भारतीय क्रिकेट टीम के लिए फैमिली ट्रैवल पॉलिसी को लेकर हाल ही में जो बदलाव किए गए हैं, उसने खिलाड़ियों के बीच नई बहस छेड़ दी है। नियमों के मुताबिक अब विदेशी दौरों पर खिलाड़ियों के साथ उनके परिवार को सीमित समय के लिए ही साथ रहने की अनुमति दी जाएगी। यह निर्णय खिलाड़ियों की परफॉर्मेंस और अनुशासन को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
हालाँकि, इस बदलाव को लेकर कुछ सीनियर खिलाड़ियों ने चिंता ज़ाहिर की थी। उनका मानना है कि परिवार का साथ मानसिक मजबूती देने वाला होता है और इसके सीमित होने से दबाव और थकान बढ़ सकती है। इसी मुद्दे पर क्रिकेट जगत से मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही हैं।
गंभीर का सीधा जवाब: “छुट्टी मनाने नहीं आए”
गौतम गंभीर, जो खुद एक अनुभवी क्रिकेटर और अब टीम मैनेजमेंट का अहम हिस्सा माने जा रहे हैं, ने इस मुद्दे पर खुलकर बयान दिया। उन्होंने साफ कहा:
“यह क्रिकेट का टूर है, हॉलीडे ट्रिप नहीं। देश का प्रतिनिधित्व करने आए हैं, ना कि वेकेशन पर।”
गंभीर का ये बयान उन खिलाड़ियों के लिए सीधा संकेत माना जा रहा है जो हालिया बदलाव से असहज महसूस कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जब कोई खिलाड़ी भारत के लिए खेलता है तो प्राथमिकता टीम, राष्ट्र और प्रदर्शन होना चाहिए। उनके अनुसार, परिवार ज़रूरी है लेकिन जब टीम मिशन पर हो, तो ध्यान बंटाने वाली कोई भी चीज़ कम से कम होनी चाहिए।
गंभीर ने यह भी जोड़ दिया कि जब वह खुद खेलते थे, तब उन्हें भी लंबे समय तक परिवार से दूर रहना पड़ता था, लेकिन देश के लिए खेलना हर तकलीफ से ऊपर होता है।
“मैं परिवारों के साथ न होने के खिलाफ नहीं हूं”
◆ भारतीय टीम के हेड कोच गौतम गंभीर ने BCCI के नए नियम का समर्थन करते हुए कहा @GautamGambhir | #GautamGambhir | Gautam Gambhir pic.twitter.com/7YtHJoV0Eq
— News24 (@news24tvchannel) July 11, 2025
अनुभवी खिलाड़ियों की चिंताएं: अंदरूनी माहौल पर असर?
हालांकि गंभीर के बयान में साफ अनुशासन झलकता है, लेकिन कुछ सीनियर खिलाड़ियों की राय थोड़ी अलग रही है। उनका मानना है कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट पहले की तुलना में अब कहीं ज़्यादा demanding हो चुकी है। लगातार दौरे, कम आराम और भारी उम्मीदों के बीच अगर परिवार का साथ मिले तो मानसिक संतुलन बना रहता है।
ऐसे में जब यह पॉलिसी लागू की गई, कुछ खिलाड़ियों ने मौन असहमति ज़ाहिर की। हालांकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहा, लेकिन टीम के भीतर यह विषय ज़रूर चर्चा में रहा।
कुछ पूर्व खिलाड़ियों ने भी कहा है कि खिलाड़ियों को यह विकल्प दिया जाना चाहिए कि वे कब और कितने समय तक अपने परिवार को साथ रखें — बशर्ते वह प्रदर्शन को प्रभावित न करे।
पॉलिसी का अतीत और बदलती सोच
BCCI की फैमिली ट्रैवल पॉलिसी कोई नई बात नहीं है। पिछले कुछ सालों में यह नियम लचीले रहे हैं, खासकर COVID के समय, जब बायो-बबल में मानसिक तनाव के चलते खिलाड़ियों को छूट दी गई थी।
