पंजाब सरकार ने खेती को टिकाऊ बनाने और भूमिगत जल संकट से निपटने के लिए एक ऐतिहासिक फैसला लिया है। राज्य ने इस खरीफ सीजन में पांच लाख एकड़ भूमि पर “डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस” (DSR) तकनीक से धान की खेती का लक्ष्य तय किया है। यह पहल परंपरागत पद्धति से हटकर, वैज्ञानिक तरीके अपनाने और जल संरक्षण को बढ़ावा देने की दिशा में बड़ा कदम मानी जा रही है।
🔹 क्या है डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस (DSR)?
DSR एक ऐसी विधि है जिसमें धान की नर्सरी तैयार कर उसे रोपने की बजाय बीजों को सीधे खेत में बोया जाता है। इससे न केवल मेहनत और समय की बचत होती है, बल्कि सिंचाई की आवश्यकता भी काफी हद तक घट जाती है।
👉 मुख्य लाभ:
- पानी की 15–20% तक बचत
- लेबर लागत में कमी
- रोपाई और ट्रांसप्लांटिंग की आवश्यकता नहीं
- खेतों में खरपतवार नियंत्रण आसान
🔸 पंजाब सरकार का लक्ष्य: जल संकट से राहत की उम्मीद
पंजाब कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार, इस साल 5 लाख एकड़ भूमि को DSR तकनीक से कवर करने का लक्ष्य रखा गया है। यह पिछले वर्षों की तुलना में सबसे बड़ा प्रयास है। सरकार का मानना है कि यदि किसान बड़े पैमाने पर इस तकनीक को अपनाएं, तो राज्य के जलस्तर में गिरावट को रोका जा सकता है।
📌 “हमने जिलावार लक्ष्य तय किए हैं और अधिकारियों को फील्ड में तैनात कर दिया गया है। किसानों को ट्रेनिंग देने और मशीनें उपलब्ध कराने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है,” – कृषि निदेशालय, पंजाब।
पंजाब के भूमिगत जल को बचाने के लिए पंजाब भर में आज से धान की सीधी बुवाई की शुरुआत होने जा रही है. इस बार सीधी बुवाई के माध्यम से हमने 5 लाख एकड़ क्षेत्र का लक्ष्य तय किया है. एक ओर जहां सीधी बुवाई से 15-20% पानी की बचत होती है, वहीं दूसरी ओर इससे अन्य खर्चों में भी कमी आती है. इस… pic.twitter.com/UefVk87Pch
— TV9 Bharatvarsh (@TV9Bharatvarsh) May 15, 2025
🔹 पिछले वर्षों से सबक: 2023 में क्यों नहीं मिला सफलता का स्वाद?
पिछले साल सरकार ने 7.6 लाख एकड़ में DSR का लक्ष्य रखा था, लेकिन केवल 1.73 लाख एकड़ में ही तकनीक अपनाई जा सकी। इसके पीछे मुख्य कारण थे:
- मानसून की देरी
- किसानों को मशीनों की समय पर उपलब्धता नहीं होना
- तकनीकी जानकारी की कमी
इस बार सरकार इन मुद्दों से निपटने के लिए पहले से तैयार है।
🔸 कैसे मिलेगा किसानों को सहयोग?
सरकार ने DSR अपनाने वाले किसानों के लिए कई सहयोग योजनाएं घोषित की हैं:
✅ सब्सिडी – बीज ड्रिल मशीन और लेजर लैंड लेवलर पर 50% तक सब्सिडी
✅ प्रशिक्षण कैम्प – हर जिले में DSR पर कार्यशालाएं
✅ समर्पित हेल्पलाइन – तकनीकी मदद के लिए टोल-फ्री नंबर
✅ फील्ड विजिट्स – कृषि अधिकारियों की निगरानी में समय-समय पर फसल निरीक्षण
🔹 जल संरक्षण का एक व्यावहारिक मॉडल
पंजाब जैसे राज्य, जहां खेती मुख्य पेशा है, वहां भूमिगत जलस्तर में निरंतर गिरावट एक गंभीर चिंता है। हर साल धान की परंपरागत रोपाई में करोड़ों लीटर पानी बर्बाद होता है। DSR तकनीक इस दिशा में राहत देने का काम कर सकती है।
🌱 “एक एकड़ धान की फसल में परंपरागत तरीके से करीब 5000 लीटर पानी लगता है, वहीं DSR से यह घटकर लगभग 3500 लीटर तक आ जाता है,” – पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट।
साथ ही, जल संरक्षण और कृषि सुधार के ऐसे प्रयासों को तभी सफलता मिलेगी जब केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय मजबूत हो — जैसा कि हाल ही में पंजाब-हरियाणा जल विवाद पर हाईकोर्ट के फैसले से भी स्पष्ट हुआ है।
🔸 किसानों की सोच में बदलाव – क्या वे तैयार हैं?
