“मैं अब क्लास में सवाल नहीं पूछती। ना ज़ूम कॉल में कुछ कहती हूं, ना ही सोशल मीडिया पर कुछ लिखती हूं। क्या पता कब वीज़ा कैंसिल हो जाए…।” — यह शब्द हैं एक भारतीय छात्रा के, जो अमेरिका के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रही हैं।
बीते कुछ महीनों में अमेरिका में पढ़ रहे हज़ारों विदेशी छात्रों को जो कुछ सहना पड़ा, वह सिर्फ नीतियों की बात नहीं थी — वह विश्वास टूटने की प्रक्रिया थी।
एक विवि से शुरू हुआ मामला, अब वैश्विक बहस बन गया
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में कुछ छात्रों द्वारा प्रशासनिक निर्णयों पर सवाल उठाने के बाद जो कार्रवाई हुई, उसने पूरे अकादमिक जगत को चौंका दिया। छात्रों के वीज़ा की जांच शुरू कर दी गई, कुछ को अनुशासनात्मक नोटिस दिए गए, और कुछ के प्रवेश पत्र रोक दिए गए।
भारत, चीन, ईरान, नाइजीरिया, बांग्लादेश जैसे देशों से आए छात्र — जो अपने परिवारों का सपना लेकर यहां पहुंचे थे — अब खुद को अकेला, डरा और अनिश्चित पा रहे हैं।
“हम केवल छात्र हैं, अपराधी नहीं” — छात्रों की टूटती आवाज़
शिकागो में रहने वाले एक भारतीय शोधार्थी ने बताया:
“हमने न तो कोई हिंसा की, न कोई कानून तोड़ा। सिर्फ एक सवाल पूछा था — क्या हमारा पाठ्यक्रम निष्पक्ष है? और जवाब में हमें धमकी मिली — ‘वीज़ा रिव्यू होगा’।”
BREAKING: Trump suspends all student visas temporarily to expand social media screening of international students to the US.
The US Embassy of India also says skipping classes can get your visa revoked.
It’s a tough time to be an international student in the US. pic.twitter.com/2XkwjHQhHy
— Deedy (@deedydas) May 28, 2025
सपनों के साथ भेजे गए बच्चे, अब वापसी का डर झेल रहे माता-पिता
मेरठ की रहने वाली आशा शर्मा बताती हैं, “बेटा चार साल से न्यू यॉर्क में पढ़ाई कर रहा है। इस बार वो बोला कि शायद लौटना पड़े, क्योंकि यूनिवर्सिटी ने कुछ दस्तावेज़ रोक लिए हैं। मैं रात भर सो नहीं पाई।”
भारत जैसे देशों में जहां उच्च शिक्षा को लेकर अमेरिका में भेजना ‘सपनों की ऊँचाई’ मानी जाती है, वहां ऐसे फैसले पूरे परिवार को तोड़ कर रख देते हैं।
शिक्षा बनाम सत्ता — जब सवाल पूछना गुनाह बन जाए
विश्वविद्यालयों को हमेशा खुलापन, विचारों की आज़ादी और बहस का केंद्र माना गया है। लेकिन अब, अमेरिका जैसे देश में भी यह माहौल संकुचित होता जा रहा है।
क्या यह सच में वही देश है जिसने ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच’ को संविधान में लिखा था?
राजनीति की छाया, शिक्षा की स्वतंत्रता पर
विशेषज्ञों का मानना है कि यह सब कुछ चुनावी रणनीति का हिस्सा है। विदेशी छात्रों को निशाना बनाना, अप्रवासियों के प्रति कठोर नीति दिखाना — यह सब कुछ वोटरों के एक वर्ग को साधने की कोशिश हो सकती है।
लेकिन इन रणनीतियों का वास्तविक खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है जो किसी देश की राजनीति का हिस्सा नहीं, बल्कि वहां सिर्फ पढ़ाई के लिए आए हैं।
एक डरावना भविष्य — “क्या मैं वापस जा पाऊंगा?”
सैंकड़ों छात्र ऐसे हैं जिनके वीज़ा की वैधता पर संदेह है। कुछ को कैम्पस में प्रवेश नहीं दिया जा रहा, तो कुछ को भविष्य के सेमेस्टर में पंजीकरण की अनुमति नहीं दी गई।
इन छात्रों में डर सिर्फ पढ़ाई छूटने का नहीं है — डर है कि चार साल की मेहनत, लाखों रुपये की फीस और घर से दूर बिताए गए वर्षों का कोई अर्थ न रह जाए।
✦ क्या यह कदम चुनाव से जुड़े हैं?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि शिक्षा और वीज़ा जैसे मुद्दों पर लिए गए ऐसे फैसले कई बार चुनावी रणनीति का हिस्सा हो सकते हैं। इससे कुछ वर्ग विशेष का समर्थन हासिल किया जा सकता है, जबकि कुछ वर्गों को निशाना बनाया जाता है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) तक ने ट्रंप पर सवाल उठाए हैं कि वे भारत-पाकिस्तान युद्धविराम जैसे मामलों में भी अपने नाम की तारीफें लेने से नहीं चूकते, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनका ध्यान नीतियों से ज़्यादा प्रचार पर केंद्रित है। पूरा विवरण यहां पढ़ें।
क्या भारत सरकार कुछ कर सकती है?
अब सवाल उठता है — भारत सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख लेगी? विदेश मंत्रालय ने औपचारिक तौर पर कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन छात्रों के परिवार अब आवाज़ उठा रहे हैं।
छात्र संगठनों ने भारत में अमेरिकी दूतावास के बाहर प्रदर्शन की तैयारी शुरू कर दी है। वे चाहते हैं कि सरकार अमेरिका से बात करे और छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
जब शिक्षा डर से घिर जाए — क्या विकल्प बचते हैं?
कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूके जैसे देशों की ओर छात्रों का रुझान अब बढ़ने लगा है। लेकिन सवाल सिर्फ वीज़ा का नहीं है — सवाल है उस माहौल का, जहां शिक्षा के साथ आत्म-सम्मान और बोलने की आज़ादी भी हो।
आपकी राय क्या है?
क्या आप भी विदेश में पढ़ाई कर रहे हैं या करने का सोच रहे हैं? क्या आपके साथ या किसी जानने वाले के साथ ऐसा अनुभव हुआ है?
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हर आवाज़ एक बदलाव ला सकती है। और शायद, किसी डरे हुए छात्र को ये एहसास दिला सकती है कि वो अकेला नहीं है।