एससीओ शिखर सम्मेलन 2025 की शुरुआत ऐसे पलों से हुई, जिन्होंने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। मंच पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग साथ आए, तो कैमरों में सिर्फ चर्चाओं का नहीं बल्कि हैंडशेक्स, हग्स और स्माइल्स का सिलसिला भी कैद हो गया। यह नजारा सिर्फ व्यक्तिगत रिश्तों का प्रतीक नहीं था, बल्कि वैश्विक राजनीति में नए संकेत देने वाला भी था।
पीएम मोदी और व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात
एससीओ समिट में मोदी और पुतिन की मुलाकात ने यह साबित किया कि भारत और रूस के रिश्तों में गर्मजोशी बरकरार है। दोनों नेताओं ने हाथ मिलाते हुए एक-दूसरे को गले लगाया और लंबी बातचीत की। यह दृश्य संदेश देता है कि भारत-रूस संबंध सिर्फ कूटनीति तक सीमित नहीं हैं, बल्कि गहरी मित्रता का प्रतीक हैं।
इतिहास गवाह है कि भारत और रूस ने एक-दूसरे का हमेशा कठिन समय में साथ दिया है। डिफेंस से लेकर ऊर्जा तक दोनों देशों का सहयोग गहरा रहा है। समिट के दौरान यह संकेत भी मिला कि आने वाले समय में एनर्जी प्रोजेक्ट्स और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर नई समझौते हो सकते हैं।
Always a delight to meet President Putin! pic.twitter.com/XtDSyWEmtw
— Narendra Modi (@narendramodi) September 1, 2025
मोदी और शी जिनपिंग की मुलाकात
हालाँकि भारत और चीन के बीच कई मतभेद मौजूद हैं, लेकिन एससीओ के मंच पर दोनों नेताओं का साथ आना और मुस्कुराकर बातें करना यह दर्शाता है कि संवाद की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।
बॉर्डर मुद्दों और व्यापारिक तनावों के बावजूद जब मोदी और शी ने एक-दूसरे से हाथ मिलाया, तो यह सिर्फ तस्वीर का पल नहीं था, बल्कि एक संकेत था कि एशिया की राजनीति में रिश्ते चाहे कितने भी जटिल हों, सहयोग के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं।
तीनों नेताओं की सामूहिक उपस्थिति
समिट का सबसे चर्चित पल तब आया जब मोदी, पुतिन और शी जिनपिंग एक साथ मंच पर आए। तीनों नेताओं की मुस्कुराहट और एक-दूसरे से बॉनहोमी दिखाने वाले इशारे ने यह संदेश दिया कि एशिया का भविष्य सहयोग और साझेदारी से ही तय होगा।
यह दृश्य न केवल समिट का हाइलाइट रहा, बल्कि वैश्विक राजनीति में भी इसे एक नई त्रिकोणीय समझ का प्रतीक माना जा रहा है।
भारत-रूस-चीन त्रिकोण: नई दिशा?
यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या मोदी, पुतिन और शी की यह बॉनहोमी एक नए त्रिकोणीय समीकरण की शुरुआत है?
- अमेरिका की नीतियाँ और हालिया टैरिफ फैसले
- एशिया में बढ़ता व्यापार
- ऊर्जा, टेक्नोलॉजी और इन्फ्रास्ट्रक्चर में सहयोग
इन सभी कारकों ने भारत, रूस और चीन को एक-दूसरे के करीब आने के लिए प्रेरित किया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले वर्षों में ग्लोबल साउथ की राजनीति में यह त्रिकोण निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
#WATCH | Prime Minister Narendra Modi, Chinese President Xi Jinping, Russian President Vladimir Putin, and other Heads of States/Heads of Governments pose for a group photograph at the Shanghai Cooperation Council (SCO) Summit in Tianjin, China.
(Source: DD News) pic.twitter.com/UftzXy6g3K
— ANI (@ANI) September 1, 2025
पाकिस्तान की स्थिति: दर्शक या अलग-थलग?
समिट के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भी मौजूद थे, लेकिन उनकी स्थिति एक दर्शक जैसी लगी। भारत, रूस और चीन की बातचीत और gestures पर जब सबकी नजर थी, तब पाकिस्तान कहीं-न-कहीं किनारे पर खड़ा नजर आया।
यह संकेत देता है कि SCO में भले ही पाकिस्तान की मौजूदगी है, लेकिन रणनीतिक महत्व के स्तर पर उसका योगदान सीमित है। उदाहरण के लिए, यदि आप इस तरह के रणनीतिक मुद्दों और अंतरराष्ट्रीय दबावों पर अधिक गहराई से पढ़ना चाहें, तो आप हमारा पिछला लेख अमेरिकी सीनेटर की भारत-चीन-रूस को चेतावनी देख सकते हैं। इस लेख में बताया गया है कि कैसे ऊर्जा नीति और अंतरराष्ट्रीय रिश्तों पर पश्चिमी दबाव का असर पड़ रहा है।
वैश्विक प्रतिक्रिया
अमेरिका और यूरोप की नजर से यह तस्वीरें सिर्फ दोस्ताना पल नहीं, बल्कि एक नई रणनीतिक चुनौती हैं।
मध्य एशियाई देश उम्मीद कर रहे हैं कि इस बॉनहोमी से रीजनल सहयोग को मजबूती मिलेगी।
वहीं, वैश्विक मीडिया इसे एशिया में बदलते समीकरणों का प्रतीक बता रहा है।
Sharing my remarks during the SCO Summit in Tianjin. https://t.co/nfrigReW8M
— Narendra Modi (@narendramodi) September 1, 2025
भारत की रणनीतिक उपलब्धि
भारत ने इस समिट में यह साबित किया कि वह सिर्फ एक प्रतिभागी नहीं, बल्कि एक निर्णायक शक्ति है।
- मल्टी-एलाइंमेंट पॉलिसी
- ग्लोबल मंचों पर संतुलन बनाना
- SCO में सक्रिय भूमिका
यह सभी बातें भारत की कूटनीतिक सफलता को दिखाती हैं।
निष्कर्ष
एससीओ समिट 2025 के ये दृश्य सिर्फ तस्वीरें नहीं थे, बल्कि नए संदेश थे।
हैंडशेक्स, हग्स और स्माइल्स ने यह दिखाया कि रिश्तों में चाहे उतार-चढ़ाव हों, लेकिन संवाद और सहयोग हमेशा संभव है।
अब सवाल यह है कि क्या यह बॉनहोमी एशिया की राजनीति का नया अध्याय लिखेगी, या फिर यह सिर्फ एक कूटनीतिक इशारा बनकर रह जाएगी?
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