हालांकि कई किसान इस तकनीक को आज़मा चुके हैं, फिर भी बहुतों को संदेह है। अमृतसर के एक प्रगतिशील किसान रणजीत सिंह कहते हैं:
🗣️ “पिछले साल DSR से बुआई की थी, पानी और श्रम दोनों की बचत हुई। पर बारिश न होने से फसल को थोड़ा नुकसान हुआ। इस बार फिर से ट्राई करूंगा, पर समय का ध्यान रखूंगा।”
वहीं कुछ किसान इसे जोखिम भरा मानते हैं:
🗣️ “नयी तकनीक समझने और अपनाने में समय लगता है, मशीनें महंगी हैं और गारंटी नहीं मिलती,” – गुरदासपुर के किसान चरणजीत कौर।
🔹 विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि सरकार की यह पहल सही दिशा में है, लेकिन सफलता तभी मिलेगी जब नीति और जमीनी कार्यान्वयन एक साथ चले।
🔍 “सरकार को केवल लक्ष्य नहीं, ज़मीनी हकीकत पर काम करना होगा – जैसे कि खेतों में समय पर मशीन पहुंचाना, किसानों को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग देना और मौसम के हिसाब से सलाह देना,” – डॉ. हरेंद्र पाल, कृषि विशेषज्ञ।
🔸 राजनीतिक दृष्टिकोण: समर्थन बनाम व्यावहारिकता
विपक्ष का कहना है कि सरकार ने पिछली बार बड़े दावे किए थे लेकिन जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन कमजोर रहा। इस बार भी केवल लक्ष्य तय कर देना काफी नहीं है, उस पर अमल करना ज़रूरी है।
हालांकि, सरकार इस बार ज्यादा सजग है। मुख्यमंत्री भगवंत मान स्वयं इस योजना की निगरानी कर रहे हैं और फील्ड अधिकारियों को हर सप्ताह रिपोर्ट देने के निर्देश दिए गए हैं।
🔹 क्या DSR बनेगा पंजाब का नया खेती मॉडल?
यदि इस बार 5 लाख एकड़ भूमि पर DSR सफलतापूर्वक हो गया, तो यह देश के अन्य राज्यों के लिए भी एक मॉडल बन सकता है। इससे केवल पानी की बचत ही नहीं होगी, बल्कि किसानों की लागत भी घटेगी और पर्यावरण को राहत मिलेगी।
🔸 पाठकों से सवाल — क्या आप मानते हैं कि DSR ही है पंजाब की खेती का भविष्य?
🌾 क्या सरकार किसानों को सही प्रशिक्षण और संसाधन समय पर दे पाएगी?
🌾 क्या यह योजना केवल कागजों पर सीमित रह जाएगी या वाकई बदलाव लाएगी?
🌾 क्या किसान इस तकनीक को खुले मन से अपनाने के लिए तैयार हैं?
💬 अपनी राय नीचे कमेंट में जरूर दें — आपकी बात ज़रूरी है!
✅ निष्कर्ष
पंजाब सरकार का यह प्रयास न केवल एक नई तकनीक को अपनाने की ओर है, बल्कि यह एक गंभीर जल संकट से निपटने का साहसी कदम भी है। डायरेक्ट सीडिंग ऑफ राइस, अगर सही तरीके से अपनाई जाए, तो यह खेती में क्रांति ला सकती है। इसके लिए किसानों, सरकार और विशेषज्ञों को मिलकर काम करना होगा।