहा, “कश्मीर जैसे संवेदनशील विषयों पर माहौल बनाना जरूरी है।“
भारतीय मीडिया ने इस प्रस्ताव को सतर्कता से देखा है, और अधिकांश ने इसे कूटनीतिक बयान माना है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान आंतरिक दबावों की वजह से नरमी दिखा रहा है।
क्या यह पहल गंभीर है या प्रतीकात्मक?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल अधिकतर प्रतीकात्मक हो सकती है क्योंकि पाकिस्तान की सेना का प्रभाव बहुत गहरा है। बिना सेना के समर्थन के कोई बड़ा निर्णय संभव नहीं।
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति और वैश्विक दबाव भी इस बयान के पीछे हो सकते हैं। IMF जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थान से आर्थिक मदद पाने के लिए यह शांति का संकेत माना जा सकता है।
सवाल यही है कि क्या यह असली वार्ता की शुरुआत है या सिर्फ एक छवि सुधारने की कोशिश?
जब तक पाकिस्तान स्पष्ट मंशा और बिना शर्त वार्ता के लिए नहीं आता, भारत की प्रतिक्रिया भी सीमित ही रहेगी।
निष्कर्ष
शहबाज़ शरीफ का प्रस्ताव सकारात्मक संकेत है, लेकिन कश्मीर को वार्ता की शर्त बनाना भारत के लिए स्वीकार्य नहीं।भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में विश्वास की कमी है, और केवल बयानबाज़ी से बात नहीं बनेगी।
जनता भी उम्मीद करती है कि शांति की पहल पारदर्शी और बिना शर्त हो।
शांति तभी संभव है जब मंशा साफ और ईमानदार हो।
भारत सरकार फिलहाल स्थिति का अवलोकन कर रही है, और पाकिस्तान को अपने इरादे स्पष्ट करने होंगे।
आने वाला समय बताएगा कि यह पहल वास्तविकता में कितनी सफल होगी।
आपका क्या मानना है? क्या यह पहल भारत-पाक शांति का नया दौर ला पाएगी? नीचे कमेंट में अपनी राय साझा करें।