लेकिन जैसे-जैसे परिस्थिति सामान्य हो रही है, बोर्ड ने अब इन नियमों को कड़ा करना शुरू किया है। उनका मानना है कि पेशेवर माहौल बनाए रखने के लिए यह ज़रूरी है। खासकर जब खिलाड़ी एक सीरीज़ से दूसरी सीरीज़ की तैयारी में जुटे होते हैं, तो ऐसे में उन्हें distractions से बचाने के लिए ये कदम उठाए गए हैं।
BCCI के एक अधिकारी ने साफ किया है कि अब “ड्यूटी फर्स्ट” के सिद्धांत पर काम होगा — यानी परिवार के साथ समय ज़रूरी है, लेकिन लिमिट में।
टीम के भीतर बनती-बिगड़ती समीकरण
गंभीर के बयान ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सभी खिलाड़ी बोर्ड के निर्णय से सहमत हैं? कुछ खिलाड़ियों को लग सकता है कि यह पॉलिसी थोड़ी सख्त है, जबकि अन्य इसे ज़रूरी मानते हैं।
टेस्ट, ODI और T20 के बीच लगातार शेड्यूल और यात्रा के कारण खिलाड़ी थकावट महसूस करते हैं। ऐसे में टीम मैनेजमेंट को यह भी ध्यान देना होगा कि पॉलिसी लागू करते वक्त टीम के अंदर कोई मतभेद न बने।
एक और बड़ा मुद्दा यह भी है कि कप्तान और सीनियर खिलाड़ी किस तरह इस पॉलिसी को टीम के सामने प्रस्तुत करते हैं। यदि सभी प्रमुख खिलाड़ी एकमत होंगे तो टीम का मनोबल प्रभावित नहीं होगा।
and there’s bcci who doesn’t want families to travel along with players. see this🥹❤️ pic.twitter.com/2jeoFl8l69
— ɯlse (@pitchinginline) June 3, 2025
पेशेवर क्रिकेट में अनुशासन या सहूलियत?
यह सवाल केवल भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर की क्रिकेट टीमों के सामने आता रहा है। क्या खिलाड़ियों को टूर पर परिवार साथ रखने की छूट दी जाए या नहीं?
इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसी टीमें भी इस विषय पर स्पष्ट नियम बना चुकी हैं। कुछ सीरीज़ में खिलाड़ियों को फैमिली साथ लाने की अनुमति मिलती है, लेकिन वो नियम और अनुशासन के भीतर होती है।
पेशेवर खेल में मानसिक स्वास्थ्य भी उतना ही अहम है जितना कि फिटनेस। ऐसे में संतुलन बनाना ही समझदारी होगी। बोर्ड को चाहिए कि पॉलिसी को सख्त बनाते समय खिलाड़ियों की राय और उनकी जरूरतों को भी ध्यान में रखें।
नारी शक्ति की प्रेरणा: भारत की ऐतिहासिक T20 जीत
टीम इंडिया की महिला खिलाड़ियों ने हाल ही में इंग्लैंड के खिलाफ पहली बार T20 सीरीज़ जीतकर इतिहास रच दिया। यह जीत बताती है कि अनुशासन, समर्पण और टीम भावना किसी भी बाधा को पार कर सकती है।
भारत की महिला टीम ने इंग्लैंड को हराकर रचा इतिहास
उनकी इस उपलब्धि से यह सीख मिलती है कि परिवार की कमी के बावजूद, जब खिलाड़ी अपना सारा ध्यान खेल पर लगाते हैं, तो परिणाम भी शानदार आते हैं। ऐसे में यह उदाहरण पुरुष टीम के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।
क्या नियम ज़रूरी हैं या ज़्यादा सख्त?
गौतम गंभीर ने जो कहा, वह एक ज़िम्मेदार व्यक्ति की सोच को दर्शाता है — देश सर्वोपरि है। लेकिन साथ ही खिलाड़ियों की चिंताओं को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता।
BCCI को ऐसे फैसले लेते समय खिलाड़ियों से संवाद बनाए रखना चाहिए। क्रिकेट अब सिर्फ शरीर का खेल नहीं, बल्कि दिमाग और भावनाओं का भी है। संतुलन ही इसका हल है।
संभावना है कि आने वाले समय में इस पॉलिसी में कुछ लचीलापन आ सकता है — ताकि खिलाड़ी और बोर्ड दोनों ही अपने-अपने उद्देश्यों को सफल बना सकें।