बिहार की सियासत एक बार फिर चुनावी रंग में रंग गई है। जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक आ रहे हैं, एनडीए गठबंधन में हलचल बढ़ती जा रही है। दिन-ब-दिन घटनाक्रम बदल रहे हैं और सभी दल चुनाव में जीत हासिल करने के लिए अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। इसी बीच, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLM) की अहम बैठक का अचानक स्थगित होना और पार्टी के प्रमुख नेताजी उपेंद्र कुशवाहा का दिल्ली जाना, प्रदेश की राजनीति में चर्चा का विषय बन गया है। इन घटनाओं से न सिर्फ एनडीए खेमे में बेचैनी है, बल्कि विपक्ष को भी सरकार पर निशाना साधने का मौका मिल गया है। रालोसपा की बैठक और कुशवाहा की यात्रा को NDA में मतभेद की अटकलों के नजरिए से देखा जा रहा है।
RLM बैठक स्थगित होने के कारण
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की प्रस्तावित बैठक से ठीक पहले खबर आई कि यह बैठक अब अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेजी से फैल गई कि आंतरिक मुद्दों और सीट बंटवारे को लेकर पार्टी में कहीं-न-कहीं असंतोष की स्थिति है। सूत्रों की मानें तो एनडीए के घटक दलों के बीच सीट शेयरिंग पर सहमति नहीं बन पा रही है, विशेषकर RLM और अन्य प्रमुख दलों के बीच। पार्टी प्रवक्ता की संक्षिप्त टिप्पणी में सिर्फ इतना कहा गया कि ‘तकनीकी कारणों’ के चलते बैठक स्थगित हुई, लेकिन इसके पीछे की राजनीतिक चालबाजियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
कई विश्लेषक मानते हैं कि RLM की बैठक का स्थगित होना मात्र संयोग नहीं, बल्कि NDA अंदरूनी संकट की अभिव्यक्ति है। ऐसी स्थितियों में किसी भी पार्टी का आत्ममंथन और रणनीति सुधारना आम बात है, विशेषकर जब चुनाव के बीच गठबंधन की मजबूती को लेकर सवाल उठ रहे हों।
BIG BREAKING 🚨
Massive infighting is coming out in public from BJP allies in Bihar
RLM chief Upendra Kushwaha has openly accepted about the rift
“Nothing is well in NDA this time” 😂
Only vote chori can save BJP 😭 pic.twitter.com/b9FLHat7eO
— Amock_ (@Amockx2022) October 15, 2025
कुशवाहा की दिल्ली यात्रा का महत्व
बैठक स्थगित होने के कुछ ही घंटों बाद पार्टी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा का दिल्ली जाना कई सवालों को जन्म देता है। जानकारों का कहना है कि कुशवाहा दिल्ली दौर के दौरान शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात कर सकते हैं, जहाँ सीट बंटवारे, गठबंधन और अन्य संवेदनशील मुद्दों पर गहन चर्चा हो सकती है। यह समय अत्यंत निर्णायक है, क्योंकि चुनावी फिजा में हर दल चाहता है कि उसे अधिक से अधिक सीट मिले और उसकी रणनीति अंतिम रूप ले सके।
राजनीतिक विमर्श में यह भी चर्चा है कि कुशवाहा न केवल अपनी पार्टी के हितों को संजोए रखना चाहते हैं, बल्कि गठबंधन की राजनीति में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका साबित करना चाहते हैं। दिल्ली यात्रा को इस संदर्भ में देखा जा रहा है कि क्या वह किसी नए समझौते या बड़ी कवायद की रणनीति को अंतिम रूप देने जा रहे हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अगर समझौता नहीं होता है तो NDA में दरार और गहरी हो सकती है, जो चुनावी समीकरणों को पूरी तरह बदलकर रख देगी।
NDA में मतभेद और सीट बंटवारा
बिहार एनडीए के कुनबे में इन दिनों सबसे बड़ा विवाद सीट बंटवारे को लेकर है। भारतीय जनता पार्टी, जनता दल (यू) और रालोसपा के बीच ‘अपना हिस्सा’ तय करने के लिए लंबी बातचीत जारी है। विशेष रूप से कुछ शहरी और अति पिछड़े इलाकों में उम्मीदवारों को लेकर आम-सहमति नहीं बन पाई है। संगठन से जुड़े वरिष्ठ नेता मानते हैं कि अगर स्थानीय समीकरणों व जातिगत संतुलन का ध्यान नहीं रखा गया तो इसका सीधा असर चुनाव परिणाम पर पड़ सकता है।
