पंजाब में 2021 में की गई 1,158 सहायक प्रोफेसर और लाइब्रेरियन की नियुक्तियाँ शिक्षा क्षेत्र में एक बड़ी भर्ती मानी जा रही थीं। इस भर्ती प्रक्रिया को लेकर शुरुआत से ही कई सवाल उठते रहे थे। कई योग्य अभ्यर्थियों ने इसकी मेरिट लिस्ट और इंटरव्यू प्रक्रिया को लेकर गंभीर आपत्तियाँ दर्ज कराई थीं। उन्होंने आरोप लगाया कि चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी थी और कुछ उम्मीदवारों को अनुचित लाभ दिया गया।
इसके चलते मामला अदालत की चौखट तक पहुंचा। पहले यह मुद्दा पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में उठाया गया, जहां इसे वैध बताया गया। लेकिन इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, जहां अंततः इस पर बड़ा फैसला आया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: क्या कहा कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए पंजाब सरकार द्वारा की गई नियुक्तियों को “पूरी तरह मनमाना और राजनीतिक” करार दिया। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि यह चयन प्रक्रिया न तो निष्पक्ष थी, न ही पारदर्शी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में “योग्यता और मेरिट” की पूरी तरह अनदेखी नहीं की जा सकती।
कोर्ट के अनुसार, जब किसी राज्य सरकार द्वारा सार्वजनिक नौकरियों में इतनी बड़ी संख्या में नियुक्तियाँ की जाती हैं, तो उनसे पूरी पारदर्शिता और निष्पक्षता की उम्मीद की जाती है। लेकिन इस मामले में चयन का आधार न तो साफ था और न ही वस्तुनिष्ठ।
यह निर्णय केवल एक तकनीकी खामी को नहीं, बल्कि एक व्यवस्थागत विफलता को उजागर करता है। कोर्ट ने इस पूरी प्रक्रिया को “arbitrary” बताया, यानी एक ऐसा निर्णय जो बिना ठोस आधार के लिया गया हो।
चयन प्रक्रिया में खामियाँ: नियमों की अनदेखी
इस भर्ती में सबसे बड़ी खामी चयन मानदंडों में बदलाव को लेकर थी। पहले एक स्पष्ट कटऑफ स्कोर तय किया गया था, जिसे बाद में अचानक हटा दिया गया। यही नहीं, इंटरव्यू में दिए गए अंकों का पैमाना भी स्पष्ट नहीं था।
बहुत से उम्मीदवारों को इंटरव्यू में काफी कम अंक मिले, जबकि उनके अकादमिक रिकॉर्ड अच्छे थे। वहीं कुछ अभ्यर्थियों को असामान्य रूप से अधिक अंक मिले, जिससे चयन की प्रक्रिया और अधिक संदिग्ध हो गई।
इसके अलावा, रिज़र्वेशन नियमों के पालन में भी ढिलाई बरती गई। कई मामलों में आरक्षित वर्गों को वाजिब लाभ नहीं मिल पाया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे “merit और fairness के मूल सिद्धांतों के खिलाफ” माना।
सुप्रीम कोर्ट ने 1158 कॉलेज टीचर की भर्ती रद की है न्यूज आ रही है क्या सच न्यूज है ?#BiharElections2025 #JusticeForSidhuMooseWala pic.twitter.com/LZb7tZUG6N
— Major Singh ( Jatt Brar Boy ) (@MajorSi55323658) July 14, 2025
राज्य की भूमिका और संभावित राजनीति
हालाँकि कोर्ट ने किसी सरकार या पार्टी का नाम नहीं लिया, लेकिन यह इशारा जरूर किया कि इस पूरी नियुक्ति प्रक्रिया में सत्ता में रहे लोगों की भूमिका संदिग्ध थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस तरह की राजनीतिक दखलअंदाजी शिक्षा जैसी संवेदनशील व्यवस्था के लिए घातक है।
हाल ही में राज्य की सियासत में भी हलचल तेज हुई है, जहाँ एक ओर सरकार की कार्यप्रणाली पर विपक्ष ने कई बार सवाल उठाए हैं। इसी क्रम में पंजाब बीजेपी के नए कार्यकारी अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने मुख्यमंत्री भगवंत मान पर सीधा हमला बोला, और प्रशासनिक निर्णयों को पक्षपाती बताया।
हाईकोर्ट के फैसले और उसकी सीमाएँ
इससे पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने नियुक्ति प्रक्रिया को वैध बताया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने कई महत्वपूर्ण तथ्यों पर गौर नहीं किया।
विशेष रूप से, सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ किया कि “केवल किसी प्रक्रिया का अस्तित्व यह साबित नहीं करता कि वह प्रक्रिया उचित भी है।” कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट का आकलन अपूर्ण था और उसमें चयन प्रक्रिया की असल गड़बड़ियाँ नहीं पकड़ी गईं।
प्रभावित अभ्यर्थियों की स्थिति: अब आगे क्या?
