हाल ही में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान ने एक बड़े बयान से राजनीतिक और किसान समुदाय में हलचल मचा दी है। एक सरकारी कार्यक्रम के दौरान किसानों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि “पंडित नेहरू ने पाकिस्तान को सिर्फ पानी ही नहीं, बल्कि पैसा भी दिया था।” यह बयान उस समय आया जब केंद्र सरकार “ऑपरेशन सिंदूर” के माध्यम से किसानों तक पहुँचने और जल-संसाधन से जुड़ी समस्याओं को सुलझाने की दिशा में कदम उठा रही है।
यह बयान इंडस वॉटर ट्रीटी (IWT) को लेकर केंद्र सरकार की मौजूदा रणनीति और राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बनता दिख रहा है। भारत में जल संकट, खासकर कृषि के क्षेत्र में, लंबे समय से एक ज्वलंत मुद्दा रहा है, और ऐसे में यह बयान कई सवालों को जन्म दे रहा है – क्या भारत को अब इस ऐतिहासिक संधि पर पुनर्विचार करना चाहिए? और क्या यह बयान किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में कोई ठोस संकेत देता है?
क्या कहा शिवराज सिंह चौहान ने?
शिवराज सिंह चौहान ने एक केंद्र सरकार के आउटरीच कार्यक्रम में किसानों को संबोधित करते हुए जो बातें कहीं, वे सीधे देश की ऐतिहासिक नीतियों पर सवाल उठाती हैं। उन्होंने कहा:
“नेहरू जी ने सिर्फ पाकिस्तान को 80% पानी ही नहीं, बल्कि भारत के पैसों से उसकी नहरें और जलसंरचनाएं भी बनवाईं। यह आज़ाद भारत के किसानों के साथ अन्याय था।”
इस बयान के माध्यम से शिवराज ने न केवल IWT को पुनः चर्चा में ला दिया, बल्कि किसानों की समस्याओं की जड़ को भी ऐतिहासिक नीतियों से जोड़ने का प्रयास किया।
उन्होंने आगे कहा कि भारत के किसान आज भी जल संकट से जूझ रहे हैं, जबकि भारत के जल संसाधनों का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान को सौंप दिया गया, जो आज भी हमारे खिलाफ काम कर रहा है। यह बयान भावनात्मक रूप से किसानों से जुड़ने का प्रयास था, लेकिन इसमें एक बड़ा राजनीतिक संकेत भी छिपा है।
सिंधु जल संधि पर तब हस्ताक्षर किए गए थे जब पंडित नेहरू प्रधानमंत्री थे, और किसान इस बात से निराश थे कि 80% पानी पाकिस्तान को दे दिया गया।
नदियाँ भारत में उत्पन्न हुईं, लेकिन हमने अपना पानी पाकिस्तान को दे दिया।
शिवराज सिंह चौहान जी चाचा नेहरू के काले चिट्ठे खोलते हुए pic.twitter.com/9P5eP9VD6B
— Ocean Jain (@ocjain4) May 19, 2025
इंडस वॉटर ट्रीटी (IWT) का संक्षिप्त परिचय
इंडस वॉटर ट्रीटी, वर्ष 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के बीच हुआ एक जल समझौता था। इस समझौते के तहत भारत ने सिंधु नदी प्रणाली के तीन मुख्य पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब – का अधिकार पाकिस्तान को सौंप दिया, जबकि पूर्वी नदियों – रावी, ब्यास और सतलज – पर भारत को अधिकार मिला।
इस समझौते की खास बात यह रही कि भारत ने न सिर्फ पानी छोड़ा, बल्कि पाकिस्तान की नहरें और हाइड्रोलॉजिकल संरचनाओं के निर्माण में आर्थिक सहायता भी दी। इसी संदर्भ में शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि “पैसा भी दिया गया था।”
हालाँकि, यह समझौता अब तक भारत और पाकिस्तान के बीच शांतिपूर्ण जल-बंटवारे का आधार बना रहा है, लेकिन बदलते समय और बढ़ती जनसंख्या के चलते इसकी समीक्षा की मांग समय-समय पर उठती रही है।
क्यों उठा फिर से IWT का मुद्दा?