दरअसल, पिछले चुनावों में भी सीट शेयरिंग का मुद्दा एनडीए के लिए उलझा रहा था, लेकिन तब विरोधी दल कमजोर थे। इस बार विपक्ष बेहद सशक्त और एकजुट है, जिसका असर एनडीए नेतृत्व पर साफ देखा जा सकता है। कुछ सूत्रों का दावा है कि सीट बंटवारे को लेकर RLM की ‘अपेक्षाओं’ पर पूरी तरह सहमति नहीं बन पाई है। ऐसे में कुशवाहा की दिल्ली यात्रा शासन और संगठन के बीच की खींचतान को सुलझाने की एक बड़ी कोशिश हो सकती है (देखें: बिहार चुनावी अपडेट्स, तिथि और NDA VS INDIA Bloc का बड़ा मुकाबला)
विपक्ष का पलटवार
NDA में हलचल देख विपक्ष चुप नहीं है। आरजेडी और कांग्रेस के नेताओं ने इस पूरे घटनाक्रम को NDA की ‘असफलता’ और ‘अंतर्विरोध’ का उदाहरण बताया है। तेजस्वी यादव ने जहाँ कहा कि ”जब गठबंधन में तालमेल नही है तो सरकार ऐसे ही डावा डोल होगी,” वहीं कांग्रेस प्रवक्ता ने तंज कसते हुए कहा कि ‘मतभेद का परिणाम जनता को भुगतना पड़ेगा’।
विपक्ष लगातार यह दावा कर रहा है कि NDA के घटक दलों के बीच विश्वसनीयता नहीं बची है और चुनाव से पहले तमाम जोड़-घटाव की रणनीति नाकाम साबित होने वाली है। सोशल मीडिया पर भी वर्ग विशेष के लोगों की प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है, जहाँ पर एनडीए के अंदर चल रहे ड्रामे का खूब मजाक बनाया जा रहा है।
जनता की राय और विश्लेषक दृष्टिकोण
चुनाव का माहौल बनने के साथ ही आम जनता का रुझान भी तेजी से सामने आ रहा है। चाय की दुकानों से लेकर डिजिटल प्लेटफॉर्म तक, हर जगह लोग NDA के ताजा विवाद पर चर्चा कर रहे हैं। सोशल मीडिया पोल में देखा जा रहा है कि मतदाता किसी एक दल पर विश्वास जताने से हिचक रहे हैं और मुद्दा साफ है – विकास, रोजगार और स्थिर सरकार।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बिहार का मतदाता इस बार निर्णायक भूमिका निभा सकता है। उनका कहना है कि गठबंधन टूटता है या मजबूत होता है, यह सिर्फ नेताओं की नहीं, आम जनता की भी चिंता है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि सीट शेयरिंग विवाद लंबा चला तो इसका सबसे बड़ा नुकसान एनडीए गठबंधन को ही हो सकता है, जिसका सीधा फायदा विपक्ष को मिलेगा।
हालिया गठबंधन समीकरण
इस बार के चुनावी समीकरणों में सिर्फ NDA और INDIA Bloc ही नहीं, बल्कि छोटे क्षेत्रीय दल भी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा, VIP पार्टी, LJP (रामविलास) जैसी पार्टियाँ अलग-अलग सीटों पर समीकरण बिगाड़ने या संवारने की ताकत रखती हैं।
इन दलों के प्रमुख नेताओं ने भी RLM बैठक स्थगित होने और कुशवाहा के दिल्ली रवाना होने पर वक्तव्य दिए, जिससे साबित होता है कि राज्य की राजनीति पूरी तरह से संभावनाओं और गठजोड़ों के ताने-बाने में उलझी हुई है। इन बदलावों का असर चुनाव के दिन तक बना रह सकता है।
चुनावी विश्लेषण और संभावनाएँ
निर्वाचन की घोषणा के बाद से बिहार की राजनीति अनिश्चितताओं के दौर से गुजर रही है। हर दल और गठबंधन अपनी रणनीति को मजबूत बनाने में कठिनाई झेल रहे हैं। NDA में दिख रही तल्खी, खींचतान और रालोसपा की रणनीतिक गहमागहमी से साफ है कि चुनावी अखाड़ा खुल चुका है।
वर्तमान परिस्थितियों को देखें तो आने वाले कुछ हफ्तों में यदि स्थिति साफ नहीं हुई तो यह मुद्दा और जटिल हो सकता है, जिससे चुनावी समीकरणों में बड़ा उलटफेर देखा जा सकता है। इसके साथ ही, विपक्ष के लिए बड़ी संभावनाएँ खुल सकती हैं।
निष्कर्ष
बिहार विधानसभा चुनाव का यह समय राज्य की राजनीति की परीक्षा का है। एनडीए में जारी अंदरूनी खींचतान, रालोसपा की बैठक का स्थगित होना और कुशवाहा की दिल्ली यात्रा – इन सबने प्रदेश की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। सीट बंटवारे को लेकर बनी असहमति अगर समय रहते नहीं सुलझी तो यह गठबंधन के लिए घातक साबित हो सकती है।
पाठक मित्रों, आपको क्या लगता है – बिहार में कौन सी पार्टी ज्यादा मजबूत है? क्या आपको लगता है एनडीए के घटक दल एक साथ रह पाएँगे, या कमज़ोरियाँ सामने आ जाएँगी? अपनी राय नीचे कमेंट में जरूर लिखें।