प्यार न तो धर्म देखता है, न ही जात और न ही सरहदें। मेरठ की एक महिला की ज़िंदगी इसका जीता-जागता उदाहरण है। लगभग एक दशक पहले, इस महिला का विवाह पाकिस्तान के कराची में रहने वाले एक व्यक्ति से हुआ। वह भारत से पाकिस्तान गई और वहीं का पारिवारिक जीवन शुरू किया। दो मासूम बच्चे – एक बेटा और एक बेटी – इस रिश्ते की पहचान बने।
कई सालों तक सब सामान्य रहा। भारत की बेटी पाकिस्तान की बहू बनकर वहाँ की ज़िंदगी में रच-बस गई थी। लेकिन जैसे ही दस्तावेज़ों की बात आई, हालात बदल गए।
वापसी की चाह और एक बंद दरवाज़ा
कुछ समय पहले, यह महिला किसी पारिवारिक कारण या व्यक्तिगत ज़रूरत के चलते भारत लौटी। उसका इरादा कुछ समय बाद फिर पाकिस्तान लौटने का था, जहाँ उसका पति और बच्चे थे। लेकिन उसके पास भारतीय पासपोर्ट था, और यही दस्तावेज़ उसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा बन गया।
वह जब अपने बच्चों को लेकर वाघा बॉर्डर पहुँची, तो उसे पाकिस्तान में प्रवेश नहीं करने दिया गया।
👉 पूरा मामला पढ़ें: भारतीय पासपोर्ट के कारण वाघा बॉर्डर पर रोकी गई मेरठ की महिला
भारत-पाकिस्तान के बीच जारी तनाव और कड़ी वीजा नीति ने एक माँ को उसके बच्चों के साथ अपने ही देश में पराया बना दिया।
अमृतसर — मेरठ की सना, जिसने पाकिस्तान में शादी की थी, अब अटारी बॉर्डर पर अपने दो बच्चों के साथ भारत में रुकने की गुहार लगा रही है।
— प्रशासन उसके बच्चों को पाकिस्तान वापस भेजने की तैयारी में है।
— आपकी राय: वापस भेजा जाए (DEPORT) या रहने दिया जाए (STAY)…?#IndiaPakistanWar pic.twitter.com/GrnA7OR49y
— Ashu oli (@ashu_oli) May 5, 2025
कानूनी दांव-पेंच और इंसानियत की हार
भारतीय नागरिकता रखने के कारण वह महिला पाकिस्तान में स्थायी रूप से नहीं रह सकती थी। वहीं उसके बच्चों की नागरिकता को लेकर भी स्थिति अस्पष्ट थी।
कई प्रयासों और बातचीत के बावजूद, न भारत सरकार से कोई विशेष अनुमति मिली, न पाकिस्तान सरकार से कोई नरमी।
एक माँ, जो अपने बच्चों के लिए अपनी ज़मीन, अपना परिवार, सब कुछ छोड़ आई थी, अब उसी मातृभूमि पर उन्हें अपने से अलग करने को मजबूर हो गई।
“बच्चे पिता से मिलने की ज़िद कर रहे थे…” — माँ की चुप्पी में दर्द
महिला ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उसके दोनों बच्चे लगातार अपने पिता से मिलने की ज़िद कर रहे थे।
वो खुद आर्थिक और भावनात्मक रूप से बिखर चुकी थी, और भारत में रहकर बच्चों की देखभाल करना उसके लिए असंभव होता जा रहा था।
उसकी आँखें नम थीं जब उसने कहा —
“पता नहीं अब कब मिलेंगे मेरे बच्चे मुझसे…”
इस वाक्य में एक माँ का वह दर्द था, जिसे शब्दों में बाँधना नामुमकिन है।
वाघा बॉर्डर पर एक मार्मिक दृश्य
जब दोनों बच्चों को पाकिस्तान भेजा गया, तो मीडिया और सुरक्षा बलों की मौजूदगी में एक बेहद भावुक दृश्य देखने को मिला। माँ बच्चों को लिपटकर रो रही थी, बच्चे भी उलझन और दुख में थे।