1,158 अभ्यर्थी, जिन्हें यह नौकरियाँ मिली थीं, अब बेरोजगार हो गए हैं। इनमें से कई उम्मीदवार ऐसे हैं जिनकी उम्र अब सरकारी नौकरियों के लिए अधिक हो चुकी है। कुछ ने इस नौकरी को पाने के लिए अन्य नौकरियों के प्रस्ताव भी ठुकरा दिए थे।
इन उम्मीदवारों के लिए यह निर्णय आजीविका, आत्म-सम्मान और भविष्य – तीनों पर असर डालने वाला है।
कई लोगों ने यह सवाल भी उठाया है कि जब उनकी नियुक्ति एक वैध सरकारी प्रक्रिया से हुई थी, तो अब सज़ा सिर्फ उन्हें क्यों मिल रही है? क्या चयन प्रक्रिया की खामियों के लिए सिर्फ उम्मीदवार ज़िम्मेदार हैं?
इस संदर्भ में यह निर्णय उन हजारों युवाओं के लिए एक कठिन सीख बनकर सामने आया है, जो सरकारी नौकरियों में अपने भविष्य की उम्मीद रखते हैं।
भविष्य की राह: सरकार व आयोग अब क्या कर सकते हैं?
इस फैसले के बाद अब राज्य सरकार के पास दो ही विकल्प हैं —
- या तो नई भर्ती प्रक्रिया शुरू की जाए
- या फिर सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार प्रभावित अभ्यर्थियों को कोई वैकल्पिक राहत दी जाए
हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सभी नियुक्तियाँ रद्द होंगी, लेकिन यदि सरकार चाहे तो मानवीय आधार पर कुछ राहत या अवसर दिए जा सकते हैं।
साथ ही, यह मामला पंजाब पब्लिक सर्विस कमीशन (PPSC) जैसे निकायों की जवाबदेही पर भी सवाल उठाता है। भविष्य में नियुक्तियों को पूरी तरह merit आधारित और पारदर्शी बनाना राज्य की प्राथमिकता होनी चाहिए।
व्यवस्था में पारदर्शिता की ज़रूरत
यह फैसला न सिर्फ 1,158 नौकरियों का मामला है, बल्कि यह सिस्टम की विश्वसनीयता का सवाल भी उठाता है। सुप्रीम कोर्ट ने एक सख्त और स्पष्ट संदेश दिया है कि यदि नियुक्तियों में पारदर्शिता नहीं होगी, तो पूरा चयन रद्द किया जा सकता है।
यह मामला दिखाता है कि केवल सर्टिफिकेट और आवेदन भरने से काम नहीं चलता, बल्कि प्रक्रिया का निष्पक्ष होना उतना ही ज़रूरी है। सरकारों को यह समझने की ज़रूरत है कि जनता के भरोसे के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता।