कांग्रेस सांसद शशि थरूर एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार मामला उनके एक बयान को लेकर है, जिसमें उन्होंने दावा किया कि “LOC (लाइन ऑफ कंट्रोल) को पहले कभी पार नहीं किया गया था” और 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक इस मायने में ऐतिहासिक थी।
इस बयान के सामने आने के बाद कांग्रेस के भीतर हलचल मच गई। पार्टी के कुछ नेताओं ने इसे “पार्टी लाइन से हटकर बयान” बताया, जबकि कुछ ने इसे भाजपा को “कवर फायर” देने जैसा करार दिया। यह बयान ऐसे समय में आया जब विपक्षी दल पहले से ही केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं।
‘Zealots’ वाला जवाब: थरूर ने क्या कहा और क्यों?
इस आलोचना के बीच शशि थरूर ने एक तीखा जवाब सोशल मीडिया पर दिया, जिसमें उन्होंने कहा:
“For those zealots who seem to think I owe them an explanation: I have better things to do than explain myself to the willfully obtuse.”
इस बयान में ‘zealots’ शब्द ने खासा ध्यान खींचा। इसका अर्थ होता है – कट्टर समर्थक या अंधभक्त। थरूर ने यह स्पष्ट किया कि वो अपनी बात को स्पष्ट रूप से कह चुके हैं और बार-बार सफाई देने की कोई आवश्यकता नहीं समझते।
उन्होंने यह भी कहा कि उनका बयान किसी भी तरह से भारतीय सेना की कार्रवाई को कम करके नहीं आंकता, बल्कि यह मान्यता देता है कि 2016 की स्ट्राइक एक निर्णायक और ऐतिहासिक कदम था।
“यह टिप्पणी भारतीय सेना की वीरता के खिलाफ नहीं थी, बल्कि यह दर्शाने के लिए थी कि यह ऑपरेशन एक नया दृष्टिकोण था।”
When @ShashiTharoor praises the Bharatiya Army, Congress attacks him. That tells you everything — this party can’t tolerate love for the nation unless it’s filtered through petty politics.
National pride isn’t optional, it’s essential. pic.twitter.com/x3eIuXVnjm
— C T Ravi 🇮🇳 ಸಿ ಟಿ ರವಿ (@CTRavi_BJP) May 29, 2025
कांग्रेस की नाराज़गी: अंदरूनी कलह या विचारभिन्नता?
कांग्रेस पार्टी ने आधिकारिक रूप से इस पर कोई कठोर बयान नहीं दिया, लेकिन पार्टी के सूत्रों ने संकेत दिए कि थरूर के बयान से कई वरिष्ठ नेता असहमत हैं। पार्टी के भीतर से यह आवाज़ भी उठी कि इस तरह के बयान बीजेपी को राजनीतिक फायदा दिला सकते हैं।
एक सूत्र ने कहा:
“इस समय जब पूरा विपक्ष एकजुटता की कोशिश में है, ऐसे बयान पार्टी की एकता को कमजोर करते हैं।”
कुछ नेताओं का यह भी कहना था कि थरूर जैसे वरिष्ठ नेता से अधिक जिम्मेदारी की अपेक्षा की जाती है। खासकर तब, जब वो केरल जैसे संवेदनशील राज्य से आते हैं, जहां भाजपा अपना आधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब शशि थरूर पार्टी लाइन से अलग राय रखते नजर आए हैं। ऐसे मामलों में कांग्रेस अक्सर ‘अंतिम चेतावनी’ देकर मामले को शांत करती रही है।
भाजपा और किरण रिजिजू का समर्थन: सियासी मौका?
