पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक बेहद अहम फैसला सुनाते हुए पटियाला के कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ पर हुए हमले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंप दी है। कोर्ट ने पंजाब पुलिस और जांच कर रही SIT की भूमिका पर गहरी नाराजगी जताई और कई गंभीर टिप्पणियां भी कीं। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि SIT का मकसद सच्चाई उजागर करना नहीं बल्कि जिम्मेदार अधिकारियों को बचाना लग रहा है।
केस की पृष्ठभूमि
यह मामला मार्च 2024 का है जब रिटायर्ड कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ पर पटियाला स्थित उनके आवास के बाहर कुछ लोगों ने हमला किया था। हमलावरों ने उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया था और उनकी जान भी जा सकती थी। शुरुआत में स्थानीय पुलिस ने इस घटना को मामूली मानते हुए हल्की धाराओं में केस दर्ज किया और जल्द ही इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
कर्नल बाठ ने आरोप लगाया कि हमलावरों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था और पुलिस उन पर किसी भी तरह की सख्त कार्रवाई करने से बच रही थी। उन्होंने बताया कि न केवल हमले की ठीक से जांच नहीं की गई, बल्कि सबूतों को नजरअंदाज किया गया और उनकी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया गया।
Col Bath’s wife said: “I am tired, but I will not give up until they are punished. 120 days have passed, and I am still fighting for justice.” Today, the Punjab & Haryana High Court transferred Col Pushpinder Bath’s assault case probe to the CBI. Justice Rajesh Bhardwaj has… https://t.co/3jPHR2QEep pic.twitter.com/izTbxGPTxC
— Gagandeep Singh (@Gagan4344) July 16, 2025
SIT की जांच पर हाईकोर्ट की टिप्पणी
मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए पुलिस ने विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया, जिसमें पंजाब पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। लेकिन हाईकोर्ट ने इस SIT की जांच को ‘पक्षपाती’ और ‘दिशाहीन’ करार दिया। कोर्ट का मानना है कि SIT की भूमिका निष्पक्ष नहीं रही और उन्होंने आरोपियों को बचाने का प्रयास किया।
कोर्ट ने कहा कि SIT ने जांच में वही पहलू उजागर किए जो पुलिस के पक्ष में जाते थे, जबकि कई अहम पहलुओं की या तो अनदेखी की गई या उन्हें जानबूझकर छिपाया गया। कोर्ट को यह भी आशंका हुई कि SIT के कुछ सदस्य जानबूझकर मामले को प्रभावित कर रहे हैं ताकि कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को बचाया जा सके।
हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: CBI को सौंपी गई जांच
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि SIT द्वारा की गई जांच पर भरोसा नहीं किया जा सकता और यह मामला पूरी तरह निष्पक्षता की मांग करता है। इसीलिए अदालत ने इस केस की जांच अब CBI को सौंपने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जांच में पारदर्शिता बेहद जरूरी है और जब एक पूर्व सैन्य अधिकारी पर हमला हो और पुलिस पर पक्षपात के आरोप लगें, तो राज्य की कानून व्यवस्था की साख पर भी सवाल खड़े होते हैं। अदालत ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि SIT की कार्यशैली और पुलिस की शुरुआत से बरती गई लापरवाही इस केस को किसी स्वतंत्र एजेंसी के पास भेजने को जरूरी बनाती है।
पीड़ित कर्नल का पक्ष और याचिका का आधार
कर्नल बाठ ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए आरोप लगाया कि पुलिस मामले में निष्पक्ष कार्रवाई नहीं कर रही है। उन्होंने याचिका में SIT की जांच पर भी सवाल उठाए और कहा कि उन्हें यह विश्वास नहीं रहा कि उन्हें न्याय मिलेगा। उनकी याचिका में यह स्पष्ट किया गया था कि हमलावरों के राजनीतिक संबंध हैं और पुलिस उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं करना चाहती।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों को गंभीरता से लेते हुए कहा कि प्रस्तुत किए गए तथ्यों से यह साफ है कि इस मामले में न्याय दिलाने के लिए पुलिस तंत्र पर भरोसा नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि यदि अब भी मामले की जांच पुलिस के ही हाथों में रहती, तो निष्पक्ष परिणाम की उम्मीद नहीं की जा सकती थी।
पुलिस पर कोर्ट की तीखी टिप्पणियां
हाईकोर्ट ने पंजाब पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि FIR दर्ज करने में देरी, सबूतों की अनदेखी और आरोपियों को संरक्षण देने जैसी बातों से यह स्पष्ट होता है कि जांच में सच्चाई को दबाने की कोशिश की गई। कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस की कार्यशैली से यह प्रतीत होता है जैसे किसी विशेष समूह या अधिकारियों को बचाने की कोशिश हो रही हो।
कोर्ट ने यह भी कहा कि पुलिस द्वारा जमा की गई रिपोर्टों में विरोधाभास हैं और कई बिंदु ऐसे हैं जो संदेह पैदा करते हैं। यही कारण है कि अदालत ने स्पष्ट रूप से यह माना कि SIT के रहते इस मामले में न्याय संभव नहीं।
आगे की कानूनी प्रक्रिया और असर
अब इस केस की जांच पूरी तरह से CBI के अधीन होगी। CBI को इस मामले से संबंधित सभी दस्तावेज, सबूत और SIT की रिपोर्ट जल्द ही सौंप दी जाएगी। अदालत ने CBI को निर्देश दिया है कि वह तय समयसीमा में जांच पूरी करे और रिपोर्ट कोर्ट में पेश करे।
इसके अलावा अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या SIT और पुलिस के उन अफसरों पर भी कोई कार्रवाई होगी, जिनकी भूमिका पर कोर्ट ने टिप्पणी की है। हालांकि इस पर कोई स्पष्ट आदेश नहीं है, लेकिन संभावना है कि भविष्य में इन अधिकारियों की भूमिका की भी जांच हो।
केस का व्यापक असर और आगे की दिशा
हाईकोर्ट का यह रवैया नया नहीं है। इससे पहले भी अदालत ने ऐसे कई मामलों में राज्य प्रशासन और पुलिस तंत्र की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। हाल ही में अदालत ने जेलों में बंद कैदियों को पैरोल देने में देरी पर भी सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि कैदी दूसरे दर्जे के नागरिक नहीं हैं। ऐसे फैसले यह दर्शाते हैं कि अदालत अब सिर्फ कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि उसके पीछे की नैतिकता और पारदर्शिता पर भी जोर दे रही है।
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