देश की न्यायिक प्रणाली का मकसद सिर्फ सजा देना नहीं, बल्कि न्याय के साथ मानवता को बरकरार रखना भी है। हाल ही में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक पैरोल याचिका पर अत्यधिक देरी को लेकर प्रशासन को सख्त फटकार लगाई। कोर्ट ने दो टूक कहा कि कैदी भी दूसरे दर्जे के नागरिक नहीं हैं, और उनके अधिकारों की अनदेखी गंभीर मामला है।
हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी: “कैदी भी दूसरे दर्जे के नागरिक नहीं हैं”
कोर्ट ने इस पूरे घटनाक्रम पर नाराजगी जताते हुए स्पष्ट किया कि कैदी भी संविधान के अंतर्गत समान नागरिक हैं। उनके साथ भेदभाव या उपेक्षा न्याय की आत्मा को चोट पहुंचाती है। अदालत ने कहा कि पैरोल कोई कृपा नहीं बल्कि एक संवैधानिक अधिकार है, जिसे प्रशासनिक लापरवाही से रोका नहीं जा सकता।
कोर्ट की यह टिप्पणी न सिर्फ केस के लिए, बल्कि पूरे जेल तंत्र के लिए चेतावनी है।
केस का मूल: किस याचिका पर सुनवाई हुई
यह मामला मोहाली के एक कैदी से जुड़ा है, जिसने अपनी पैरोल के लिए याचिका दाखिल की थी। याचिका के बाद प्रशासनिक प्रक्रिया में जिस तरह की ढिलाई बरती गई, उसने अदालत को नाराज कर दिया।
- जेल अधीक्षक की रिपोर्ट समय पर नहीं आई।
- पुलिस जांच में अत्यधिक देरी हुई।
- उपायुक्त स्तर पर फाइल अटकी रही, जिससे पूरी प्रक्रिया प्रभावित हुई।
न्यायालय ने यह देखा कि हर स्तर पर असंवेदनशीलता दिखाई गई, जो गंभीर चिंता का विषय है।
विभागीय लापरवाही पर कोर्ट का विश्लेषण
कोर्ट ने पाया कि पैरोल याचिका को लेकर संबंधित विभागों ने अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से नहीं लिया। समय पर कार्रवाई ना होने से कैदी के संवैधानिक अधिकार प्रभावित हुए। कोर्ट ने अफसरों की निष्क्रियता पर सख्त टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि यदि यही रवैया आगे भी जारी रहा, तो उन्हें व्यक्तिगत जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
यह मामला बताता है कि कैसे एक सामान्य सी याचिका प्रशासन की लापरवाही का शिकार बन जाती है।
कोर्ट का संदेश: अधिकार सबके लिए हैं
अदालत ने एक बार फिर दोहराया कि कानून सभी के लिए समान है, चाहे वह आम नागरिक हो या जेल में बंद व्यक्ति। कैदी के साथ पक्षपात या देरी को कोर्ट ने मानवाधिकार उल्लंघन की श्रेणी में रखा। कोर्ट ने इस मामले को उदाहरण बनाते हुए अधिकारियों को चेताया कि कोई भी नागरिक “दूसरे दर्जे” का नहीं हो सकता।
🏛️ Prisoners Are Not Second-Class Citizens
🚨 Punjab & Haryana HC slams delays in parole, affirming prisoners’ dignity & constitutional rights. Full story ➡️
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सुधार की ओर इशारा: अब आगे क्या?
इस फैसले के बाद अब उम्मीद की जा रही है कि जेल और प्रशासनिक विभागों में कुछ ठोस बदलाव आएंगे। कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य में इस तरह की लापरवाही दोहराई गई, तो संबंधित अधिकारी इसके लिए जिम्मेदार माने जाएंगे।
इस आदेश का असर केवल एक मामले तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे सिस्टम को जवाबदेह बनाएगा।
न्याय व्यवस्था की मानवतावादी पहल
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का यह निर्णय बताता है कि न्याय केवल अदालतों की बात नहीं, बल्कि इंसानियत की सोच है। अदालत ने यह भी दिखा दिया कि एक नागरिक का सम्मान उसकी स्वतंत्रता से नहीं, बल्कि उसके अधिकारों से तय होता है, चाहे वह जेल में क्यों न हो।
जहां देश अंतरिक्ष में विशेष भोज आयोजित करने जैसे ऐतिहासिक प्रयोगों की ओर बढ़ रहा है, वहीं ऐसे अदालती फैसले यह यकीन दिलाते हैं कि जमीन पर इंसानियत अब भी ज़िंदा है।




