इस पूरे विवाद पर केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने थरूर के समर्थन में ट्वीट किया। उन्होंने लिखा कि:
“कांग्रेस को थरूर जैसे नेताओं की कद्र करनी चाहिए, क्योंकि वे राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर सच्चाई से बोलते हैं।”
भाजपा के अन्य नेताओं ने भी इस बयान को कांग्रेस की “आंतरिक गुटबाज़ी” का प्रमाण बताया और थरूर के पक्ष में बातें कही। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा इस मौके को कांग्रेस पर हमला करने और जनता में भ्रम फैलाने के लिए उपयोग कर रही है।
यह साफ है कि BJP थरूर के बयान को लेकर कांग्रेस को ही घेर रही है, बजाय इसके कि वो थरूर पर सवाल उठाए। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने अपने हालिया बयान में ‘zealots’ शब्द का इस्तेमाल कर आलोचकों को करारा जवाब दिया। इस बयान को लेकर कांग्रेस में मतभेद उभर आए हैं। वहीं, भाजपा ने भी इस मुद्दे को राजनीतिक लाभ के रूप में इस्तेमाल किया। हाल ही में एक और मामला राजस्थान से सामने आया है, जहां एक सरकारी कर्मचारी को ISI के लिए जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया। ऐसे में सवाल उठता है कि जब राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे इतने संवेदनशील हों, तो क्या राजनीतिक बयानबाज़ी को लेकर अधिक सावधानी नहीं बरती जानी चाहिए?
थरूर का व्यक्तित्व: खुले विचार और विवादों से रिश्ता
शशि थरूर हमेशा से एक खुले विचारों वाले नेता रहे हैं। उनकी छवि एक बौद्धिक, अंग्रेजीदां, उदारवादी सांसद की रही है। लेकिन कई बार उनके विचार और टिप्पणियां पार्टी लाइन से मेल नहीं खातीं।
इससे पहले भी थरूर “हिंदू पाकिस्तान” वाले बयान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ, और सावरकर पर टिप्पणियों को लेकर पार्टी के भीतर आलोचना झेल चुके हैं।
फिर भी, पार्टी ने कभी उन्हें सख्ती से दंडित नहीं किया, क्योंकि वो एक प्रभावशाली और जनप्रिय नेता हैं — खासकर युवा और शिक्षित वर्ग के बीच।
“मेरे विचार हो सकता है सबको न भाएं, लेकिन ये मेरी विचारशीलता का हिस्सा हैं,” थरूर पहले भी कह चुके हैं।
उनका यह रुख उन्हें अन्य नेताओं से अलग बनाता है — लेकिन साथ ही यह पार्टी अनुशासन पर सवाल भी खड़े करता है।
Indian delegation led by @ShashiTharoor
during the meeting with the Foreign Minister of Panama, while highlighting Pakistan’s state support for terrorism , presents the viral photograph showing Pakistani Army officers attending the funeral of terrorists. pic.twitter.com/QJt38obs3G— Ayushi Agarwal (@ayu_agarwal94) May 28, 2025
मतभेद या पार्टी के भीतर संवाद?
इस पूरे घटनाक्रम से यह सवाल ज़रूर उठता है कि क्या थरूर जैसे नेताओं की स्वतंत्र राय को पार्टी में जगह मिलनी चाहिए या नहीं?
कांग्रेस पार्टी वैचारिक विविधता का दावा करती है, लेकिन जब कोई वरिष्ठ नेता सार्वजनिक रूप से पार्टी लाइन से हटकर बयान देता है, तो पार्टी की प्रतिक्रिया असमंजस भरी होती है।
क्या यह सिर्फ बयानबाज़ी है, या पार्टी के भीतर गहराता विचारात्मक मतभेद?
“पार्टी अनुशासन बनाम वैचारिक स्वतंत्रता” – यही इस विवाद की मूल भावना है।
क्या कांग्रेस को थरूर जैसे नेताओं की आवाज़ को सुनना चाहिए?
🔸 क्या कांग्रेस पार्टी में वैचारिक बहस की जगह बची है?
🔸 या फिर हर विचार पार्टी लाइन से मेल खाना ज़रूरी बन गया है?
👇 आपकी क्या राय है? क्या थरूर की टिप्पणी अनुचित थी या वैचारिक विविधता का हिस्सा? कमेंट में बताएं।