भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में एक बार फिर तल्ख़ी देखी जा रही है, और वजह वही पुरानी – सिंधु जल संधि। लेकिन इस बार मामला सिर्फ पानी तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे जुड़ी रणनीति, राजनीति और कूटनीति सबकुछ इसमें शामिल हो चुका है।
भारत द्वारा संधि की समीक्षा के संकेत मिलते ही पाकिस्तान ने एक आधिकारिक पत्र के ज़रिए भारत से अनुरोध किया है कि वह इस फैसले पर फिर से विचार करे। पाकिस्तान का दावा है कि अगर भारत ने एकतरफा कदम उठाया तो इससे क्षेत्रीय संतुलन बिगड़ सकता है।
क्या है सिंधु जल संधि और क्यों है अहम?
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए इस समझौते को विश्व बैंक की मध्यस्थता में लागू किया गया था। इसके अनुसार:
- भारत को तीन पूर्वी नदियों — रावी, व्यास और सतलुज — का नियंत्रण मिला।
- पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों — सिंधु, झेलम और चिनाब — का उपयोग अधिकार मिला।
इस संधि को आज भी एक आदर्श अंतरराष्ट्रीय जल समझौते के रूप में देखा जाता है, जिसने दोनों देशों को तीन युद्धों के बावजूद जल विवाद में उलझने से बचाए रखा।
लेकिन आज जब दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध तनावपूर्ण हैं, यह सवाल उठ रहा है कि क्या यह संधि अब भी प्रासंगिक है?
Reconsider the Indus Water Treaty, Pakistan wrote a letter requesting to reconsider the Indus Water Treaty.
Independence pic.twitter.com/yCLJfG0ghv
— My Nation (@firoz1501) May 14, 2025
पाकिस्तान की चिट्ठी में क्या कहा गया है?
पाकिस्तान की ओर से भेजे गए पत्र में भारत से यह अपील की गई है कि वह संधि की मूल भावना और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का सम्मान करते हुए कोई भी निर्णय ले। पत्र में यह भी कहा गया है कि:
- भारत की तरफ से की गई कोई भी एकतरफा कार्रवाई, अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन मानी जाएगी।
- इससे पाकिस्तान के अंदर जल संकट गहरा सकता है, जिसका सीधा असर वहां की खेती और जीवन पर होगा।
- पाकिस्तान ने चेताया है कि अगर भारत अपनी स्थिति में बदलाव नहीं करता, तो वह इस मुद्दे को वैश्विक मंच पर ले जाने के लिए स्वतंत्र होगा।
यह चिट्ठी ऐसे समय में आई है जब दोनों देशों के बीच राजनयिक स्तर पर भी टकराव देखने को मिल रहा है। हाल ही में पाकिस्तान ने एक भारतीय राजनयिक को अवांछित घोषित कर 24 घंटे में देश छोड़ने का निर्देश दिया था। इस घटना की पूरी जानकारी यहां पढ़ें।
‘Old habits die hard – Pakistan begs & writes to Jal Shakti Ministry’ for appeal to ‘Release Indus Water’.
We are counting @MIshaqDar50 yesterday was giving us warnings of #War ! 😎
Do you need water for your illegitimate owner – “China who wants water for its crop”?… https://t.co/9hI4DajPW9 pic.twitter.com/QT61d8v97v
— REACH 🇮🇳 (UK) Chapter (@reachind_uk) May 14, 2025
भारत क्या सोच रहा है?
हालांकि भारत सरकार ने इस मुद्दे पर कोई सीधा सार्वजनिक बयान नहीं दिया है, लेकिन संकेत साफ हैं — भारत अब अपने जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना चाहता है। नीति निर्माताओं का मानना है कि:
- पाकिस्तान अक्सर भारत की जल परियोजनाओं पर आपत्ति जताता है, भले ही वे संधि के दायरे में हों।
- भारत को अब जल कूटनीति की रणनीति बदलनी चाहिए, ताकि वह अपने हितों की रक्षा कर सके।
- यह संधि उस समय की है जब हालात अलग थे; आज के बदले माहौल में इसकी समीक्षा ज़रूरी लगती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने एक भाषण में देश के वीर सैनिकों की बहादुरी को हर माँ, बहन और बेटी को समर्पित करते हुए राष्ट्र को संबोधित किया था। यह भाषण भारत की नई राष्ट्रीय भावना को भी दर्शाता है। पूरा भाषण यहां पढ़ें।
पाकिस्तान की चिंता या चाल? विश्लेषण ज़रूरी है
जहां एक ओर पाकिस्तान इस संधि को लेकर चिंता जाहिर कर रहा है, वहीं यह भी समझना ज़रूरी है कि क्या उसकी यह अपील वास्तविक चिंता है या फिर कूटनीतिक दबाव बनाने की कोशिश?
विशेषज्ञों का कहना है कि:
- पाकिस्तान की कृषि व्यवस्था इन नदियों पर निर्भर है, लेकिन उसे अब तक अपने हिस्से के जल का बेहतर प्रबंधन करना नहीं आया।
- अक्सर भारत के हर कदम को अंतरराष्ट्रीय विवाद बना देना, पाकिस्तान की एक परिपाटी बन चुकी है।
- ऐसे में यह चिट्ठी कूटनीतिक हथकंडा भी हो सकता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या असर हो सकता है?
सिंधु जल संधि को लेकर विश्व बैंक अब तक शांत रहा है, लेकिन यदि दोनों देशों के बीच टकराव बढ़ता है तो उसकी भूमिका फिर से सामने आ सकती है।
- भारत अगर इस संधि में कोई बड़ा बदलाव करता है, तो यह अन्य देशों के जल समझौतों पर भी असर डाल सकता है।
- पर्यावरणविद और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ भारत को संतुलन बनाए रखने की सलाह दे रहे हैं।
हालांकि, भारत यदि अपने कानूनी अधिकारों और तकनीकी सीमाओं के भीतर रहकर कदम उठाता है, तो उसे वैश्विक मंच पर भी समर्थन मिल सकता है।
विशेषज्ञों की राय
“भारत को संधि की समीक्षा करनी चाहिए, लेकिन पूरी प्रक्रिया कानूनी और पारदर्शी होनी चाहिए।”
– प्रो. सुमित नायर, जल नीति विश्लेषक
“पाकिस्तान की यह चिट्ठी दबाव बनाने की एक रणनीति है। भारत को **रक्षा और कूटनीति दोनों स्तरों पर सजग रहना होगा।”
– मेजर जनरल (से.नि.) अजय सिंह, रक्षा विश्लेषक
निष्कर्ष
सिंधु जल संधि भारत-पाक संबंधों की एक महत्वपूर्ण कड़ी रही है, लेकिन बदलते समय में इसका पुनर्मूल्यांकन अपरिहार्य हो गया है। भारत को अब यह तय करना है कि वह अपने हितों की रक्षा करते हुए किस हद तक आगे बढ़ सकता है।
पाकिस्तान की अपील एक मौका है भारत के लिए — यह दिखाने का कि वह संवेदनशील मुद्दों पर भी संयम और संतुलन के साथ निर्णय ले सकता है।
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