सुप्रीम कोर्ट में अभूतपूर्व घटना
भारत के सर्वोच्च न्यायालय में सोमवार को एक चौंकाने वाली घटना सामने आई, जब अदालत में चल रही सुनवाई के दौरान एक वकील ने अचानक मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई (CJI BR Gavai) की ओर जूता फेंक दिया। यह घटना इतनी अप्रत्याशित थी कि कुछ क्षणों के लिए कोर्ट रूम में अफरा-तफरी का माहौल बन गया।
सुरक्षा कर्मियों ने तुरंत मौके पर हस्तक्षेप किया और संबंधित वकील को हिरासत में ले लिया। हालांकि जूता मुख्य न्यायाधीश तक नहीं पहुंचा, लेकिन इस कृत्य ने न्यायपालिका की मर्यादा और अनुशासन पर बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया।
घटना कैसे हुई?
यह मामला तब सामने आया जब कोर्ट में एक धार्मिक विवाद से जुड़े याचिका पर सुनवाई हो रही थी। वकील ने पहले तो न्यायाधीशों से तीखे सवाल पूछे और फिर अचानक अपनी कुर्सी से उठकर जूता उछाल दिया।
अदालत ने तुरंत कार्यवाही रोक दी और पुलिस को बुलाया गया। कुछ ही मिनटों में कोर्ट परिसर में सुरक्षा और सख्त कर दी गई।
इस घटना के बाद अदालत ने कहा कि यह “न्यायालय की गरिमा के खिलाफ गंभीर अपराध” है और ऐसी हरकत को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
Breaking now: shoe thrown at CJI Justice Gavai in court by a lawyer claiming that he would not tolerate ‘anti sanatan’ remarks. TOTALLY UNACCEPTABLE behaviour. If a CJI’s remarks on a Lord Vishnu idol in a court proceedings is going to provoke violent behaviour like this, then…
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) October 6, 2025
मुख्य न्यायाधीश गवई का शांत रवैया
CJI बी. आर. गवई ने पूरी घटना के दौरान पूर्ण संयम दिखाया। उन्होंने न तो कोई तीखी प्रतिक्रिया दी और न ही भावनात्मक टिप्पणी।
मुख्य न्यायाधीश ने सुरक्षा अधिकारियों से कहा कि आरोपी को तुरंत हटाया जाए और अदालत की कार्यवाही सामान्य रूप से जारी रहे।
उनकी इस शांत प्रतिक्रिया ने कई लोगों को प्रभावित किया। सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं कि “यही असली न्यायाधीश की परिपक्वता है।”
वकील की पहचान और बयान
जिस व्यक्ति ने जूता फेंका, उसकी पहचान दिल्ली के एक वरिष्ठ वकील के रूप में हुई है। बाद में जब उसे पुलिस ने हिरासत में लिया तो उसने मीडिया से कहा कि उसे अपने कार्य पर “कोई पछतावा नहीं” है।
उसका दावा था कि वह “सत्य के लिए आवाज उठा रहा था” और “अदालत में उसकी बात नहीं सुनी जा रही थी।”
हालांकि उसके बयान ने मामले को और ज्यादा गंभीर बना दिया। कानून विशेषज्ञों का कहना है कि “यह व्यक्तिगत भावना नहीं, बल्कि अदालत की गरिमा का मुद्दा है।”
न्यायपालिका की गरिमा पर उठे सवाल
यह घटना केवल एक व्यक्ति की हरकत नहीं, बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र की गरिमा पर चोट है।
देश के कानूनी विशेषज्ञों और पूर्व न्यायाधीशों ने इस पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि अगर अदालत में इस तरह का असम्मान होने लगे, तो न्यायिक प्रक्रिया पर आम जनता का भरोसा कमजोर होगा।
एक पूर्व जज ने कहा,
“कोर्ट में असहमति जताने के अपने तरीके होते हैं। लेकिन हिंसा या अपमान का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।”
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
घटना के कुछ ही समय बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर “#CJI”, “#SupremeCourtIncident” और “#JudiciaryRespect” जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे।
जहां कुछ लोग आरोपी के व्यवहार की निंदा कर रहे थे, वहीं कुछ यूज़र्स ने न्यायपालिका से पारदर्शिता बढ़ाने की अपील की।
लोगों का कहना था कि अदालत में असहमति जताने का हक हर नागरिक को है, लेकिन उसका तरीका संविधानिक मर्यादा में रहकर होना चाहिए।
अदालत परिसर में सुरक्षा बढ़ाई गई
इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट परिसर में सुरक्षा को और मजबूत किया गया है।
प्रवेश द्वारों पर अतिरिक्त मेटल डिटेक्टर लगाए गए हैं और सुरक्षा कर्मियों को सतर्क रहने के निर्देश दिए गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने कहा कि ऐसी घटनाएं न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं और भविष्य में इस तरह की किसी भी कोशिश को सख्ती से रोका जाएगा।
Listen carefully to what ANI is asking while platforming the suspended lawyer Rakesh Kishore, who tried to throw a shoe at Chief Justice BR Gavai.
