हरियाणा पुलिस ने अशोका यूनिवर्सिटी के एक एसोसिएट प्रोफेसर को 18 मई, 2025 को आधी रात के आसपास गिरफ्तार किया। उन पर आरोप है कि उन्होंने एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए “राष्ट्र की एकता और अखंडता को खतरे में डाला”। यह पोस्ट उन्होंने हाल ही में चलाए गए सैन्य अभियान “ऑपरेशन सिंदूर” के संदर्भ में लिखा था।
पुलिस ने बताया कि प्रोफेसर पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए (समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाना) और धारा 505(2) (सार्वजनिक उपद्रव को बढ़ावा देना) के तहत केस दर्ज किया गया है। उन्हें उनके निवास स्थान से गिरफ्तार किया गया और तुरंत कोर्ट में पेश किया गया।
प्रोफेसर का नाम फिलहाल सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन वे लंबे समय से राजनीति विज्ञान विभाग में कार्यरत हैं और छात्रों में खासे लोकप्रिय हैं।
ऑपरेशन सिंदूर
ऑपरेशन सिंदूर भारतीय सेना द्वारा हाल ही में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों पर चलाया गया एक विशेष अभियान था। इसका उद्देश्य घुसपैठ और आतंकी गतिविधियों को रोकना था। यह अभियान एक बड़ी सफलता के रूप में देखा गया, जिसमें कई आतंकवादियों को मारा गया और भारी मात्रा में हथियार जब्त किए गए।
सरकार और सेना ने इसे “राष्ट्र की सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम” बताया। कई मीडिया संस्थानों ने भी इस ऑपरेशन को साहसी और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण करार दिया।
प्रोफेसर की पोस्ट: सवाल या राष्ट्र-विरोध?
प्रोफेसर की जो पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हुई, उसमें उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर की आवश्यकता और प्रभाव को लेकर सवाल उठाए थे। उन्होंने यह भी कहा कि “ऐसे अभियान कभी-कभी लोगों के अधिकारों को सीमित कर सकते हैं”, और यह बात सार्वजनिक चर्चा का विषय बननी चाहिए।
पुलिस के अनुसार, पोस्ट में उपयोग किए गए शब्दों को “भड़काऊ” और “राष्ट्र विरोधी” माना गया। जबकि कई शिक्षकों और छात्रों का मानना है कि यह एक शिक्षाविद का सामान्य आलोचनात्मक विश्लेषण था।
अशोका यूनिवर्सिटी फैकल्टी का बयान: ‘चयनित उत्पीड़न’
प्रोफेसर की गिरफ्तारी के बाद यूनिवर्सिटी के करीब 85 फैकल्टी सदस्यों ने एक सामूहिक बयान जारी किया, जिसमें इसे “सोची-समझी प्रताड़ना” बताया गया। उन्होंने कहा कि:
“इस घटना ने शैक्षणिक स्वतंत्रता पर गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। एक प्रोफेसर का काम सवाल उठाना और विश्लेषण करना है, न कि चुप रहना।”
उन्होंने यह भी मांग की कि प्रोफेसर को तत्काल रिहा किया जाए और उनके खिलाफ दर्ज सभी मामले हटाए जाएं।
BREAKING: Thinking now officially a threat to national security.
Ashoka professor arrested for critiquing jingoism because nothing says “strong nation” like being terrified of a tweet.
In total solidarity with Ali Khan Mahmudabad ! pic.twitter.com/I09Te6ErkN— Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) May 18, 2025
सोशल मीडिया से लेकर शिक्षाविदों तक, किसने क्या कहा?
घटना के बाद सोशल मीडिया पर इस गिरफ्तारी को लेकर जबरदस्त बहस छिड़ गई। ट्विटर पर #FreeAshokaProfessor ट्रेंड करने लगा। कई शिक्षाविदों, लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला” कहा।
इसी तरह की बहस हाल ही में एक अन्य मामले में भी देखी गई, जब एक पाकिस्तानी मूल के यात्री डॉक्टर पर ज्योति मल्होत्रा से संबंध और जासूसी के आरोप लगे। हालांकि बाद में उन्होंने इस मुद्दे पर चुप्पी तोड़ते हुए साफ-साफ सफाई दी और अपने पक्ष को खुलकर सामने रखा। पूरा मामला यहां पढ़ें। यह दिखाता है कि आज के डिजिटल दौर में किसी की भी बात का गलत मतलब निकाला जा सकता है, और सार्वजनिक बयानों का असर बेहद गहरा हो सकता है।
अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम राष्ट्र की एकता: कहां खींचें लकीर?
यह मामला एक बार फिर इस सवाल को खड़ा करता है कि “क्या एक नागरिक को सरकारी नीतियों पर सवाल उठाने का हक है?” और “क्या यह हक राष्ट्र की सुरक्षा से ऊपर हो सकता है?”
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की आज़ादी देता है, लेकिन इसी अनुच्छेद की धारा 19(2) में कहा गया है कि यह स्वतंत्रता राष्ट्र की एकता, अखंडता, और सुरक्षा के नाम पर सीमित की जा सकती है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि “स्वतंत्रता का मतलब अराजकता नहीं होता”, और हर अधिकार की एक सीमा होती है।
इस घटना से उठते बड़े सवाल
- क्या शिक्षकों को सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर अपनी राय नहीं देनी चाहिए?
- क्या राज्य इस प्रकार की कार्रवाई से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबा रहा है?
- अगर शिक्षाविद ही डर जाएंगे, तो युवा वर्ग को तथ्यों और तर्कों के आधार पर सोचने की प्रेरणा कौन देगा?
इन सभी सवालों के जवाब सिर्फ एक कानूनी दायरे में नहीं, बल्कि सामाजिक समझ और लोकतांत्रिक मूल्यों में भी खोजे जाने चाहिए।
निष्कर्ष
अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर की गिरफ्तारी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि शिक्षा जगत की स्वतंत्रता और जिम्मेदारी दोनों की परीक्षा है। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आज के समय में सोचना और बोलना भी साहस का काम बन चुका है।
अब देखना यह होगा कि अदालत इस मामले में क्या रुख अपनाती है, और शिक्षा और सत्ता के बीच की ये खींचतान किस दिशा में जाती है।
💬 आपका क्या विचार है? क्या प्रोफेसर की गिरफ्तारी सही है या यह अभिव्यक्ति की आज़ादी का उल्लंघन? नीचे कमेंट कर अपनी राय ज़रूर दें।