संसद का मानसून सत्र अब तक विवादों और हंगामों से घिरा रहा है, लेकिन आज का दिन ऐतिहासिक बन गया जब पहली बार ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और पहलगाम आतंकी हमले पर लोकसभा में औपचारिक चर्चा शुरू हुई। पिछले एक हफ्ते से विपक्ष इस मुद्दे पर बहस की मांग कर रहा था, जिसे सरकार ने अब स्वीकार कर लिया है।
लोकसभा अध्यक्ष ने स्पष्ट किया कि यह विषय राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है और जनता को जवाब मिलना जरूरी है। इसके बाद सदन में माहौल अचानक गंभीर और संवेदनशील हो गया।
🔥 ‘ऑपरेशन सिंदूर’: सिर्फ एक जवाब नहीं, राष्ट्रीय संकल्प की घोषणा
‘ऑपरेशन सिंदूर’ का नाम अब देश के सैन्य इतिहास में दर्ज हो चुका है। यह सिर्फ एक सैन्य मिशन नहीं, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की नीति में आए निर्णायक परिवर्तन का संकेत है।
जब पहलगाम की वादियों में निर्दोष श्रद्धालुओं पर हमला हुआ, तब देश दहल गया। लेकिन सुरक्षा बलों ने प्रतिक्रिया नहीं दी, उन्होंने जवाब दिया — वो भी ऐसा कि सीमा पार तक असर महसूस हुआ।
🔹 सटीक योजना, स्थानीय खुफिया तंत्र और जमीनी कार्रवाई से यह ऑपरेशन अंजाम तक पहुंचा।
🔹 कई आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया गया और आतंकियों के नेटवर्क को तोड़ा गया।
👉 यह वही भावना है जो करगिल विजय दिवस की याद दिलाती है — जब भारत ने न सिर्फ अपने जवानों की शहादत का बदला लिया, बल्कि दुनिया को यह बता दिया कि हम चुप नहीं रहेंगे।
⏰ दोपहर 12 बजे बोले रक्षा मंत्री: राजनाथ सिंह का बयान रहा केंद्र में
जैसे ही घड़ी 12 बजे, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने खड़े होकर अपना बयान पढ़ा। उन्होंने अपने संक्षिप्त और सधे हुए संबोधन में कहा:
“ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि भारत की आतंक के खिलाफ नीति का दृढ़तम रूप है।”
उन्होंने यह भी बताया कि:
- हमला पूर्व नियोजित था और स्थानीय स्तर पर आतंकी मदद ली गई थी।
- सुरक्षा बलों ने बिना किसी को नुकसान पहुंचाए ऑपरेशन को सफल बनाया।
- सरकार ने तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए नई SOP (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) लागू की है।
🔸 राजनाथ सिंह ने विपक्ष को आश्वासन दिया कि सरकार इस मुद्दे पर राजनीति नहीं, समाधान चाहती है।
Logistics को सिर्फ सामान पहुँचाने की प्रक्रिया के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे एक strategic importance के रूप में देखा जाना चाहिए। pic.twitter.com/jCPuzvOZhg
— Rajnath Singh (@rajnathsingh) July 27, 2025
⚖️ विपक्ष का सवाल: क्या यह नाकामी नहीं थी?
विपक्ष ने सरकार से कड़े सवाल पूछे:
- कांग्रेस ने पूछा कि यदि इंटेलिजेंस अलर्ट थे तो हमला क्यों हुआ?
- TMC और DMK ने सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाए।
- कुछ सांसदों ने यह भी पूछा कि क्या ऑपरेशन सिंदूर की टाइमिंग राजनीतिक लाभ के लिए थी?
विपक्ष का स्पष्ट आरोप था कि सरकार हमले को रोकने में विफल रही, और अब सैन्य कार्रवाई को ढाल बनाकर जवाबदेही से बच रही है।
हालांकि, सरकार ने इस बात को पूरी तरह खारिज किया और कहा कि रक्षा किसी भी राजनीति से ऊपर होती है।
🧭 लोकसभा में तीखी बहस, लेकिन गरिमा बनी रही
आज की चर्चा भले ही गरम रही, लेकिन यह संसद की गरिमा में एक मिसाल बन गई। सांसदों ने एक-दूसरे को नहीं काटा, और राष्ट्रीय सुरक्षा पर आधारित चर्चा को प्राथमिकता दी।
लोकसभा अध्यक्ष ने भी कहा:
“यह संसद का कर्तव्य है कि वह सेना और जनता के बीच पुल बने, राजनीति नहीं।”
📌 राज्यसभा में भी उठा मुद्दा, लेकिन टकराव ज्यादा
जहां लोकसभा में बहस शांति से चली, वहीं राज्यसभा में विपक्ष का तेवर तेज था। वहां विपक्ष ने वॉकआउट भी किया और आरोप लगाया कि उन्हें पर्याप्त समय नहीं दिया गया।
हालांकि सरकार ने राज्यसभा में भी अपना पक्ष रखा और आश्वासन दिया कि गृह मंत्रालय जल्द ही विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
📲 सोशल मीडिया पर छाया #OperationSindoor
आज सुबह से ही सोशल मीडिया पर #OperationSindoor ट्रेंड कर रहा है। लाखों लोगों ने अपनी राय दी, जिनमें से अधिकतर ने सेना और सरकार की कठोर कार्रवाई की सराहना की।
📌 कुछ यूज़र्स ने लिखा:
“भारत अब बदल चुका है। अब शब्दों से नहीं, एक्शन से जवाब देता है।”
हालांकि कुछ यूज़र्स ने यह भी पूछा कि अगर अलर्ट थे, तो चूक कैसे हुई?
🔍 जनता की उम्मीदें: क्या बहस से मिलेगा समाधान?
इस बहस ने जनता की नजरों में संसद की भूमिका को फिर से स्थापित किया है। लोग यह उम्मीद कर रहे हैं कि:
- सरकार इंटेलिजेंस सुधार के लिए ठोस कदम उठाएगी।
- तीर्थयात्रियों की सुरक्षा को लेकर स्थायी गाइडलाइन आएगी।
- विपक्ष और सरकार सामूहिक रणनीति पर काम करेंगे।
❝ देश की जनता को अब सिर्फ बहस नहीं, असर चाहिए।❞
🔚 आज का दिन बना लोकतंत्र की ताकत का प्रतीक
संसद का यह सत्र आज एक नए मोड़ पर आ गया है। आज की बहस ने दिखा दिया कि जब मुद्दा राष्ट्रहित का हो, तो सरकार और विपक्ष साथ खड़े हो सकते हैं।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ अब सिर्फ एक सैन्य ऑपरेशन नहीं, देश के आत्मसम्मान की पहचान बन चुका है। बहस से समाधान मिले या न मिले, लेकिन यह चर्चा जनता, सेना और लोकतंत्र — तीनों के प्रति ज़िम्मेदारी का संकेत जरूर दे गई है।




















