29 सितंबर 2008 की शाम महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव शहर में हुआ एक बम विस्फोट देश को झकझोर कर रख गया था। इस धमाके में 6 लोगों की मौत हुई और 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे। यह विस्फोट एक ऐसे समय हुआ जब देश में सांप्रदायिक तनाव और आतंकवाद को लेकर पहले ही काफी बेचैनी थी। 17 साल बीत जाने के बाद भी इस केस में आज तक अंतिम फैसला नहीं आया है।
🧭 धमाके की रात: क्या हुआ था 29 सितंबर 2008 को?
घटना रमज़ान के पवित्र महीने में मालेगांव के भीड़भाड़ वाले भिकू चौक इलाके में हुई थी। दोपहिया वाहन में लगाए गए विस्फोटक ने कुछ ही सेकंड में सब कुछ तहस-नहस कर दिया। लोगों की लाशें बिखरी हुई थीं, दुकानों के शटर टूट गए और पूरा क्षेत्र काले धुएं से ढंक गया था।
मारे गए लोगों में अधिकतर मुस्लिम समुदाय से थे, जिससे सांप्रदायिक तनाव और बढ़ गया। पुलिस, ATS और बाद में NIA ने जांच अपने हाथ में ली।
🕵️♂️ जांच का सफर: ATS से NIA तक की यात्रा
शुरुआती जांच महाराष्ट्र ATS ने की थी। शुरुआती सबूतों के आधार पर संदेह हिंदू संगठनों की ओर गया और एक चौंकाने वाला मोड़ आया जब प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल श्रीकांत पुरोहित, और अन्य को गिरफ्तार किया गया।
2009 में केस NIA को सौंपा गया। ATS और NIA की जांच के दौरान कई विवाद खड़े हुए — जैसे सबूतों की वैधता, बयान लेने में जबरदस्ती, और जांच एजेंसियों के बीच मतभेद।
👩⚖️ मुख्य आरोपी: प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित की भूमिका पर सवाल
प्रज्ञा ठाकुर, जो बाद में भोपाल से सांसद बनीं, उस समय एक साध्वी थीं। आरोप था कि विस्फोट में इस्तेमाल की गई मोटरसाइकिल उन्हीं की थी। कर्नल पुरोहित पर आरोप था कि उन्होंने विस्फोट की साजिश रची और हिंदू राष्ट्र की योजना में सक्रिय भूमिका निभाई।
दोनों को लंबे समय तक जेल में रखा गया, लेकिन बाद में उन्हें जमानत मिल गई।
कोर्ट ने कहा, “सबूतों की पुष्टता अंतिम परीक्षण में ही होगी।”
📑 गवाह, सबूत और विवाद
मामले में 223 गवाहों में से लगभग 100 गवाह अब तक बयान से पलट चुके हैं।
NIA द्वारा पेश किए गए कई सबूतों की वैधता पर कोर्ट ने सवाल उठाए।
फोरेंसिक रिपोर्ट में विस्फोटक के प्रकार और स्रोत को लेकर भी भ्रम देखा गया।
यह बात भी सामने आई कि ATS और NIA की रिपोर्ट्स कई बिंदुओं पर मेल नहीं खातीं, जिससे अदालत की प्रक्रिया और भी जटिल हो गई।
17 साल, 10800 सबूत, 332 गवाह,400 से ज़्यादा चीजें कोर्ट में पेश की गईं, 5 जज और अंत में कोर्ट ने कहा “सबूत ही नहीं छोड़ दो सबको”
मालेगांव ब्लास्ट के आरोपी प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल पुरोहित समेत सभी आरोपी रिहा हो गए pic.twitter.com/0uCg2IfqQw
— Kavish Aziz (@azizkavish) July 31, 2025
⚖️ अब तक का न्यायिक सफर: 17 साल की कानूनी लड़ाई
मामला 2008 से लंबित है। सैकड़ों सुनवाइयों के बावजूद, अंतिम फैसला अभी तक नहीं आया है।
2024 में NIA की विशेष अदालत ने बयान दर्ज करने का काम लगभग पूरा कर लिया, और अब फैसला “किसी भी समय” आने की उम्मीद है।
इस दौरान कई आरोपी मानसिक और शारीरिक रूप से टूट चुके हैं, जबकि कई लोगों को न्याय की उम्मीद में जीवन गुजारना पड़ा।
📅 जल्द आने वाला कोर्ट का फैसला: क्या उम्मीद करें?
विशेष अदालत ने संकेत दिया है कि अंतिम फैसला जुलाई 2025 के अंत तक सुनाया जा सकता है।
अगर आरोपी दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक हो सकता है। वहीं, अगर बरी किए जाते हैं तो न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता एक बार फिर सवालों में आ जाएगी।
📚 इस केस से जुड़े अन्य केस: मुंबई ट्रेन ब्लास्ट और बरी किए गए निर्दोष
हाल ही में मुंबई 7/11 ट्रेन ब्लास्ट केस में 12 लोगों को 19 साल बाद निर्दोष साबित कर छोड़ा गया, जिससे भारत की न्याय प्रणाली की धीमी प्रक्रिया फिर सवालों में आ गई।
कई मामलों में लोगों को लंबी कैद भुगतने के बाद छोड़ा जा रहा है, क्योंकि असली अपराधी पकड़ में नहीं आते या सबूत टिक नहीं पाते।
🧑🤝🧑 लोकतंत्र, पहचान और न्याय प्रक्रिया
जब निर्दोष लोगों को सालों जेल में रहना पड़ता है और असली अपराधी बच जाते हैं, तो इससे लोकतंत्र पर चोट होती है।
मालेगांव केस में देरी न केवल पीड़ितों बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है कि न्याय अगर समय पर न मिले तो वह न्याय नहीं कहलाता।
मालेगांव केस की तरह ही एक और गंभीर मुद्दा बिहार से सामने आया है, जहां 61 लाख से अधिक वोटरों के संभावित बाहर होने की रिपोर्ट ने देश को चौंका दिया है।
✅ निष्कर्ष
मालेगांव ब्लास्ट केस सिर्फ एक आपराधिक मामला नहीं, बल्कि यह भारत की न्याय प्रणाली और जांच एजेंसियों की निष्पक्षता की कसौटी भी है।
17 साल बाद अगर दोषी और निर्दोष की पहचान स्पष्ट नहीं हो पा रही है, तो हमें खुद से सवाल करने की ज़रूरत है — क्या हम एक भरोसेमंद लोकतंत्र में जी रहे हैं?
आप क्या सोचते हैं — क्या मालेगांव केस में न्याय हो पाएगा?
क्या इस तरह की देरी से देश की न्याय प्रणाली पर लोगों का विश्वास कमजोर हो रहा है?
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