शिवराज सिंह चौहान का यह बयान ऐसे समय आया है जब देशभर में किसान पानी की कमी, सिंचाई समस्याएं और बदलते मौसम से परेशान हैं। ऐसे में IWT जैसे पुराने समझौतों की आलोचना एक राजनीतिक लेकिन भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई रणनीति बन सकती है।
भारत की नदियों पर पाकिस्तान का अधिक नियंत्रण और भारत के किसानों के लिए जल संकट एक विरोधाभास की तरह देखा जा रहा है। शिवराज सिंह चौहान का बयान यही दर्शाता है कि जब भारत खुद जल संकट झेल रहा है, तो ऐसी संधियों की समीक्षा जरूरी हो जाती है।
इसके अलावा केंद्र सरकार की कई नीतियाँ, जैसे जल शक्ति अभियान, नदी जोड़ो परियोजना, और अब ऑपरेशन सिंदूर, इस दिशा में हो रहे प्रयासों का संकेत हैं। शिवराज का बयान इन योजनाओं को जनता तक पहुँचाने का एक माध्यम भी माना जा सकता है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ और किसानों की बात
“ऑपरेशन सिंदूर”, भारत सरकार की एक नई पहल है जो खासतौर पर सीमावर्ती और जल संकट से प्रभावित क्षेत्रों के किसानों को ध्यान में रखते हुए शुरू की गई है। इस योजना का उद्देश्य:
- जल संसाधनों का बेहतर उपयोग करना,
- पुरानी सिंचाई योजनाओं को पुनर्जीवित करना,
- और किसानों को सीधे सरकार से जोड़ना है।
शिवराज सिंह चौहान ने इस कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि “अब समय आ गया है कि भारत का पानी भारत के खेतों में लगे।” यह बयान न सिर्फ IWT पर पुनर्विचार की मांग करता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि सरकार अब किसानों के हित में बड़ी रणनीति तैयार कर रही है।
पंडित नेहरू पर टिप्पणी: राजनीतिक पृष्ठभूमि
भारतीय राजनीति में यह नया नहीं है कि वर्तमान नेतृत्व पूर्ववर्ती नीतियों की आलोचना करता है। लेकिन जब ऐतिहासिक नेताओं की भूमिका पर सवाल उठते हैं, तो समाज में चर्चा और विमर्श का माहौल बनता है।
शिवराज सिंह चौहान का यह बयान उसी क्रम का हिस्सा है जहाँ वे नेहरू की नीतियों को “भारत के किसानों के लिए नुकसानदायक” बताते हैं। यह बयान राजनीति से ज्यादा कृषि नीति के दृष्टिकोण से भी देखा जा रहा है।
किसानों की प्रतिक्रिया और ज़मीनी हालात
कई किसानों ने शिवराज के बयान पर सहमति जताते हुए कहा कि यदि सरकार वास्तव में जल संकट को गंभीरता से ले रही है, तो उन्हें सीधे सिंचाई व्यवस्था में बदलाव देखने को मिलना चाहिए।
कुछ किसानों ने यह भी कहा कि पुराने समझौतों पर पुनर्विचार से पहले जरूरी है कि स्थानीय स्तर पर पानी का प्रबंधन और जल संरक्षण पर काम हो।
हालाँकि, शिवराज का यह बयान कई किसानों को भावनात्मक रूप से छू गया, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ हर साल सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है।
क्या इस बयान से कोई नया रास्ता खुलेगा?
शिवराज सिंह चौहान द्वारा दिया गया यह बयान केवल एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं बल्कि एक व्यापक किसान संवाद की शुरुआत माना जा सकता है।
अगर सरकार “ऑपरेशन सिंदूर” और अन्य सिंचाई योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर लागू करती है, तो इसका सीधा लाभ किसानों को मिलेगा।
जहाँ तक IWT की बात है, वह एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है, जिस पर पुनर्विचार करना आसान नहीं। लेकिन देश में चल रही पुनर्निर्माण की नीतियाँ और किसानों के बीच जागरूकता ऐसे विषयों को नई दिशा दे सकती हैं।
कुल मिलाकर, यह बयान किसानों की समस्याओं पर केंद्र सरकार का फोकस दर्शाता है और आने वाले समय में इस दिशा में गंभीर बदलाव की संभावना भी जताता है।
📝 लेख पढ़कर आपकी क्या राय है? क्या वाकई भारत को IWT जैसे समझौतों पर दोबारा विचार करना चाहिए? नीचे कमेंट करके बताएं।