दिल्ली की सड़कों पर गरजे सवाल, गूंजा नया नारा
बीते दिनों दिल्ली की कुछ प्रमुख सड़कों पर आम आदमी पार्टी (AAP) ने जो विरोध प्रदर्शन किया, उसने राजधानी की सियासत में गर्मी ला दी है।
उनके द्वारा लगाए गए पोस्टरों पर साफ-साफ लिखा था – “PoK का छोड़ा मौका, मोदी का देश को धोखा”।
इस नारे के ज़रिए पार्टी ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला और यह जताया कि PoK को लेकर सरकार की नीयत और नीति में मेल नहीं है।
हालांकि यह कोई नई बात नहीं है कि राजनीतिक दल एक-दूसरे की नीतियों पर सवाल उठाते हैं, लेकिन इस बार विरोध का तरीका थोड़ा ज्यादा तीखा और निशाने पर केंद्रित था।
📍 करोल बाग, दिल्ली
PoK को वापस भारत में शामिल करने के शानदार मौके को छोड़ने और मोदी द्वारा देश को धोखा देने के विरोध में AAP का विरोध प्रदर्शन🔥 pic.twitter.com/jxFB1H5N1b
— AAP (@AamAadmiParty) May 14, 2025
AAP का आरोप – “सरकार ने PoK के मुद्दे पर सिर्फ बातें कीं”
AAP नेताओं का कहना है कि जब सरकार चुनाव के समय आती है तो PoK को लेकर बहुत बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन असल में जमीन पर कुछ भी होता दिखाई नहीं देता।
दिल्ली के विभिन्न इलाकों में पार्टी कार्यकर्ताओं ने बैनर लगाए और जनता को यह बताने की कोशिश की कि सरकार ने PoK को लेकर जो वादे किए थे, वो अधूरे रह गए हैं।
वरिष्ठ नेता दुर्गेश पाठक ने मीडिया से कहा –
“PoK भारत का हिस्सा है, इसमें दो राय नहीं। लेकिन जब भी कुछ करने का वक्त आता है, सरकार चुप्पी साध लेती है।”
उनका यह भी कहना था कि जनता को अब सिर्फ भाषण नहीं, काम चाहिए।
दिलचस्प बात यह है कि ये आरोप ऐसे समय में आए हैं जब हाल ही में LoC पर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने पाकिस्तानी ड्रोन और मिसाइल हमले विफल किए और सेना ने कड़ा जवाब भी दिया।
राजनीति के पीछे रणनीति क्या है?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह विरोध प्रदर्शन सिर्फ मुद्दा उठाने तक सीमित नहीं है। AAP, जो अब खुद को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की कोशिश में है, ऐसे मुद्दों को सामने लाकर एक नई छवि बनाना चाहती है।
दिल्ली के विभिन्न चौराहों, स्कूलों के बाहर, और भीड़-भाड़ वाले इलाकों में लगे पोस्टर इस बात का संकेत हैं कि पार्टी इस बार रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है।
एक छात्र नेता, जो इस प्रदर्शन का हिस्सा थे, ने कहा –
“जब सरकार PoK पर कुछ नहीं करती तो हम सवाल तो पूछेंगे ही। यह विरोध जनता की भावना को दिखाने का जरिया है।”
हाल के दिनों में राजस्थान और पंजाब की सीमाएं सील की गईं और सैन्य सतर्कता भी बढ़ाई गई, जिससे यह स्पष्ट है कि सुरक्षा एजेंसियां सक्रिय हैं। इसके बावजूद विपक्ष यह कहने से पीछे नहीं हट रहा कि असली कार्रवाई अब तक नहीं हुई।
📍 लक्ष्मी नगर, दिल्ली
PoK का छोड़ा मौक़ा, मोदी का देश को धोखा‼️ pic.twitter.com/9l1lJK83zU
— AAP (@AamAadmiParty) May 14, 2025
भाजपा का जवाब – “AAP सिर्फ राजनीति कर रही है”
AAP के आरोपों का भाजपा ने भी तुरंत जवाब दिया। पार्टी प्रवक्ता ने साफ कहा –
“जब-जब AAP को जनता से जुड़ने में दिक्कत होती है, तब-तब वो इस तरह के भावनात्मक नारे लेकर आती है। यह सिर्फ एक सस्ती राजनीति है।”
भाजपा के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में देश की सुरक्षा नीति हमेशा मज़बूत रही है और सेना को हर स्तर पर समर्थन दिया गया है।
उनका तर्क था कि AAP जैसे दल सेना के परिश्रम और बलिदान का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं।
जनता क्या सोच रही है?
सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर लोगों की राय बंटी हुई है।
कुछ लोगों को लगता है कि सरकार को अब वाकई कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए, वहीं कुछ का कहना है कि इस तरह के नारे देश की एकता को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
एक फेसबुक यूज़र ने लिखा –
“अगर विपक्ष सवाल नहीं पूछेगा तो कौन पूछेगा? सरकार को जवाबदेह बनाना विपक्ष का काम है।”
वहीं, ट्विटर पर एक अन्य यूज़र ने लिखा –
“यह नारा देश की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाता है। PoK पर सेना के प्रयासों का मज़ाक उड़ाया गया है।”
सोशल मीडिया पर चल रही इन बहसों के बीच, हाल ही में पंजाब के अमृतसर के कुछ गांवों में मिसाइल के टुकड़े मिलने की खबर ने लोगों की चिंता और बढ़ा दी है, जिससे यह मुद्दा और भी संवेदनशील बन गया है।
विश्लेषण – क्या ये सिर्फ विरोध था या सोची-समझी रणनीति?
राजनीति में विरोध एक सामान्य प्रक्रिया है, लेकिन यह विरोध उस दायरे से थोड़ा बाहर दिख रहा है।
नारे का चुनाव, समय, स्थान और संदेश – सब कुछ यह दर्शाता है कि AAP इस बार सिर्फ स्थानीय मुद्दों पर नहीं बल्कि राष्ट्रीय विमर्श में प्रवेश करना चाहती है।
राजनीतिक विश्लेषक अनीश अग्रवाल कहते हैं –
“AAP ने हमेशा खुद को अलग दिखाने की कोशिश की है। लेकिन अब यह पार्टी सीधे सत्ता पक्ष को उसकी ही भाषा में जवाब दे रही है। यह नया रुख है।”
हालांकि विरोध और नारों के पीछे असली मंशा क्या है, ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि इस नारे ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
निष्कर्ष
राजनीति में नारों की भूमिका हमेशा से रही है। कभी वे बदलाव का प्रतीक बने हैं, तो कभी भ्रम का कारण।
AAP द्वारा उठाया गया यह नारा एक नई सियासी चाल है या जनता की भावनाओं का असली प्रतिबिंब – यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी।
लेकिन इतना जरूर है कि जनता को अब और भी जागरूक होकर इन मुद्दों को परखने की ज़रूरत है।
सरकारें आएंगी-जाएंगी, लेकिन सवाल पूछने की संस्कृति लोकतंत्र का असली चेहरा है।
💬 आप क्या सोचते हैं?
क्या आपको लगता है कि इस तरह के नारों से असली मुद्दे सामने आते हैं या राजनीति भटक जाती है? नीचे कमेंट करके अपनी राय ज़रूर दें।