ANI reporter asked that people are spreading the ‘propaganda’ that a Dalit judge was attacked. pic.twitter.com/OUOLnrpKbD
— Abhishek (@AbhishekSay) October 7, 2025
धार्मिक विवाद का संदर्भ
जिस केस की सुनवाई के दौरान यह घटना घटी, वह एक धार्मिक भावना से जुड़ा मामला था। अदालत इस पर सुनवाई कर रही थी कि क्या किसी विशेष बयान को धार्मिक रूप से आपत्तिजनक माना जा सकता है या नहीं।
याचिका पर बहस के दौरान कुछ तीखी टिप्पणियों के चलते वातावरण तनावपूर्ण हो गया था, जिसके बाद यह अप्रत्याशित घटना हुई।
सरकार और कानून मंत्रालय की प्रतिक्रिया
कानून मंत्रालय ने इस घटना को “अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण” बताया और कहा कि अदालत की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
सरकार के प्रवक्ता ने कहा,
“भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, लेकिन अदालत में अनुशासन सर्वोपरि है।”
साथ ही, मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट प्रशासन को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को दोहराने का कोई मौका न मिले।
जनभावना और सामाजिक असर
यह घटना केवल कानूनी मामला नहीं रही, बल्कि सामाजिक चर्चा का विषय बन गई है।
कई लोगों का कहना है कि असंतोष या विरोध को व्यक्त करने के लिए लोकतांत्रिक रास्ते अपनाने चाहिए, न कि हिंसक व्यवहार।
कई बार इस तरह की घटनाएं लोगों में गलत संदेश भी भेजती हैं कि न्यायपालिका पर हमला करके कोई मुद्दा उठाया जा सकता है।
Darjeeling Landslide घटना से तुलना
हाल ही में देश ने एक और दुखद समाचार देखा था — दार्जिलिंग में भूस्खलन से 28 लोगों की मौत और कई लापता।
वह प्राकृतिक आपदा थी, जबकि यह घटना एक “मानसिक असंतुलन” और “भावनात्मक आवेश” का उदाहरण है।
दोनों घटनाएं हमें यह याद दिलाती हैं कि चाहे प्रकृति का कहर हो या समाज का गुस्सा — संयम और व्यवस्था बनाए रखना ही असली समाधान है।
कानूनी परिणाम क्या हो सकते हैं?
कानूनी जानकारों के मुताबिक, वकील पर Contempt of Court यानी “न्यायालय की अवमानना” का मामला दर्ज किया जा सकता है।
अगर दोष सिद्ध हुआ, तो उसे छह महीने तक की जेल या जुर्माना दोनों हो सकते हैं।
साथ ही, बार काउंसिल उसके वकालत लाइसेंस को भी निलंबित कर सकती है।
न्यायपालिका की प्रतिष्ठा बचाने की चुनौती
यह घटना इस बात की याद दिलाती है कि न्यायपालिका केवल कानून की व्याख्या करने वाला संस्थान नहीं, बल्कि जनविश्वास का प्रतीक है।
हर नागरिक को इस विश्वास को बनाए रखने में अपना योगदान देना चाहिए।
CJI गवई का संयमित रवैया इस बात का उदाहरण है कि सच्चा नेतृत्व हमेशा धैर्य और मर्यादा से पहचाना जाता है।
विश्वास की डोर को संभालना जरूरी
भारत की न्यायपालिका दुनिया की सबसे सम्मानित संस्थाओं में से एक है।
ऐसी घटनाएं भले ही कभी-कभी सामने आती हैं, लेकिन ये हमें यह सिखाती हैं कि कानून से ऊपर कोई नहीं है, और अनुशासन ही लोकतंत्र की नींव है।
न्यायालय केवल फैसला नहीं देता, बल्कि समाज को दिशा दिखाता है। इसलिए हर नागरिक की यह जिम्मेदारी है कि वह अदालत की गरिमा और कानून के प्रति सम्मान बनाए रखे।