वो पल, किसी एक परिवार की नहीं, इंसानियत की हार जैसा लगा।
बॉर्डर सिर्फ ज़मीनों को नहीं, रिश्तों को भी बाँट देते हैं — इस बात को उस दिन सभी ने महसूस किया।
नागरिकता, नीति और नीयत का सवाल
भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों की जटिलता, अंतरराष्ट्रीय विवाहों को एक नई चुनौती देती है।
दूसरे देशों के बीच ऐसे विवाहों के लिए स्पष्ट नीतियाँ होती हैं, लेकिन भारत और पाकिस्तान के मामलों में यह अब भी एक कानूनी भूलभुलैया है।
इस मामले में:
- महिला भारतीय नागरिक है
- पति पाकिस्तानी है
- बच्चे कहाँ के हैं — यह तय करने वाला कोई सिस्टम नहीं है
ऐसे में महिला के पास न बच्चों को अपने पास रखने का विकल्प बचा, न खुद पाकिस्तान जाकर रहने का।
सोशल मीडिया की प्रतिक्रियाएं: सहानुभूति और सवाल
जैसे ही यह मामला सामने आया, सोशल मीडिया पर लोगों ने अपनी भावनाएं जाहिर कीं।
👉 किसी ने कहा, “सरहदें बच्चों को माँ से नहीं जुदा कर सकतीं, यह मानवाधिकार का उल्लंघन है।”
👉 तो कोई बोला, “सरकार को इस तरह के मामलों के लिए विशेष नीति बनानी चाहिए, ताकि परिवार टूटें नहीं।”
लोगों ने इस बात पर भी चिंता जताई कि क्या एक माँ को सिर्फ पासपोर्ट की वजह से अपने बच्चों से जुदा किया जाना सही है?
इस तरह की घटनाओं के साथ-साथ, देश के अंदर धार्मिक तनाव या मुस्लिम युवाओं की गिरफ्तारी जैसे मामले भी लगातार बढ़ती संवेदनशीलता की ओर इशारा करते हैं।
दो देशों के बीच फंसी एक ज़िंदगी
यह कहानी केवल एक महिला और उसके बच्चों की नहीं है।
यह उन सैकड़ों महिलाओं की कहानी है, जिन्होंने सरहद पार प्रेम किया, शादी की, लेकिन जब मामला कागज़ों तक पहुँचा, तो सिस्टम ने उन्हें अकेला छोड़ दिया।
भारत-पाक तनाव केवल राजनीति तक सीमित नहीं है, इसका असर सीधे आम आदमी की ज़िंदगी पर पड़ता है।
इस महिला की हालत यह दिखाती है कि कैसे एक परिवार, एक माँ, दो देशों के बीच फंस कर रह गई।
क्या है समाधान?
इस तरह के मामलों के लिए भारत और पाकिस्तान दोनों को मानवता के स्तर पर नीति बनाने की ज़रूरत है।
विवाह, बच्चों और नागरिकता जैसे मुद्दों पर एक द्विपक्षीय समझौता होना चाहिए ताकि न मासूम बच्चे बिछड़ें और न ही परिवार टूटे।
इंसानियत सरहद से बड़ी होनी चाहिए — यही इस कहानी का सबसे बड़ा संदेश है।
निष्कर्ष: एक अधूरी माँ, अधूरे रिश्ते
आज वह महिला मेरठ में है — अकेली, अपने बच्चों की तस्वीरों को देखकर दिन काट रही है।
बच्चे कराची में हैं — माँ की ममता से दूर, मगर पिता के पास।
शायद समय और सरकारें कभी इस माँ को फिर से उसके बच्चों से मिलाने का रास्ता बनाएंगी।
लेकिन तब तक… वह इंतज़ार करती रहेगी।
📢 आपकी राय ज़रूरी है!
क्या आपको लगता है कि ऐसे मामलों के लिए भारत-पाक सरकार को मानवीय नीति बनानी चाहिए?
क्या बच्चों और माँ को कागज़ों से जुदा किया जाना उचित है?
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